मानव समझ के संबंध में निबंध

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से

मानव समझ विषयक निबंध (An essay concerning Human Understanding), जिसे मनुष्य स्वभाव के संबंध में निबंध के रूप में भी जाना जाता है, जॉन लॉक द्वारा मानव ज्ञान और समझ की नींव से संबंधित एक रचना है। यह पहली बार 1689 में (हालांकि 1690 में दिनांकित ) मुद्रित शीर्षक एन एसे कंसर्निंग ह्यूमेन (Humane) अंडरस्टैंडिंग के साथ प्रकाशित हुआ। उन्होंने जन्म के समय मन को एक रिक्त पट्टी, स्लेट (तबुला रासा, कोरी पट्टीका हालांकि उन्होंने इन शब्दों का उपयोग नहीं किया था) के रूप में वर्णित किया है, जिसे बाद में अनुभव के माध्यम से भरा जाता है। निबंध आधुनिक दर्शन में इंद्रियानुभववाद के प्रमुख स्रोतों में से एक था, और इसने डेविड ह्यूम और जॉर्ज बर्कले जैसे कई प्रबुद्ध, ज्ञानोदय दार्शनिकों को प्रभावित किया।

निबंध की पुस्तक I सहज प्रत्यय (जन्मजात विचारों, innate ideas) की तर्कबुद्धिवाद धारणा का खंडन करने का लॉक का प्रयास है। पुस्तक II लॉक के प्रत्यय के सिद्धांत को पेश करती है, जिसमें निष्क्रिय रूप से प्राप्त सरल प्रत्ययों (simple ideas) - जैसे "लाल," "मीठा," "गोल" - और सक्रिय रूप से निर्मित जटिल प्रत्यय (complex ideas), जैसे संख्याएं, कारण एवं प्रभाव, अमूर्त प्रत्यय तथा द्रव्यों, अस्मिता और विविधता के प्रत्यय के बीच उनका अंतर शामिल है। लॉक काय के वास्तविक रूप से विद्यमान प्राथमिक गुणों (primary qualities), जैसे आकार, गति और सूक्ष्म कणों की व्यवस्था, और द्वितीयक गुणों (secondary qualities) के बीच भी अंतर करता है जो "हमारे अंदर विभिन्न संवेदनाएँ पैदा करने की शक्तियाँ" हैं [1] जैसे "लाल" और "मीठा"। " लॉक का दावा है कि ये द्वितीयक गुण, प्राथमिक गुणों पर निर्भर हैं। वह व्यक्तिगत अस्मिता का एक सिद्धांत भी प्रस्तुत करते हैं, एक बड़े पैमाने पर मनोवैज्ञानिक मानदंड पेश करते हुए। पुस्तक III भाषा से संबंधित है, और पुस्तक IV ज्ञान से संबंधित है, जिसमें अंतर्ज्ञान, गणित, नैतिक दर्शन, प्राकृतिक दर्शन ("विज्ञान"), विश्वास और मत शामिल है।

  1. Essay, II, viii, 10