भारत के भूकंपीय क्षेत्र

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भारतीय उपमहाद्वीप विनाशकारी भूकंपों का इतिहास रहा है।[1] भूकंपों की उच्च आवृत्ति और तीव्रता का प्रमुख कारण यह है कि भारतीय प्लेट लगभग ४७ मिमी/वर्ष की दर से एशिया की ओर बढ़ रही है।[2] भारत के भौगोलिक आंकड़े बताते हैं कि लगभग ५८% भूमि भूकंप की चपेट में है। विश्व बैंक और संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि २०५० तक भारत में लगभग २०० मिलियन नगरवासी तूफान और भूकंप की चपेट में आ जाएँगे।[3] भारत में भूकंपीय क्षेत्रों (ज़ोन २, ३, ४ और ५) में विभाजित किया गया है, जिसमें पहले देश के लिए पाँच या छह ज़ोन शामिल थे। वर्तमान ज़ोनिंग मानचित्र के अनुसार, ज़ोन ५ भूकंप के उच्चतम स्तर को दर्शाता है जबकि ज़ोन २ भूकंप के निम्नतम स्तर को दर्शाता है।

राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केन्द्र[संपादित करें]

राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा संचालित भारत सरकार की एक संस्था है। जिसमें भूकंप विज्ञान से संबंधित विषयों के क्षेत्रों में विभिन्न गतिविधियों द्वारा निपटान किया जाता है।

भूकंपीय क्षेत्रों का वर्गीकरण[संपादित करें]

सर्वाधिक भूकंपीय तीव्रता वाले क्षेत्र २, ३, ४ और ५ क्रमशः VI (या उससे कम), VII, VIII और IX (और ऊपर) भूकंप प्रभावित क्षेत्रों से विभाजित करता है। है, प्रत्येक प्रभावित क्षेत्रों को टिप्पणियों के आधार पर किसी विशेष स्थान पर भूकंप के प्रभावों को इंगित किया जाता है।

ज़ोन १[संपादित करें]

चूँकि भारत का भूकंप प्रभावित क्षेत्रों में वर्तमान विभाजन ज़ोन १ का उपयोग नहीं करता है, भारत के किसी भी क्षेत्र को ज़ोन १ के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया है।

ज़ोन २[संपादित करें]

यह क्षेत्र MSK VI या उससे कम के लिए उत्तरदायी है और इसे कम क्षति जोखिम क्षेत्र के रूप में वर्गीकृत किया गया है। (IS) कोड जोन २ के लिए ०.१० का एक क्षेत्र कारक प्रदान करता है। यह भूकंप होने की कम संभावना वाला क्षेत्र है। बैंगलोर, हैदराबाद, कोरोमंडल तट, मध्य भारत का कुछ छेत्र और तिरुचिरापल्ली जैसे शहर इस क्षेत्र के अन्तर्गत आते हैं।

ज़ोन ३[संपादित करें]

इस क्षेत्र को मध्यम क्षति जोखिम क्षेत्र के रूप में वर्गीकृत किया गया है जो MSK VII के लिए उत्तरदायी है। (IS) कोड जोन ३ के लिए ०.१६ का एक क्षेत्र कारक प्रदान करता है। चेन्नई, मुंबई, कोलकाता और भुवनेश्वर जैसे कई मेगासिटी इस क्षेत्र के अन्तर्गत आते हैं।

ज़ोन ४[संपादित करें]

इस क्षेत्र को उच्च क्षति जोखिम क्षेत्र कहा जाता है और MSK VIII के लिए उत्तरदायी क्षेत्रों को वर्गीकृत करता है। (IS) कोड जोन ४ के लिए ०.२४ का एक जोन कारक प्रदान करता है। जम्मू और कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम, भारत-गंगा के मैदानों के हिस्से (उत्तरी पंजाब, चंडीगढ़, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, तराई, बिहार का एक बड़ा हिस्सा), उत्तरी बंगाल, सुंदरवन) और देश की राजधानी दिल्ली जोन ४ के अन्तर्गत आते हैं।

ज़ोन ५[संपादित करें]

उन क्षेत्रों को जोड़ता करता है जहाँ एमएसके IX या इससे अधिक तीव्रता वाले भूकंपों का सबसे अधिक जोखिम है। आईएस कोड ज़ोन ५ के लिए ०.३६ का जोन कारक प्रदान करता है। संरचनात्मक रूप से इस कारक का उपयोग ज़ोन ५ में भूकंप प्रतिरोधी संरचनाओं को आकार देने के लिए करते हैं। कश्मीर के क्षेत्र, पश्चिमी और मध्य हिमालय, उत्तर और मध्य बिहार, उत्तर-पूर्वी भारतीय क्षेत्र, कच्छ का रण और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह इसीके अन्तर्गत आते हैं।

संदर्भ[संपादित करें]

  1. "Earthquake risk: Check which parts of India are in top seismic zone".
  2. "भूकंप के खतरे और भारत और एशिया के बीच टक्कर". मूल से 2006-09-19 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2006-05-13.
  3. "Indian cities under threat of storms & earthquakes by 2050: World Bank & United Nations". The Times Of India. 2011-12-09.