"सविता आंबेडकर": अवतरणों में अंतर
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विवाह के बाद डॉक्टर |
विवाह के बाद डॉक्टर शारदा कबीर को डॉक्टर सविता आंबेडकर कहा जाने लगा। उन्होंने भीमराव आंबेडकर की सेवा करने लगी। आंबेडकर का स्वास्थ्य लगातार खराब होता चला जा रहा था। वे पूरी निष्ठा के साथ आंबेडकर के आखरी समय तक सेवा करती रहीं। आंबेडकर ने अपनी पुस्तक ''[[भगवान बुद्ध और उनका धम्म]]'' की 15 मार्च 1956 को लिखी भूमिका में भावुक अंदाज में पत्नी से मदद मिलने का उल्लेख किया। इस प्रस्तावना में उन्होंने सविता आंबेडकर ने उनकी आयु 8-10 वर्ष अधिक बढाने का उल्लेख किया है। आंबेडकर के निधनोपरांत उनके करीबियों और अनुयायियों ने इस ग्रंथ से यह भूमिका हटवा दी। इसका पता १९८० ई. में चला जब पंजाबी बुद्धवादी लेखक भगवान दास ने उनकी इस भूमिका को दुर्लभ भूमिका के रूप में प्रकाशित करायी। |
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==धर्मांतरण== |
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[[File:Dr. Babasaheb Ambedkar accepting Dhamma Deeksha - Buddhism from Mahasthavir Chandramani along with Wali Sinha, Rewaramji Kawade and wife Maisaheb on October 14, 1956.jpg|thumb| महास्थवीर चंद्रमणी (बाई ओर) इनसे बौद्ध धम्म की दीक्षा ग्रहन करते समय भीमराव आंबेडकर एवं उनके साथ सविता आंबेडकर, वाली सिन्हा और रेवरामजी कवाडे. १४-१०-१९५६]] |
[[File:Dr. Babasaheb Ambedkar accepting Dhamma Deeksha - Buddhism from Mahasthavir Chandramani along with Wali Sinha, Rewaramji Kawade and wife Maisaheb on October 14, 1956.jpg|thumb| महास्थवीर चंद्रमणी (बाई ओर) इनसे बौद्ध धम्म की दीक्षा ग्रहन करते समय भीमराव आंबेडकर एवं उनके साथ सविता आंबेडकर, वाली सिन्हा और रेवरामजी कवाडे. १४-१०-१९५६]] |
05:23, 20 अप्रैल 2018 का अवतरण
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सविता आंबेडकर | |
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सविता आंबेडकर, १५ अप्रेल, १९४८ | |
जन्म |
शारदा कबीर 27 जनवरी 1909 |
मौत |
मई 29, 2003 जे.जे. अस्पताल, मुंबई | (उम्र 94)
राष्ट्रीयता | भारतीय |
उपनाम | माई, माईसाहब, शारदा, शारु |
जाति | मराठी |
शिक्षा | एमबीबीएस |
शिक्षा की जगह | ग्रेन्ट मेडिकल कॉलेज, मुंबई |
पेशा | डॉक्टर, समाजसेविका |
प्रसिद्धि का कारण | भीमराव आंबेडकर की पत्नी |
धर्म | बौद्ध |
जीवनसाथी | भीमराव आंबेडकर |
माता-पिता | कृष्णराव कबीर (पिता) |
सविता भीमराव आंबेडकर (जन्म: शारदा कबीर; 27 जनवरी 1909 — मृत्यु: 29 मई, 2003) भारतीय समाजसेविका, डॉक्टर तथा भीमराव आंबेडकर की दूसरी पत्नी थीं। आंबेडकरवादी लोग उन्हें आदर से माई या माईसाहब कहते है, जिसका मराठी भाषा में अर्थ 'माता' है।
प्रारंभिक जीवन एवं पढाई
सविता आंबेडकर का जन्म पुणे के सभ्रांत मराठी सारस्वत ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वे पुणे के पुरोगामी ब्राह्मण परिवार से थीं। उन्होंने जाति पाती के बंधनों की परवाह नहीं की थी।[1] वह पढ़ने में बहुत कुशाग्र थीं। उनकी आरंभिक शिक्षा पुणे में ही हुई। इसके बाद उन्होंने मुंबई के ग्रेन्ट मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस किया। चिकित्सा की पढ़ाई पूरी कर वे गुजरात के एक अस्पताल में काम करने लगीं। फिर वे मुंबई आ गईं। वहाँ आंबेडकर से उनका परिचय और विवाह हुआ। वे आंबेडकर के लेखन तथा आंदोलन में हाथ बँटाने लगीं।
करियर एवं आंबेडकर से भेट
विवाह
1947 में संविधान लेखन के दौरान भीम राव अंबेडकर को मधुमेह और उच्च रक्तचाप के कारण उन्हें स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं होने लगी। उन्हें नींद नहीं आती थी। पैरों में न्यूरोपैथिक दर्द रहने लगा। इंसुलिन और होम्योपैथिक दवाएं किसी हद तक ही राहत दे पाती थीं। इलाज के लिए वह बंबई गए। वहीं डॉक्टर सविता इलाज के दौरान अंबेडकर के करीब आईं। अंबेडकर की पहली पत्नी रमाबाई का लंबी बीमारी के बाद 1935 में निधन हो चुका था। अंबेडकर ने सविता के साथ दूसरे विवाह का फैसला किया। 15 अप्रैल 1948 को उनका विवाह हो गया।
सविता-अंबेडकर के विवाह से ब्राह्मण और दलित दोनों समुदायों के अनेक लोग कुपित हुए। अनेक ब्राह्मणों ने अंबेडकर की दलित राजनीति और विचारधारा पर सवाल खड़े किए। दलितों के एक वर्ग ने कहा कि इससे गलत तो कुछ हो ही नहीं सकता था। क्या बाबा साहेब को शादी के लिए एक ब्राह्मण स्त्री ही मिली थी। कइयों ने इसे ब्राह्मणों की साजिश कहा। कुछ ने खिल्ली भी उड़ाई। किंतु अंबेडकर के बहुत से अनुयायियों ने माना कि वह जो करते हैं, सोचसमझ कर करते हैं, ज्यादा विचारवान और समझदार हैं, इसलिे उन्होंने उचित ही किया होगा। इस शादी के पक्ष में यह तर्क भी दिया गया कि चूंकि ब्राह्मणों के यहां महिलाओं की स्थिति दलित की तरह होती है, इसलिए उन्होंने एक महिला का उद्धार किया है।
समर्पित पत्नि
विवाह के बाद डॉक्टर शारदा कबीर को डॉक्टर सविता आंबेडकर कहा जाने लगा। उन्होंने भीमराव आंबेडकर की सेवा करने लगी। आंबेडकर का स्वास्थ्य लगातार खराब होता चला जा रहा था। वे पूरी निष्ठा के साथ आंबेडकर के आखरी समय तक सेवा करती रहीं। आंबेडकर ने अपनी पुस्तक भगवान बुद्ध और उनका धम्म की 15 मार्च 1956 को लिखी भूमिका में भावुक अंदाज में पत्नी से मदद मिलने का उल्लेख किया। इस प्रस्तावना में उन्होंने सविता आंबेडकर ने उनकी आयु 8-10 वर्ष अधिक बढाने का उल्लेख किया है। आंबेडकर के निधनोपरांत उनके करीबियों और अनुयायियों ने इस ग्रंथ से यह भूमिका हटवा दी। इसका पता १९८० ई. में चला जब पंजाबी बुद्धवादी लेखक भगवान दास ने उनकी इस भूमिका को दुर्लभ भूमिका के रूप में प्रकाशित करायी।
धर्मांतरण
अशोक विजयादशमीला (सम्राट अशोक द्वारा बौद्ध धम्म स्वीकार किया गया दिवस), 14 अक्टूबर 1956 को दीक्षाभूमि, नागपूर में भीमराव आंबेडकर के साथ सविता आंबेडकर ने बौद्ध धम्म का स्वीकार किया। म्यान्मार के भिक्खु महास्थवीर चंद्रमणी से डॉ. बाबासाहेब व सौ. डॉ. सविता आंबेडकर ने त्रिशरण व पंचशील ग्रहण कर सर्वप्रथम धम्मदीक्षा ली और इसके बाद डॉ आंबेडकर ने खुद ही अपने ५,००,००० अनुयायीयों को त्रिशरण, पंचशील एवं बावीस प्रतिज्ञा देकर बौद्ध धम्म की दीक्षा दि। यह शपथग्रहण सुबह ९ बजे हुआ। सविता आंबेडकर इस धर्मांतर आंदोलन की बौद्ध धम्म कबूल करनेवाली प्रथम महिला थी।[2]
आरोप एवं खंडन
भीमराव आंबेडकर के निधन के बाद कुछ आंबेडकरवादियों ने उनकी की हत्या करने का आरोप सविता जी पर लगाया। उन्हें ब्राह्मण बताकर आंबेडकर आंदोलन से अलग कर दिया गया। उन्होंने खुद को दिल्ली में अपने मेहरौली स्थित फार्महाउस तक समेट लिया। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इस मामले की जांच के लिए एक कमेटी बनाई, और उस कमेटी ने जांच के बाद सविता जी को आरोपों से मुक्त कर दिया गया।[3]
दलित आंदोलन से पुनर्जुड़ाव
भारतीय रिपब्लिकन पार्टी के नेता रामदास आठवले और गंगाधर गाडे उन्हें दोबारा आंबेडकरवादी आंदोलन की मुख्यधारा में लौटा लाए। अधिक उम्र बढ़ने पर वह बाद में इससे अलग हो गईं।
लेखन
उन्होंने आंबेडकर पर डॉ. आंबेडकरांच्या सहवासात (हिंदी: 'डॉ॰ आंबेडकर के सम्पर्क में') नामक संस्मरणात्मक एवं आत्मकथात्मक पुस्तक लिखी। उन्होंने आंबेडकर पर बनी फिल्म 'डॉ॰ बाबासाहेब आंबेडकर' में भी योगदान दिया।
निधन
आंबेडकर के निधनोपरांत वे एकाकी हो गईं। बाद में वे कुछ समय तक दलित आंदोलन से पुनः जुड़ीं। सविता माई का 29 मई 2003 को 94 साल की उम्र में मुंबई के जेजे अस्पताल में निधन हो गया।[4]
आंबेडकर पर किताबें
- बाबासाहेबांची सावली: डॉ. सविता आंबेडकर (माईसाहेब) — लेखिका: प्रा. कीर्तिलता रामभाऊ पेटकर, २०१६ [मराठी किताब]
- माईसाहेबांचे अग्निदिव्य — लेखक: प्रा. पी.व्ही. सुखदेवे [मराठी किताब]
संदर्भ
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