यह पाँच वर्ग्गो (वर्गो) और 56 संयुत्तों में विभक्त हैं। पाँच वग्गों में क्रमश: 11, 10, 13, 10 और 12 संयुत्त (अध्याय) संगृहीत है। इस निकाय में छोटे और बड़े सुत्तों का समावेश है। तदनुसार नामकरण की बात बताई गई है। लेकिन विषयवार सुत्तों के वर्गीकरण के अनुसार ग्रंथ के नामकरण की सार्थकता को समझना अधिक समीचीन है। अलग अलग संयुत्तों में सुत्तों के वर्गीकरण को मोटे रूप से चार सिद्धांतों के अनुसार समझ सकते हैं :
1. धर्मपर्याय, 2. भिन्न भिन्न योनियों के जीव, 3. श्रोता और 4. उपदेशक।
पहला वर्गीकरण भगवान की शिक्षाओं के सारभूत बोधिपक्षीय धर्मो के अनुसार हुआ है, यथा बोज्झग संयुत्त, बल संयुत्त, इंद्रिय संयुत्त इत्यादि।
दूसरा वर्गीकरण उनमें संगृहीत सुत्तों में निर्दिष्ट विभिन्न योनियों के जीवों के अनुसार हुआ है, यथा देवपुत्त संयुत्त, इत्यादि।
तीसरा वर्गीकरण संगृहीत उपदेशों के श्रोताओं के अनुसार हुआ है, यथा राहुल संयुक्त, वच्छगोत्त संयुत्त इत्यादि।
चौथा वर्गीकरण संगृहीत सुत्तों के उपदेशकों के अनुसार हुआ है, यथा सारिपुत्त संयुत्त, भिक्खुणी संयुत्त इत्यादि।
संयुत्त निकाय के अधिकांश सुत्त गद्य में हैं, देवता संयुत्त जैसे कतिपय संयुत्त पद्य ही में है और कुछ संयुत्त गद्य पद्य दोनों में है। एक एक संयुत्त में एक ही विषय संबंधी अनेक सुत्तों के समावेश के कारण इस निकाय में अन्य निकायों से भी अधिक पुनरुक्तियाँ है। इसमें देवता, गंधर्व, यक्ष इत्यादि मनुष्येतर जीवों का उल्लेख अधिक आया है।
अन्य निकायों की तरह इस निकाय के सुत्तों का भी महत्व धर्म और दर्शन संबंधी भगवान की शिक्षाओं में है। लेकिन प्रकारांतर से उनमें तत्कालीन अन्य धर्माचायों के मतों और विचारों, सामाजिक अवस्था, राजनीति, भूगोल इत्यादि विषयों का भी उल्लेख है। यहाँ पर उन सब की चर्चा संभव नहीं। इसलिए प्रत्येक संयुत्त के मुख्य विषय का निर्देश मात्र करेंगे।
"Connected Discourses in Gandhāra" by Andrew Glass (2006 dissertation) - compares four Gandharan sutras related to the Samyutta Nikaya with Pali, Chinese and Tibetan versions.