वैरोचन

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महात्मा बुद्ध के महापरिनिर्वाण (543 ईसा पूर्व) के पश्चात कुषाण राजवंश के शासक कनिष्क के समय चतुर्थ बौद्ध संगीति में बौद्ध धर्म दो प्रमुख संप्रदायों महायान और हीनयान संप्रदाय में विभक्त हो गया। पूर्व (600-1250 ई०) तक मध्यकाल आते-आते बौद्ध धर्म तीन प्रमुख संप्रदायों में विभक्त हो जाता है। जिसमे वज्रयान, कालचक्रयान, सहजयान में विभक्त हो गया। इसमें वज्रयान शाखा से तंत्रयान नामक संप्रदाय का उदय हुआ। इसी तंत्र यान नामक शाखा में प्रमुख तांत्रिक देवताओं की स्थापना हुई जिसमें ध्यानी बुध अमिताभ, ध्यानी बुद्ध विरोचन का उल्लेख मिलता है । गुहा समाज तंत्र नामक पुस्तक में वैरोचन के मुद्रा के विषय में कहा गया है कि वे श्वेत वर्ण वाले हैं । अध्ध्ययावज्रसंग्रह नामक ग्रन्थ में वैरोचन का प्रतीक श्वेत चक्र बताया गया है । निष्पन्नयोगवालीवाली ग्रन्थ में वैरोचन को चतुर्मुख एवं अष्टभुज वाला कहा गया है।

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