संस्कार भारती-हरियाणा

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परिचय[संपादित करें]

संस्कार भारती, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की एक अनुसांगिक संस्था है। इसकी स्थापना ललित कला के क्षेत्र में राष्ट्रीय चेतना लाने का उद्देश्य सामने रखकर की गयी थी। इसकी पृष्ठभूमि में भाऊराव देवरस, हरिभाऊ वाकणकर, नानाजी देशमुख, माधवराव देवले और योगेन्द्र जी जैसे मनीषियों का चिन्तन तथा अथक परिश्रम था। 1954 से संस्कार भारती की परिकल्पना विकसित होती गयी और 1981 में लखनऊ में इसकी बिधिवत स्थापना हुई। 1988 में फाल्गुन शुक्ल पक्ष की एकादशी (रंगभरी एकादशी) को मीरजापुर इकाई का गठन किया गया। सा कला या विमुक्तये अर्थात् "कला वह है जो बुराइयों के बन्धन काटकर मुक्ति प्रदान करती है" के घोष-वाक्य के साथ आज देशभर में संस्कार भारती की 1200 से अधिक इकाइयाँ कार्य कर रही है।

समाज के विभिन्न वर्गों में कला के द्वारा राष्ट्रभक्ति एवं योग्य संस्कार जगाने, विभिन्न कलाओं का प्रशिक्षण व नवोदित कलाकारों को प्रोत्साहन देकर इनके माध्यम से सांस्कृतिक प्रदूषण रोकने के उद्देश्य से संस्कार भारती कार्य कर रही है। १९९० से संस्कार भारती के वार्षिक अधिवेशन कला साधक संगम के रूप में आयोजित किये जाते हैं जिनमें संगीत, नाटक, चित्रकला, काव्य, साहित्य और नृत्य विधाओं से जुड़े देशभर के स्थापित व नवोदित कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करते है।

भारतीय संस्कृति के उत्कृष्ट मूल्यों की प्रतिष्ठा करने की दृष्टि से राष्ट्रीय गीत प्रतियोगिता, कृष्ण रूप-सज्जा प्रतियोगिता, राष्ट्रभावना जगाने वाले नुक्कड़ नाटक, नृत्य, रंगोली, मेंहदी, चित्रकला, काव्य-यात्रा, स्थान-स्थान पर राष्ट्रीय कवि सम्मेलन आदि बहुविध कार्यक्रमों का आयोजन संस्कार भारती द्वारा किया जाता है। संस्कार भारती प्रतिवर्ष राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा मनाये जाने वाले छह उत्सवों को भी मनाती है। देशभर में संस्कार भारती की 1200 से अधिक इकाइयाँ कार्य कर रही है।

समाज के विभिन्न वर्गों में कला के द्वारा राष्ट्रभक्ति एवं योग्य संस्कार जगाने, विभिन्न कलाओं का प्रशिक्षण व नवोदित कलाकारों को प्रोत्साहन देकर इनके माध्यम से सांस्कृतिक प्रदूषण रोकने के उद्देश्य से संस्कार भारती कार्य कर रही है। 1990 से संस्कार भारती के वार्षिक अधिवेशन कला साधक संगम के रूप में आयोजित किये जाते हैं जिनमें संगीत, नाटक, चित्रकला, काव्य, साहित्य और नृत्य विधाओं से जुड़े देशभर के स्थापित व नवोदित कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करते है।

भारतीय संस्कृति के उत्कृष्ट मूल्यों की प्रतिष्ठा करने की दृष्टि से राष्ट्रीय गीत प्रतियोगिता, कृष्ण रूप-सज्जा प्रतियोगिता, राष्ट्रभावना जगाने वाले नुक्कड़ नाटक, नृत्य, रंगोली, मेंहदी, चित्रकला, काव्य-यात्रा, स्थान-स्थान पर राष्ट्रीय कवि सम्मेलन आदि बहुविध कार्यक्रमों का आयोजन संस्कार भारती द्वारा किया जाता है। संस्कार भारती प्रतिवर्ष राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा मनाये जाने वाले छह उत्सवों को भी मनाती है।

संस्थापक-सदस्य[संपादित करें]

1.श्री राजेंद्र कुमार गुप्त-अध्यक्ष,2.स्व. श्री जय प्रकाश गुप्ता-उपाध्यक्ष,3.स्व.श्री यादव राव जी देशमुख-उपाध्यक्ष,4.स्व. श्री विष्णु श्रीधर वाकणकर-महामंत्री,5.स्व. श्री छेदी लाल अग्रवाल-कोषाध्यक्ष,6.स्व. श्री जगदीश पाल जी-सदस्य,7.स्व. श्री सत्यनारायण गोयल जी-सदस्य,8.श्री शंकर पुरषोत्तम निवासन-सदस्य,9.श्री शरद ढमढेरे-सदस्य,10.श्री श्याम कृष्ण जी-सदस्य,11.श्री योगेन्द्र जी(बाबा) -संगठन मंत्री

वर्तमान राष्ट्रीय कार्य-समिति[संपादित करें]

संगठनात्मक व्यवस्था की दृष्टि से संस्कार भारती की वर्तमान संरचना इस प्रकार की गयी है:

1 पद्मश्री योगेन्द्र जी (बाबा), राष्ट्रीय संरक्षक,2.श्री राज दत्त जी-संरक्षक , 3. वासुदेव कामथ, राष्ट्रीय अध्यक्ष,4.श्री बांकेलाल गौड़-उपाध्यक्ष,5.प्रोफ़ेसर एस आर लीला-उपाध्यक्ष,6.श्री सुरेश बिंदल-उपाध्यक्ष,7.श्री विश्राम जामदार-महामंत्री,8.डॉ रविन्द्र भारती-सह महामंत्री,9.श्री गणेश रोड़े-संगठन मंत्री,10.श्री अमीरचंद जी-सह संगठन मंत्री,11.श्री पारा कृष्णा मुर्थ्य-सह संगठन मंत्री,12.श्री रविन्द्र गजानन देव (रवि देव )-मंत्री,13.श्री चंद्रकांत घरोटे-मंत्री,14.श्रीमती नीलंजना रॉय-मंत्री,15.श्री चेतन जोशी-मंत्री,16.श्री सुभाष अग्रवाल-कोषाध्यक्ष,17.श्री सुबोध शर्मा-सह कोषाध्यक्ष,18.माननीय स्वांत रंजन जी-सम्पर्क अधिकारी,19.श्री नन्द किशोर-प्रचारक

वर्तमान प्रांतीय कार्यकारणी[संपादित करें]

1.मेजर दीनदयाल-संरक्षक,2.डॉ अजय शर्मा-अध्यक्ष,3.डा. निर्मल पोपली-उपाध्यक्ष,4.डा. सुरेश वशिष्ठ-उपाध्यक्ष,5.श्री सम्पूर्ण सिंह-महामन्त्री,6.श्री अभिषेक गुप्ता-सह् महामंत्री,7.श्री राकेश कुमार-कोषाध्यक्ष,8.श्री उदितेन्दु वर्मा ‘निश्चल’-मंत्री,9.श्रीमती स्वदेश चरौरा-मातृ शक्ति प्रमुख ,10.डॉ ऋचा गुप्ता-संगठन मंत्री

उद्देश्य[संपादित करें]

संस्कार भारती’ के उद्देश्य

  • मंचीय रूपांकर एवं साहित्यक, ललित कलाओं के माध्यम से भारत की परम्परागत राष्ट्रीय एकात्मता का संवर्धन।
  • ललित कलाओं का विकास, साहित्यकार, कलाकारों का सम्पोषण एवं संरक्षण।
  • लोक कलाओं एवं परम्पराओं का विकास, प्रसार एवम् शोध कार्य करना।
  • नवोदित कलाकारों हेतु प्रशिक्षण, छात्रवृत्ति, साथ ही गुरू शिष्य परम्पराओं को पुनः प्रतिष्ठा प्रदान करना।
  • विशेष रूप से प्रतिष्ठित एवं वृद्ध किन्तु बिपिन्न कलाकारों को आर्थिक सहायता।
  • संस्था के उद्देश्य पूर्ति हेतु कला शिविर, कार्यशाला, गोष्ठियां, परिसंवाद, व्याख्यान, प्रदर्शनी इत्यादि को आयोजित करना।
  • शोध अध्ययन वृत्त, यात्रावृत्त आदि योजनाओं का क्रियान्वयन करना।
  • भारतीय जीवन मूल्यों को प्रतिष्ठित करना एवम् सांस्कृतिक प्रदूषण के प्रति अभियान व स्वदेशी भाव का जनजागरण।
  • साहित्य एवं कला के विकास हेतु आधारभूत सुविधायें जैसे – प्रेक्षागृह कला वीथिका, सम्मेलन कक्ष, अभ्यास कक्ष, ध्वनि-प्रकाश एवं छायांकन तकनीकी सुविधाओं का प्रावधान।
  • साहित्य एवं कला के प्रति अभिरूचि जागृति के लिये विभिन्न प्रकार के संग्रहालयों एवं अभिलेखागार आदि की स्थापना ।
  • संकल्पों की पूर्ति हेतु श्रव्य एवं द्रश्य तथा अन्य जन संचार माध्यमों का उपयोग करना।
  • सद्साहित्य का निर्माण एवम् प्रकाशन करना।
  • सामाजिक संस्कार . अपने जीवन मूल्य नैतिकता परिवार व्यवस्था सुसंस्कृत जीवन की आकांक्षा आदि की सामूहिक प्रस्तुति करने वाली कलाकृतियों का निर्माण करना

विधाएं[संपादित करें]

मानव ने कलाओं के संबंध में यह माना है कि प्रमुख पंचकला पंचतत्व पंच महाभूतों से सम्बद्ध है। शिल्पकला पृथ्वी से, नाट्य कला आप तत्त्व से, चित्रकला तेज तत्त्व से, नृत्य वायु तत्त्व से और संगीत आकाश तत्त्व से, ये पंच महातत्व परमानंद सत्यं शिवं सुंदरम के लिए हैं। हमारी ध्येय दृष्टि गीत संगीत से नवनिर्माण की कल्पना ले कर जुड़ी है । साहित्य, गीत, नाट्य सप्तरंग, सप्तस्वर, नवरसों से पूर्ण होती है विमुक्त की कल्पना। इसीलिए हमारा ध्येय वाक्य भी है ‘सा कला या विमुक्तये’।

64 कलाओं में से संस्कार भारती 8 कलाओं के प्रचार-प्रसार में निरंतर कार्य कर रही है

1.साहित्य,2.संगीत,3.भू - अलंकरण,4.नाट्य,5.चित्रकला,6.लोककला,7.नृत्य,8.प्राचीन कला
1.साहित्य
ब्रह्मा है । शब्दशक्ति मानव मात्र के संवाद की प्रथम सीढ़ी है । माँ सरस्वती आराध्य है। शब्द रंजनएशब्दरचना सभी विधाओं की रचना कृति में लोकसंवादएलोकत्मएलोकाध्यात्मएलोकरंजनएअध्यात्म चिंतन दर्शन का आधार होने के कारण कलासृष्टि में महत्वपूर्ण स्थान है। इस विधा से लोक जीवनादर्शएलोक संवेदनाएलोक संबोधनएप्रबोधन तथा समाज का दर्पण दर्शनीय होता है । सांसारिक जगत में विभिन्न भाषा विन्यास के कारण भी सभी को जोड़ने एआत्मसात करनेएमनएबुद्धिएअहं के प्रगटीकरण की सहज माध्यमिका है साहित्यविधा । कला जगत का आधारस्तम्भ कहा जाये तो अतिशयोक्ति नहीं ।
2.संगीत
ध्रुपद में वेदों का गायन होता है । सभी घरानों का मूल है ओम । त्वं ओम का प्रतीक है । तनानानाना यही निनाद है । लोक गीतों का मूल श्रोत भी यही है । नाद की मधुरता से शब्दों में जो राग उत्पन्न होता है वाही संगीत कहा जाता है । इसका उद्गगम वेद तथा लोक संगीत है । अतः यह प्राचीन धरोहर है । संगीत में लय है तो मन का विलय होता है लय नहीं तो प्रलय । मानवमात्र के ह्रदय तंत्री को झंकृत करने की प्रमुख विधा है संगीत । समाजजीवन पुरुषत्व से ईशरत्व की ओर सन्मार्ग दर्शक है संगीत ।
3.भू अलंकरण
यह सबसे प्राचीन विधा है । यहाँ रंगोली निकली जाती है वह शिव का अधिष्ठान मिल जाता है । सूर्य है वहां तेजस्विता हैएप्रकाश हैएयहाँ सूर्य है वहां जीवन है । सृस्टि का महाप्राण सूर्य है । रंगोली जब विभिन्न चिन्हों से निकाली जाती है तो वह सत्यएशिव और सुंदर का रूप लेकर आँगन में आती है ।
4.नाट्य
इस विधा के माध्यम से ह्रदयस्पर्शी कृति रूपदरशम का बोधएकलाकार में प्रतिभा विकासएसमाज चित्रण की यह सशक्त शैली है । इस विधा में समस्त विधाओं रंग रस रूप स्वर शब्द चित्रकला का समावेश है । जीवन दर्शन की प्रेरणादायी कृति हैद्य आत्मविभोर व सह्रदय श्रेष्ठ कला है नाट्य । भरत मुनि उसका आदर्श हैएकला ही जीवन है यह ध्येय दर्शन का प्रतीक है ।
5.चित्रकला
चित्रकला का सम्बधबपरकश से है चित्रकारी से मनोभावों का रूप प्रकट होता है । चाहे प्रकति का होएचाहे व्यक्तित्व का होएचाहे मूर्ति का हो । वह वातावरण को प्रसन्न कर देता है । अमूर्त को मूर्त करने की प्रक्रिया चित्रकला विधा में प्रकट होती है।
6.लोककला
सभी कलाओं का मूलस्रोत यगंगोत्री द्ध लोककला में प्रतिबिम्बित हैद्य वह अकृत्रिम और अनौपचारिक रूप से प्रकट होती हैद्य इन विविध रूपों से जनसामान्य के हृदय की भावनाएं लोककलाओं के माध्यम से प्रकट होती है सामान्य से सामान्य गिरिवासीएवनवासी अन्य सामान्य किसान जैसे अनपढ़ लोग भी लोककलाओं को प्रकट करते हैंद्य इसकी परम्परा हजारों सालों से भारत में विधमान हैद्य आज के चित्रपटो व नाटकों में लोक कलाओ को नया रूप दे कर जो कहानियाँ प्रस्तुत की रही हैं वे समाज भर्ती हैंद्य लोकजीवन की या किसी भी समाज की अंतरात्मा है लोक कला । लखनऊ में लोककला महोत्सव तथा उण् प्रण् में शासन स्तर पर १६२ लोककलाओं का प्रदर्शन हुआ ।
7.नृत्य
भारतीय संस्कृति राष्ट्र जीवन की आत्मा है और कलाएं संस्कृति की आत्मा है| नृत्य कलाओं की मूल धारा है| नृत्य तन मन जीवन का योग है| तन मन जीवन को स्वस्थ बनाने में नृत्य की अहम भूमिका है|नृत्य कला प्राचीन काल से भारत को प्रकाशित करती आ रही है| संस्कार भारती नृत्य कला के विकास के लिए ठोस तरीके से प्रयासरत है| नृत्य कला कई रोगों में उपचार का सटीक माध्यम है|
8.प्राचीन कला
कला का मूलस्रोत गंगोत्री है यह कला प्रकृति के विराट का दृश्य उसकी भव्यता मनुष्यता की महानता के लक्ष्य के रूप में देखे जा सकते हैं । पुरातत्व निसर्ग को अपनी हिन्दू कला दृष्टि से देखने का दृष्टिकोण इस कला से अपेक्षित है । गुफाओं के दर्शन तक ही सीमित नहीं है यह तो प्राकृतिक स्रोतों का दर्शन पत्थरों की भाषाए उनकी प्रकृति उनकी बोली उसकी एक अद्धभुत अनुभूति इस कला में निहित है । समाज जीवन व कलाकार के आत्मबोध को अध्यात्म प्रबोध पुरुषार्थ की प्रेरणा पुरखो के अधूरे स्वप्नों की पूर्णता हेतु परंपरा स्रोत है

वार्षिक कार्यक्रम[संपादित करें]

औपचारिक रूप से संस्कार भारती वर्ष में 6 कार्यक्रम मनाती है।

नव संवत्सर स्वागत (वर्ष प्रतिपदा चैत्रषुक्ल) – इस दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि निर्माण का मुहूर्त किया। श्रीराम का राज्याभिषेक व सम्राट शांतिवाहन का शकों पर विजय का यह दिन। अतः यह विजय दिवस भी है। आज प्रकृति का सौदर्य रूप परिवर्तन का दिन, देष की अस्मिता, स्थिरता व स्वत्व निर्माण में आत्मशक्ति का जागरण है। सृजन की कला का धर्म है। अतः ‘संस्कार भारती’ में इस दिवस की महत्वपूर्ण भूमिका है।

गुरूपूर्णिमा (आषाढ पूर्णिमा) – भारत में गुरु परम्परा सभी क्षेत्रों में है। ज्ञान-विज्ञान-अध्यात्म, कला में नटराज सत्य ही शिव और शिव ही सुन्दर का दर्शन द्य ताण्डव विनाश के लिए और लास्य स्थाई भाव में सृजन व परम शांति का द्योतक है।हमारा नटराज। गुरू पूजन कलाकार के लिए श्रेयकर है। अणु में नर्तन और शिव का नर्तन दोनों एक ही है। जिनमें ताल, गति और स्थिरता भी है। षिव कला जगत में गुरू की महती प्रधानता सुस्पष्ट करने वाल यह अपना प्रमुख उत्सव है। संगीत, नृत्य, नाट्य के आदि कला गुरू नटराज शिव , प्रथम काव्य प्रणेता बाल्मीकि एवं ज्ञान विज्ञान के रचयिता वेदव्यास की परम्परा आदि कला गुरूओं को सम्मान प्रदान करना है।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी – श्रीकृष्ण 16 कलाओं के ज्ञाता है, पूर्ण पुरूष हैं। उन्हें नटवरलाल भी कहा गया है। रासलीला, गर्बा, मुरली वादन यह सभी समाज जागरण और समाज संगठन के लिए किया। समाज के छोटे से छोटे घटक (ग्वाला) को जोड़ा। श्रीकृष्ण शिक्षक और संगठन के दृष्टि से आदर्श हैं। उनके विविध रूपों का दर्शन, प्रदर्शन , बाल, गीता दर्शन यह विषुद्ध अदभुत उदाहरण है। अनेक रूपों के दर्शन के बाद भी तत्व रूप, स्थाई भाव रखा। कला से जीवन में शुद्धता लाने का मार्ग उनके जीवन से मिलता है। ईश्वरत्व का साक्षात्कार तनमन की विशुद्धता का यह पर्व द्योतक है। समाज जीवन में कलाकार तथा कार्यकर्ता से यही अपेक्षित है।

दीपावली परिवार मेला (कार्तिक अमावष्या) – सामाजिक स्थिरता में पारिवारिक योगदान का सबसे बड़ा महत्व है। कलाकार व कार्यक का जीवन पारिवारिक भाव स्थिर हो, यह अत्यन्त आवश्यक है। हमारी पद्धति भी सभी को साथ लेकर चलने की पारिवारिक पद्धति है। अंधकार से प्रकाश , अज्ञान से ज्ञान, कुटूम्ब व्यवस्था का सामान्जस्य, खुशियों का सामूहिक आदान-प्रदान का दीपावली पर्व एक प्रतीक है। सामानजस्य, साहचर्य, एकात्म दर्शन यह पावन सन्देश ‘संस्कार-भारती’ परिवार में भी विशिस्ट भूमिका का परिचायक है।

भारत माता पूजन (गणतंत्र दिवस 26 जनवरी) – ‘संस्कार भारती’ ने इस उत्सव को आदर्षो से जोड़ा है। भारत माता के चित्र दर्शन को विराट रुप में सामने लाना। सब देवों से बड़ी है हमारी भारत माँ। कलाकार – कार्यकर्ता का जीवन आदर्श है हमारी ‘भारत माँ’। आज के दिन संविधान का निर्माण हुआ, इसमें स्वत्व का बोध होता है। अपना धर्म अपनी भाषा, चिन्ह, प्रतीक, विधान, संविधान और अपनी अस्मिता का राष्ट्रव्यापी प्रबोध। यह ‘वंदे मातरम्’ में भी बंकिमचन्द्र जी ने कहा है। भारत माँ साक्षात दुर्गा – दषप्रहरणधारिणी, कमला कमलदल विहारिणी यह शुद्धता का प्रतीक तथा वाणी विद्यादायिनी है। यह सरस्वती का साक्षात रूपदर्शन है। अतः कलाकार के लिए माँ भारती का पूजन सभी देवों का सूजन है।

भारतमुनि स्मृति दिवस (माघ पूर्णिमा) – कलाक्षेत्र के प्रणेता भरमुनि के स्मृति का यह आयोजन है। नाट्य शास्त्र आदिग्रंथ है। नाट्यकला लोक धर्म के परिपालन के लिए प्रतिबद्ध है। यह व्यवसाय नहीं समाज प्रबोधन का महत्त्वपूर्ण अनुष्ठान है कलाओं में समन्वय, साहित्य, कला, संगीत, वास्तु, रंग तथा प्रकृति का मूल श्रोत भी नाट्य कला में निहित है। नाट्य यह जीवन का विशुद्ध प्रतिबिंब है। भरतमुनि ने कहा, “ब्रह्माजी के चरणों में सूत्र बनाये गये। शिव जी ने उन्हें अभिनीत किया। मैने लिपिबद्ध किया। मेरा अपना कुछ नहीं”। यह दर्शन भरतमुनि ने दिया। जो गुरू के प्रति एक आदर्श कलाकार से अपेक्षित है। यह कलाकार – कार्यकर्ता का पावन पूज्य पर्व है।

‘संस्कार भारती’ ध्येय गीत[संपादित करें]


सधयति संस्कार भारति, भारते नवजीवनम्
भावार्थ: ‘संस्कार भारती‘ अपनी साधना से भारत में नवजीवन का संचार करना चाहती है।
प्रणवमूलं प्रगतिशीलंए प्रखर राष्ट्र विवर्धकम्।
शिवम् सत्यम् सुन्दरम, अभिनवम् संस्करणोद्यमम्।
साधयति संस्कार भारति, भारते नवजीवनम्

भावार्थ: इस व्यवस्था के मूल में सच्चिदानन्द का वास होगा, उन्नतिशील होगी, तेजी से राष्ट्र का विकास करने वाली होगी। सत्य, सुन्दर, कल्याणकारी तथा नये संस्कारों की प्रदाता होगी।
मधुर मंजुल राग भरितं, हृदयतन्त्री मन्त्रितम्
वाद्यति संगीतकम्, बसुधैक भावन-पोषकम्।
साधयति संस्कार भारति, भारते नवजीवनम्

भावार्थ: ‘संस्कार भारती’ ऐसे मधुर, मनोहारी और हृदय को मंत्र मुग्ध करने वाले संगीत का स्वर चाहती है जो ‘बसुधैक कुटुम्बकम् की भावना का पोषण करता हो।
ललित रसमय लास्यलीला चण्ड ताण्डव गमकहेला,
कलित जीवन नाट्यवेदं, कांति क्रांति कथा प्रमादम।
साधयति संस्कार भारति, भारते नवजीवनम्

भावार्थ: रसपूर्ण, मनोहर तथा उग्र, ताण्डव नृत्य और माधुर्य, ओज व क्रांति-भाव की आनंददायी कथाओं पर आधारित नाटकों से यह लोक जीवन में संस्कार जगाना चाहती है।
चतुः षष्ठि कलान्वितम् परमेष्ठिना परिवर्तितम्
विश्वचक्र भ्रमण रूपम्, शाश्वतम् श्रुतिसम्मतम्।
साधयति संस्कार भारति, भारते नवजीवनम्

भावार्थ: चैंसठ कलाओं से समन्वित विश्वचक्र पर गतिमान, कभी नष्ट न होने वाली, वेदों पर आधारित व्यवस्था को ‘संस्कार भारती’ भारत में स्थापित करना चाहती है।
जीवयत्यभिलेखमखिलं, सप्तवर्ण समीकृतम्
प्लावयति रस सिन्धुना, प्रति हिन्दु मानसनन्दम्।

भावार्थ: ‘संस्कार भारती’ पुरातन अभिलेखों का संरक्षण-संवर्धन करते हुए सात वर्णो की रचना से प्रत्येक भारतवासी को रस सागर में डुबोकर आनन्द विभोर करना चाहती है। इस प्रकार संस्कार भारती अपनी साधना से भारत में नवजीवन का संचार चाहती है।
साधयति संस्कार भारति, भारते नवजीवनम्
भारते नवजीवनम्
भारते नवजीवनम्

संघ परिवार
संगठन

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ· भारतीय जनसंघ · विश्व हिंदू परिषद · भारतीय जनता पार्टी · बजरंग दल · राष्ट्र सेविका समिति · दुर्गा वाहिनी · अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद · राष्ट्रीय सिख संगत · भारतीय मजदूर संघ ·भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम.सेवा भारती.विद्या भारती.संस्कार भारती.विज्ञान भारती.भारतीय किसान संघ.अखिल भारतीय साहित्य परिषद.स्वदेशी जागरण मंच

प्रमुख व्यक्तित्व केशव बलिराम हेडगवार · माधव सदाशिव गोलवलकर · श्यामा प्रसाद मुखर्जी · दीनदयाल उपाध्याय · मधुकर दत्तात्रेय देवरस · अटल बिहारी वाजपेयी · लालकृष्ण आडवाणी · राजेन्द्र सिंह (रज्जू भैया) · अशोक सिंहल ·के एस सुदर्शन.हो॰ वे॰ शेषाद्री.प्रवीण तोगड़िया.उमा भारती.नरेन्द्र मोदी.राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक
दर्शन हिंदुत्व · राम जन्मभूमि · अखंड भारत · समान नागरिक संहिता
पत्र-पत्रिकाएँ · पाञ्चजन्यदेवपुत्र (बाल पत्रिका) · आर्गनाइजर

[1] [2]

References[संपादित करें]

  1. https://Rashtriya_Swayamsevak_Sangh[मृत कड़ियाँ]
  2. "संग्रहीत प्रति". मूल से 5 अगस्त 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 11 मई 2018.