रपड़ी
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रपड़ी जिला फिरोजाबाद उत्तर प्रदेश | |
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ग्रामीण | |
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देश | भारत |
राज्य | उत्तर प्रदेश |
ज़िला | फिरोजाबाद |
संस्थापक | अज्ञात |
शासन | |
• सभा | भारतीय जनता पार्टी |
भाषा | |
• आधिकारिक | हिंदी |
समय मण्डल | IST (यूटीसी+5:30) |
डाक सूचक संख्या | 283103 |
टेलीफोन कोड | 05612 |
वाहन पंजीकरण | UP 83 |
वेबसाइट | firozabad |
शिकोहाबाद से दक्षिण किनारे यमुना नदी के निकट रपडी जागीर के अवशेष आज भी विधमान है कहा जाता है कि राव जोरावर सिंह ने रपडी को वसाय था उनके वंशजों को मोहम्मद गौरी से 1194 ईश्वर में युद्ध करना पड़ा रबड़ी जागीर के अवशेष आज भी यमुना नदी किनारे है|
राव जोरावर सिंह के राज्य का विस्तार यमुना के कारण और प्रभाव आग मुस्तफाबाद घिरोर और बरनाहल के परगने तक था राजा जयचंद को पराजित करने के पश्चात मुस्लिम सेना चंद बाहर से सन 1194 में दक्षिण की ओर चली तब उसने रबड़ी के राजा पर आक्रमण किया तथा करता में पराजित किया राजा रतन सेन के पराभव के उपरांत रबड़ी मुसलमान शासन की जागीर के रूप में रहे परंतु मुस्लिम शासकों के पराभव तथा मराठा शासकों के अभ्युदय के साथ रपड़ी का भी पराभव प्रारंभ हो गया विभिन्न मस्जिदें कब्रे कुएं बावली रपड़ी के प्राचीन वैभव के मुंह प्रमाण है अनेक खंडहरों के अवशेषों से प्राप्त शिलालेखों ने स्थानीय इतिहास पर पर्याप्त प्रकाश डाला |
इनमें से सबसे महत्वपूर्ण शिलालेख अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल का है यहां शेरशाह सूरी एवं सलीम शाह के शासन काल में अनेक भवन निर्मित हुए शाही भवनों में से एक के द्वार के चिन्ह अब भी विद्वान है जो यह संकेत देते हैं कि रपड़ी बहुत बड़ा एवं संपन्न कस्बा था एक सुविख्यात संत किट्टू शाह की दरगाह पर वार्षिक उर्स लगता है जहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु एकत्र होते हैंे यह संत एक ईश्वर के उपासक थे वह अपनी शक्ति से अनेक चमत्कार दिखाते थे यमुना को पार करने के लिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण स्थल रहा है यह नावों का एक अस्थाई पुल है जो आगरा जिले के बटेश्वर में महान पशु मेला जाने के लिए मुख्य मार्गों में से एक है
मोहम्मद खा नामक व्यक्ति द्वारा मोहम्मदाबाद जो बाद में शिकोहाबाद जाना गया की स्थापना के कारण रपड़ी महत्व होता गया के लिए के समस्त चिन्ह समाप्त हो गए और वह मत देखती रह गया है रपड़ी के लिए के खंडहर पर यमुना के किनारे एक कच्छ में दो कपड़े बनी है यह टीला शिकोहाबाद बटेश्वर मार्ग के दक्षिण की ओर है इस शताब्दी के आठवें दशक के मस्त मध्य जब सड़क पक्की हो गई थी तब इसे चौड़ा किया गया इस निर्माण की प्रक्रिया में किले का द्वार गिर गया इसी खुदाई के समय सोने की ईट प्राप्त हुई थी वहां एक ईदगाह है , यहाँ वुजुर्ग फरीदउद्दीन चिस्ती की दरगाह भी है चैत्र की फसल कटने क बाद यहाँ उर्ष का मेला लगता है दरगाह के पीछे एक ईदगाह भी है जिसकी दीवारो पर अरवी में कुरान की आयते भी लिखी हुई है पुराने समय में एक किलो मीटर के दायरे में विशाल किला बना होगा जिसके टूटे हुए पत्थर व् ईटे आज भी भिखरी हुई है एक मस्जिद तथा एक पक्का कुआ के अवशेष आज भी मौजूद है।
सन्दर्भ[संपादित करें]
1 https://m.jagran.com/uttar-pradesh/agra-city-16016478.html