वार्ता:हिन्दी वर्तनी मानकीकरण

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लेखन संबंधी नीतियाँ

हिन्दी वर्तनी मानकीकरण आलेख इतना महत्त्वपूर्ण है कि इसे सन्दर्भ लेख के रूप में बनाया जा सकता है। मैंने इसी उद्देश्य से इस लेख में कई तथ्यों के विषय में शोध करके कुछ लिखना प्रारम्भ किया था, जैसे ----- तदनुसार, में हिन्दी वर्तनी की मानक पद्धति निर्धारित करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति नियुक्त की। इस समिति ने में अंतिम रिपोर्ट दी। इस समिति के सदस्यों की सूची संदर्भित परिशिष्ट में दी गई है। समिति की चार बैठकें हुईं जिनमें गंभीर विचार-विमर्श के बाद वर्तनी के संबंध में एक नियमावली निर्धारित की गई। समिति ने तदनुसार, १९६२ में अपनी अंतिम सिफारिशें प्रस्तुत कीं जो सरकार द्वारा अनुमोदित की गईं, और अंततः हिन्दी भाषा के मानकीकरण की सरकारी प्रक्रिया का श्रीगणेश हुआ। ------- "" इसी मध्य इस लेख में किसी और ने लिखना शुरू कर दिया, लिखना तो ठीक है पर जब कोई लेख लिख रहा हो तो दूसरा व्यक्ति उसमें कुछ और तथ्य सम्मिलित करे तो भाषा सम्बंधी गड़बड़ी की आशंका रहती है, इस लेख के साथ भी वही हुआ। मैंने लिखना बन्द कर दिया कि जिन सज्जन को लिखने की जल्दी है वही यहाँ लिख दें तो मेरा भी श्रम बच जाएगा....... पर आज जब इस लेख को आज का आलेख बनाकर प्रकाशित किया जा रहा है तो मुझे यह लिखना पड़ रहा है ..... कि यह लेख अभी अधूरा है...... आज का आलेख के रूप में प्रकाशित करने की स्थिति में तो बिल्कुल नहीं है..... जैसे- मैंने लिखा था कि परिशिष्ट में समिति की सूची दी जा रही है, मैंने अभी तक उसे पूरा नहीं किया है, उसमें कई महत्त्वपूर्ण नाम हैं अभी ....... और फिर समिति ने जो सुझाव दिए हैं उन्हें जब तक नहीं दिया जाए तब तक इस लेख का प्रकाशन होना बिल्कुल ठीक नहीं है। मैं जब इस लेख को लिख रहा था तो कम से कम मुझे पूरा तो कर लेने देते....... लेखकीय समाज में इस मर्यादा का पालन किया ही जाता है........ मैं जो यहाँ लिखना चाहता था वह बहुत महत्त्वपूर्ण था, मैंने तमाम नोट्स लिए थे इसे लिखने के लिए.... पर बीच में किन्हीं महाशय ने इसमें बहुत कुछ लिख डाला .... हो सकता है कि वह सब ठीक हो पर मैं कुछ और लिखना चाहता था........ मैं समिति की मूल सिफारिशों को यहाँ लिखने जा रहा था....... खैर ....... यह लेख अभी अधूरा है और इस रूप में प्रकाशित करना ठीक नहीं है........ उचित होता कि प्रकाशन से पहले मुझसे भी चर्चा कर लिया जाता ........
--डा० जगदीश व्योम ०५:५५, ११ जून २००९ (UTC)

डॉ॰साहब! आप यहां एक वरिष्ठ सदस्य हैं। आपके लिए पूरे सम्मान सहित ये संदेश लिखता हूं। कृपया इसे अन्यथा ना लें, साथ ही भूल हो तो क्षमा करें, या मुझे बता दें। एक बात तो यह, कि इस लेख के अवतरण इतिहास में आपका नाम कहीं नहीं दिखाई दिया, शायद आप किसी और लेख को बता रहे हों। इसके अलाव दूसरा यह कि शायद आपका नाम दिखा होता, तो आपसे पूछा होता या चर्चा की होती। हां आप किसी और (संभवतः अनुनाद सिंह) के बारे में लिख रहे हों। तो बेहतर होगा कि इसका उत्तर वही दें। लेकिन एक बार आपको सूचनार्थ बताता हूं। हालांकि विकिपीडिया एक मुक्त विश्वकोश है, किंतु यदि आप कोई लेख बनाने में लगे हैं (निर्माणधीन स्थिति) और आप चाहते हैं, कि उस बीच कोई और उस लेख में हस्तक्षेप ना करे, जो कि उस लेख को बिगाड़ सकता है; तब आप साँचा:प्रतीक्षा प्रयोग करें। इसे लेख के एकदम ऊपर लगाएं। किंतु इसके साथ उसको समय से (लेख पूर्ण होने पर, या कम से कम जब आप समझें, कि आपका योगदान फिल्हाल पूरा हो गया है) तब उस साँचे को हटाना ना भूलें। इससे इस प्रकार की घटनाएं नहीं होंगीं। हां अभी यह लेख आलेख स्तंभ के लिए ही चुना गया है। यदि आप इसे अच्छी लंबाई के साथ बढ़ाएं, और यह लेख निर्वाचित लेख की आवश्यकताएं पूरी करे तो निर्वाचन प्रस्ताव देकर, सम्मति प्राप्त की जा सकती है, जो कि इसे मुखपृष्ठ पर निर्वाचित लेख का स्थान दिलाएगी। आलेख तो मात्र एक दिन दिखाई देगा, किंतु निर्वाचित लेख तो १-२ माह तक रहेगा। शेष यह, कि आप रुष्ट ना हों। आपका सान्निध्य हमारे लिए अति मूल्यवान है। किसी की भी बात हो, यदि आपको बुरी लगी हो तो मैं उस की ओर से क्षमाप्रार्थी हूं।--आशीष भटनागरसंदेश १०:२२, ११ जून २००९ (UTC)