मोहन उप्रेती

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मोहन उप्रेती
जन्म १९२८
अल्मोड़ा, संयुक्त प्रान्त
मौत १९९७
दिल्ली
पेशा नाटककार, संगीतकार

मोहन उप्रेती (१९२८-१९९७) एक भारतीय थियेटर निर्देशक, नाटककार और संगीतकार थे। भारतीय थिएटर संगीत में उनका प्रमुख योगदान रहा है। उप्रेती को अपने गीत "बेड़ू पाको बारमासा" के लिए जाना जाता है।

मोहन उप्रेती को कुमाऊँनी लोक संगीत के पुनरोद्धार के प्रति उनके विशाल योगदान के लिए, और पुराने कुमाऊँनी गाथाओं, गीतों और लोक परंपराओं के संरक्षण के प्रति उनके प्रयासों के लिए याद किया जाता है।

जीवन-वृत्तांत[संपादित करें]

मोहन उप्रेती का जन्म १९२८ में अल्मोड़ा में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा भी वहीं से ही प्राप्त की थी। वह ट्रेड यूनियन नेता पूरन चन्द जोशी से बहुत प्रभावित हुए थे, और उन्हें अपना गुरु मानते थे। ४० के दशक में इलाहबाद विश्वविद्यालय में अध्ययन करते समय ही उन्होंने 'लोक कलाकार संघ' नामक नाट्य संघ का गठन किया।

१९४० तथा ५० के दशक में मोहन उप्रेती ने ब्रजमोहन शाह के साथ सम्पूर्ण उत्तराखण्ड क्षेत्र की यात्रा की। इस यात्रा में ही उन्होंने इस क्षेत्र के तेजी से गायब हो रहे लोक लोकगीतों, धुनों और परंपराओं को एकत्रित किया। उन्होंने पारंपरिक राम-लीला नाटकों को पुनर्जीवित कर शहरी श्रोताओं के समक्ष लाने के लिए भी कई सालों तक काम किया।

मोहन उप्रेती द्वारा १९६८ में पर्वतीय कला केन्द्र की स्थापना की गई। वह बाद में कई वर्षों तक दिल्ली में स्थित राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में शिक्षक भी रहे।

१९८० में प्रकाशित 'राजुला मालशही' महाकाव्य पर आधारित एक नाटक उनका सबसे महत्वपूर्ण काम माना जाता है। उनके अन्य महत्वपूर्ण नाटक 'नंदा देवी जागर', 'सीता स्वयंवर' और 'हरु हिट' हैं। ८० की कई टेलीविजन प्रस्तुतियों के लिए भी उन्होंने संगीत दिया, जिसमें रस्किन बॉण्ड की कहानी, 'एक था रास्टी', पर आधारित एक श्रृंखला बभी शामिल थी। उनकी रचनाओं को विशिष्ट कुमाउँनी लोक स्पर्श के लिए भी जाना जाता था।

परिवार[संपादित करें]

मोहन उप्रेती का विवाह नैमा (खान) उप्रेती से १९६९ में हुआ था। नैमा भी राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से स्नातक थी। इंडियन ओशॅन बैंड के गायक हिमांशु जोशी उनके भांजे हैं।[1]

विरासत[संपादित करें]

हर वर्ष उनकी जयंती पर उनके द्वारा स्थापित संस्था 'पर्वतीय कला केंद्र' एक नया नाटक प्रस्तुत करती है।

२००४ में, मोहन उप्रेती के निर्मित गीत, "बेड़ू पाको बारमासा" को प्रसून जोशी द्वारा कोका-कोला के विज्ञापन "ठंडा मतलब कोका कोला" में प्रयोग किया गया था। विज्ञापन में एक "पहाड़ी गाइड" इस धुन को गुनगुनाता हुआ दिखाया गया है। यह कुमाऊं रेजिमेंट का मार्चिंग गीत भी है।

२००६ में, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय ने थियेटर आलोचक, दिवान सिंह बजेली द्वारा लिखी गई उनकी आत्मकथा प्रकाशित की, जिसका शीर्षक था, "मोहन उप्रेती - द मैन एंड हिस आर्ट"।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "Lilting tunes from Kumaon" (अंग्रेज़ी में). livemint. २३ जनवरी २०१५. मूल से 21 अक्तूबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 21 अक्तूबर 2017.
  • रामानाथन, जया (२१ नवंबर २००६). "Revolutionary artist" [क्रांतिकारी कलाकार]. द हिन्दू. अभिगमन तिथि 19 अक्तूबर 2017.