रजनीश कुमार शुक्ल

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रजनीश कुमार शुक्ल

व्यवसाय शिक्षाविद, प्रोफेसर, लेखक, कवि और वर्तमान महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति
राष्ट्रीयता भारतीय
शिक्षा पीएच.डी.
आधिकारिक जालस्थल

प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल भारत के जाने माने दर्शनशास्त्री, आचार्य एवं लेखक हैं। वर्तमान में महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति[1] के रूप में कार्यरत हैं। इसके पूर्व वे भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् एवं भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के सदस्य सचिव[2] के रूप में सेवाएं दे चुके हैं। मूल रूप से वे दिनांक 26 सितंबर 1991 से वाराणसी के सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में तुलनात्मक दर्शन और धर्म के आचार्य हैं। आचार्य शुक्ल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबद्ध अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष थे।

पृष्ठभूमि[संपादित करें]

वाराणसी एवं कुशीनगर में शिक्षा प्राप्त करने वाले आचार्य शुक्ल ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से आचार्य रेवतीरमण पांडेय के निर्देशन में 1994 में दर्शनशास्‍त्र में डॉक्टरेट की उपाधि अर्जित की है। प्रखर राष्ट्रवादी चिन्तक और विचारक प्रो.शुक्ल को भारत के माननीय राष्ट्रपति जी ने जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय,गुजरात केंद्रीय विश्वविद्यालय तथा हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय की कार्य परिषद का सदस्य नामांकित किया है [3][4]। आप राजा राममोहन राय लाइब्रेरी फाउंडेशन,कोलकाता,राष्ट्रीय पुस्तक न्यास (N.B.T), राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद्(N.C.E.R.T)एवं हिंदी सलाहकार समिति,राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय,नई दिल्ली के बतौर सदस्य तथा अखिल भारतीय दर्शन परिषद् के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में भी कार्य कर रहे हैं । आप हरियाणा राज्य शिक्षा सलाहकार बोर्ड के सदस्य रूप में उच्च शिक्षा के पुनर्गठन और सुधार में सफल योगदान दे रहे हैं । आप नई दिल्ली इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, वाराणसी क्षेत्र के सलाहकार समिति के सदस्य भी हैं।[[

भारत के माननीय राष्ट्रपति जी के साथ

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आचार्य रजनीश कुमार शुक्ल के द्वारा लिखी गई कुल 14 पुस्तकें इस प्रकार हैं - 1.भारतीय ज्ञान परंपरा और विचारक 2. शिक्षा जो स्वर साध सके 3.संवाद सनातन से निरंतर 4.कांट का सौंदर्यशास्त्र 5.वाचस्पति मिश्र कृत तत्वबिंदु 6.वेस्टर्न फिलोसफी एंड इंट्रोडक्शन 7.गौरवशाली संस्कृति 8.स्वातंत्र्योत्तर भारतीय दार्शनिक पृष्ठभूमि 9.अभिनवगुप्त ऑफ फिलासफर ऑफ मिलेनियम 10.समेकित अद्वैत विमर्श 11.तुलनात्मक दर्शन 12.भारतीय दर्शन में प्राप्यकरित्वाद 13.भारतीय दर्शन के पचास वर्ष 14.प्रास्पेक्टिव आन कम्परेटिव रिलिजन। आचार्य शुक्ल की रचना भारतीय ज्ञान परंपरा और विचारक को उत्तर हिंदी संस्थान द्वारा वर्ष 2021 का आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। आचार्य शुक्ल के शताधिक शोध पत्र एवं आलेख देश और विदेश की विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। आचार्य शुक्ल के आलेख समाचार पत्र दैनिक जागरण, अमर उजाला, दैनिक भास्कर, स्वदेश एवं लोकमत समाचार के विभिन्न संस्करणों में प्रकाशित होते रहते हैं। आप विश्वविद्यालय के कुलसचिव, कार्य परिषद के सदस्य और कॉलेज विकास परिषद के निदेशक और अन्य कई महत्वपूर्ण पदों पर अपनी सेवाएं दे चुके हैं। प्रो.शुक्ल उत्तर प्रदेश के सभी राज्य विश्वविद्यालयों के स्नातकोत्तर स्तर के "राष्ट्र गौरव" नामक एक अनिवार्य कार्यक्रम तैयार करने का अमूल्य योगदान दिया है । आपने 'राष्ट्र गौरव' पुस्तक का प्रणयन किया है, जिसे लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा सहर्ष प्रकाशित किया गया है ।

चित्र:Acharya Rajaneesh Kumar Shukla.jpg
आचार्य रजनीश कुमार शुक्ल

प्रो.रजनीश कुमार शुक्ल तुलसीदास, कबीर, बुद्ध,गांधी,विनोबा जी,राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आद्य सरसंघचालक परम पूज्य डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार, श्री गुरूजी, दीनदयाल जी, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, डॉ. भीमराव अम्बेडकर, पंडित मदनमोहन मालवीय तथा पंडित विद्यानिवास मिश्र, आचार्य विष्णुकांत शास्त्री, प्रो. रेवतीरमण पांडेय आदि जैसे महापुरुषों के जीवन मूल्यों से बेहद प्रभावित हैं। इन सभी महा पुरुषों के जीवन और विचारों से आप जो अवगाहन करते हैं उससे वह नये भारत का निर्माण करना चाहते i।

    प्रो.शुक्ल हिंदी को विकासशील भाषा के रूप में देखते हैं। प्रो. शुक्ल के अनुसार हिंदी भाषा पूरी दुनिया में तीस से अधिक देशों में बोली और समझी जाती है, इस तरह हिंदी भाषा पूरी दुनिया में तीसरे स्थान पर है। हिंदी मराठी दोनों सगी बहने हैं।संस्कृत को तो जाने बिना भारत को समझा ही नहीं जा सकता । 

पुरस्कार एवं सम्मान[संपादित करें]

  • कांट त्रिशताब्‍दी सम्मान, 2004, अखिल भारतीय दर्शन परिषद
  • उत्‍तरप्रदेश भाषा सम्‍मान 2018, उत्‍तरप्रदेश हिंदी संस्‍थान, लखनऊ, उत्‍तरप्रदेश
  • करपात्र गौरव सम्‍मान 2018, धर्मसंघ काशी
  • वाग्‍योग सम्‍मान 2020 (संस्‍कृतसाहित्‍य-दर्शन एवं शिक्षा के क्षेत्र में उल्‍लेखनीय योगदान हेतु), वाग्‍योग-चेतनापीठम्, वाराणसी
  • मोस्‍ट डेडीकेटेड वाइस चांसलर अवार्ड, 2020 गोल्‍डन एम अवार्ड
  • गांधी शांति पुरस्‍कार, नीदरलैंड, 2021
  • भारती मंडन दर्शन रत्‍न सम्‍मान, वैदेही कला संग्रहालय, सहरसा (बिहार) 2021

रचनाएँ[संपादित करें]

  • कांट का सौंदर्यशास्‍त्र, नवशक्ति प्रकाशन, द्वितीय संस्‍करण, 2006, आईएसबीएन नं. 81-87904-13-5
  • वाचस्‍पति मिश्रकृतात्तवबिंदु, क्रिटिकल संस्‍करण, संपूर्णानंद संस्‍कृत विश्‍वविद्यालय, वाराणसी, 2001
  • अवेस्‍टर्न फिलॉसफी: एन इन्‍ट्रोडक्‍शन, धर्म एवं दर्शन विभाग, संपूर्णानंद संस्‍कृत विश्‍वविद्यालय, वाराणसी, 2005
  • गौरवशाली संस्‍कृति, भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद, दिल्‍ली, 1917
  • स्‍वान्‍त्र्योत्‍तर भारतीय दार्शनिक पृष्‍ठभूमि, भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद, दिल्‍ली
  • शिक्षा जो स्‍वर साध सके, वाणी प्रकाशन, दिल्‍ली 2021
  • भारतीय ज्ञानपरंपरा और विचारक, प्रभात प्रकाशन, 2021
  • (हलाँकि इनकी पीएचडी के शोधग्रंथ पर भयंकर विवाद है जिसे ये नकारते रहे हैं।)

संपादक : पत्र-पत्रिकाएँ[संपादित करें]

  • मुख्य संपादक, दार्शनिक त्रैमासिक, ऑल इंडिया फिलॉसफी एसोसिएशन की त्रैमासिक पत्रिका।(वर्ष 2002 से 2008 तक)
  • सदस्य, संपादकीय बोर्ड, संस्कृति, संस्कृत शोध संस्थान, वाराणसी की अर्धवार्षिक पत्रिका
  • कार्यकारी संपादक, जर्नल ऑफ़ इंडियन काउंसिल ऑफ़ फ़िलासॉफ़िकल रिसर्च (JICR) - 2017-2019
  • कार्यकारी संपादक, हिस्‍टोरिकल रिव्‍यू, भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद – 2017-2019
  • प्रधान संपादक, बहुवचन, महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय, वर्धा (महाराष्‍ट्र)
  • राष्ट्रीय सहारा, दैनिक जागरण, दैनिक भाष्‍कर, लोकमत, आज इत्‍यादि राष्ट्रीय समाचार पत्रों में नियमित रचनात्मक लेखन
  • ऑनलाइन ई-पत्रिकाएँ जैसे- लेखनी, प्रवक्‍ता इत्‍यादि में नियमित रचनात्मक लेखन।

अंग्रेजी लेखन[संपादित करें]

  • An Introduction to Western Philosophy
  • Abhinavagupta - Culture and Philosophy

स्कृतिक संदर्भ में मूल्य-सृजन एवं मूल्य-संकट[5] पर विचार प्रकट करते हुए प्रो शुक्ल ने व्यक्त किया है कि मनुष्‍य की मूल्‍य-चेतना का निर्माण सांस्‍कृतिक परिवेश में होता है। यद्यपि संस्‍कृति-तत्‍व भी मानवनिर्मित हैं और इनका भी निर्माण प्रयत्‍नपूर्वक होता है, किन्‍तु सांस्‍कृतिक चेतना जो समस्‍त तत्‍त्‍वों के सकल योग से निर्मित होती है, इन सभी तत्वों से विलक्षण होती है और अमूर्त रूप से अपने निर्माण के कारकों को भी प्रभावित करती है। इसके निर्माण हो जाएगी। किन्‍तु सामान्‍य रूप से इनको तीन आयामों में विभाजित या रेखांकित किया जा सकता है। ये तीन आयाम हैं- 1. मानव प्रकृति संबंध। 2. मानव तथा आध्‍यात्मिक दृष्टि। 3. मानव तथा अंतवैंयक्तिक संबंध। सामान्‍य रूप से मूल्‍यों का जगत भी इन्‍हीं तीन आयामों से संरचित होता है और इन्‍हीं को नियमित करता है। अत: विविध दृष्टियों को आधार में रखकर इन पर विचार किया जाना आवश्‍यक है। संस्‍कृति तत्‍त्‍व जिन्‍हें मनुष्‍य अपनी प्रारम्भिक स्थिति में जीवन व्‍यवहार के उपयोगी एवं आवश्‍यक अंग के रूप में विकसित करता है, उसमें सर्वप्रथम उसका साक्षात्‍कार प्रकृति या अचेतन जगत से होता है।...[6]

हिंदी के संबंध में उनका कहना है हिंदी स्‍वाभिमान की भाषा है[7] एक दो दिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद में उन्होंने व्यक्त किया हैं कि गांधी भविष्‍य के भारत का यथार्थ बने रहेंगे।[8]

प्रो. शुक्ल कहते है- सामान्‍यत: आधुनिक विचारक यह समझाते हैं कि बौद्धमत का रास्‍ता वेदानुयायी मत से नितांत अलग है क्‍योंकि आत्‍मवाद के स्थान पर अनात्‍मवाद, हिंसामूलक बलि के विरूद्ध अहिंसा, वर्ण-व्‍यवस्‍था के स्‍थान पर सर्वप्राणी समता, ईश्‍वरवाद के स्‍थान पर निरीश्‍वरवाद इत्‍यादि की नितांत विरोधी विचारसरणि को देखकर इस प्रकार के निष्‍कर्ष निकालना आश्‍चर्यजनक नहीं लगता किंतु स्‍वयं बौद्ध चिंतन में समता का उतना महत्त्व नहीं है जितना कि विषमताओं का निषेध कर विशेष व्‍यवहार एवं व्‍यवस्‍था के रूप में समरसता के भाव का प्रकटीकरण। समता का तात्तिक अस्तित्‍व बुद्ध को स्‍वीकार नहीं था क्‍योंकि ऐसी स्थिति में एक सामान्‍य प्रत्‍यय को स्‍वीकार ही करना पड़ता। इसके स्‍थान पर समता भावात्‍मक समरसता मैत्री, करूणा, मुद्रिता और उपेक्षा को चित्तवृत्ति के रूप में परिकल्पित किया गया है। समता से जोड़ने वाला तत्त्व मैत्री है।[9] बुद्ध के रास्ते पर होगी नई सभ्यता।[10] प्रो. शुक्ल का मानना हा कि हिन्दी कविता का सर्वोत्‍तम कालखंड है छायावाद[11]

 

संदर्भ[संपादित करें]

  1. Shukla, Prof Rajaneesh Kumar. "Central University List". university grants commission. अभिगमन तिथि 2022-04-21.
  2. "brief biodata prof Rajanish Shukla" (PDF). Indian Council of Philosophical Research. मूल (PDF) से 17 मई 2021 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 21 अप्रैल 2022.
  3. "Members of Executive Council of The JawaharLal Nehru University" (PDF). JawaharLal Nehru University.
  4. "50th Meeting of Executive Council" (PDF). CENTRAL UNIVERSITY OF HIMACHAL PRADESH. मूल (PDF) से 7 जुलाई 2022 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 21 अप्रैल 2022.
  5. http://www.hindisamay.com/content/11743/1/रजनीश-कुमार-शुक्ल-आलोचना-मूल्य--सृजन-एवं-मूल्य-संकट-का-सांस्कृतिक-संदर्भ.cspx
  6. http://www.hindisamay.com/content/11743/1/रजनीश-कुमार-शुक्ल-आलोचना-मूल्य--सृजन-एवं-मूल्य-संकट-का-सांस्कृतिक-संदर्भ.cspx
  7. http://hindimedia.in/hindi-is-the-language-of-self-respect-rajneesh-kumar-shukla/
  8. https://www.pravakta.com/news/gandhi-will-remain-the-reality-of-future-india-vice-chancellor-prof-three-day-national-symposium-concludes-at-rajneesh-kumar-shukla-hindi-university/
  9. http://www.hindisamay.com/content/11767/1/रजनीश-कुमार-शुक्ल-विमर्श-गौतम-बुद्ध-का-परिष्कार-करूणामूलक-सामाजिक-व्यवस्था.cspx
  10. http://news4city.com/new-civilization-willbe-on-the-way-of-buddha-prof-rajneesh-kumar-shukla/[मृत कड़ियाँ]
  11. "संग्रहीत प्रति". मूल से 22 अप्रैल 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 25 नवंबर 2020.