शाज़ तमकनत

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शाज़ तमकनत उर्दू के एक प्रसिद्ध शायर थे। उन जन्म 1933 में हैदराबाद में हुआ था तथा निधन उसी शहर में 1985 को हुआ था।[1] आधुनिक उर्दू कविता में शाज़ तमकनत अपने समय के सुप्रसिद्ध कवियों में स्वयं को दर्ज करवाते हैं। दखन के नामी-गिरामी शायरों में शाज़ का शुमार होता है। पारम्परिक और आधुनिक कविता के बीच जिस सेतु का निर्माण शाज़ तमकनत ने किया वह स्वयं में एक युग की स्वीकृति लिये हुए है। इनकी ग़ज़लों और नज़्मों में जहाँ निजी ज़िन्दगी के दुख-दर्द दिखाई देते हैं वहीं उनका दुख सार्वजनीन आत्मचेतना के रूप में अनुभव किया जा सकता है।[2]

प्रमुख ग़ज़लें[संपादित करें]

  • अपनी अपनी शब-ए-तनहाई की तंज़ीम करें
  • काम आसाँ हो तो दुश्वार बना लेता हूँ
  • कोई तनहाई का एहसास दिलाता है मुझे
  • कोई तो आ के रूला दे के हँस रहा हूँ मैं
  • मैं तो चुप था मगर उस ने भी सुनाने न दिया
  • मेरी वहशत का तेरे शहर में चर्चा होगा
  • मिसाल-ए-शोला-ओ-शबनम रहा है आँखों में
  • सिमट सिमट सी गई थी ज़मीं किधर जाता
  • तमाम क़ौल ओ क़सम था मुकर गया है कोई
  • ज़रा सी बात आ गई जुदाई तक[1]

प्रमुख नज़्में[संपादित करें]

  • आब ओ गिल
  • अजनबी
  • बे-नंग-ओ-नाम
  • छटा आदमी
  • दर-गुज़र
  • हम-शाद
  • ख़ौफ-ए-सहरा
  • कै़द-ए-हयात ओ बंद-ए-ग़म
  • ज़ंजीर की चीख[1]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "संग्रहीत प्रति". मूल से 22 अप्रैल 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 24 मार्च 2014.
  2. "संग्रहीत प्रति". मूल से 24 मार्च 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 24 मार्च 2014.

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]