फ्लोरा और मारिया

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फ्लोरा और मारिया कोर्डोबा में शहीद हुई नौ ईसाई महिलाओं में पहली दो थी, जिन्हें इस्लाम की निंदा के आरोप में एक इस्लामिक न्यायाधीश के सम्मुख प्रस्तुत करने से पहले कैद किया गया था। हालांकि पहले उन्हें "वेश्याओं के रूप में सड़कों पर फेंक दिए जाने" की धमकी दी गयी थी, लेकिन अंततः उनके सर काट दिए गए। उन्हें २४ नवम्बर को याद किया जाता है।[1]

फ्लोरा[संपादित करें]

फ्लोरा की माँ ईसाई तथा पिता मुसलमान थे। फ्लोरा की बाल्यावस्था में ही उसके पिता की मृत्यु हो गयी थी, और उसकी परवरिश एक ईसाई की तरह ही हुई थी। उसके बड़े भाई ने उसे इस्लाम कबुलवाने की बहुत नाकाम कोशिशें की और फिर अंत में अधिकारियों के आगे समर्पण करवा दिया। फ्लोरा को कैद किया गया और उसे इस्लाम की शिक्षा देने के लिए एक मुस्लिम विद्वान को नियुक्त किया गया, लेकिन वह कैद से ईसाई बस्तियों की ओर भागने में कामयाब रही।

मारिया[संपादित करें]

मारिया ईसाई पिता और मुस्लिम माँ की संतान थी। उसकी माँ शादी के कुछ समय बाद ईसाई बन गयी थी। स्वधर्म त्याग के आरोप से डर कर पति-पत्नी अपने दोनों बच्चो के साथ अपने शहर एलजी का त्याग कर फ्रोनिंस के गाँव में आकर बस गए। मारिया ने अपनी माँ को बचपन में ही खो दिया, उसके पिता ने उसे कटेकुला के कॉन्वेंट में भेज दिया। कॉन्वेंट के मर्मज्ञ, आर्टेमिया, ने मारिया को बताया कि कैसे वह बीते ३० सालों में मुस्लिम शासकों द्वारा अपने दो पुत्रों की मृत्युदंड की साक्षी बन चुकी थी। इस बात ने लड़की पर गहरा असर छोड़ा. 

मारिया के बड़े भाई, वलाबंसस (Walabonsus), ने भी सेंट फेलिक्स के मठ पर धार्मिक शिक्षा प्राप्त की थी। जब मारिया को कॉन्वेंट और वलाबंसस को मठ भेजा गया था तब वे बिछड़ गए थे। वे वापस तब मिले जब वलाबंसस की नियुक्ति मरीया के कॉन्वेंट में पर्येवेक्षक के रूप में हुई। वलाबंसस को १६ जुलाई ८५१ को मुस्लिम अधिकारियों ने मार डाला। उनकी शहादत के साथ-साथ आर्टेमिया की कहानी ने मारिया को उसके भाई के नक्शेकदम पर चलने को प्रेरित किया।

कारावास और शहादत[संपादित करें]

फ्लोरा और मारिया की मुलाक़ात सेंट एक्सिसेल के चर्च में हुई. उन्होंने तय किया कि वे मिल कर इस्लामिक अत्याचार के विरुद्ध आवाज उठाएंगे.   उन्होंने इस्लामिक नायाधिश के समक्ष ऐसा किया भी और उन्हें कैद कर लिया गया. 

जेल में, फ्लोरा को पूर्ण माफ़ी की पेशकश की गयी, अगर वह इस्लाम को स्वीकार ले. लेकिन फ्लोरा ने ईसाई बने रहना पसंद किया. उसकी इस पसंद को स्वीकार नहीं किया गया क्योंकि इस्लामिक कानून के अनुसार एक मुस्लिम माता या पिता की संतान को अपने धर्म के रूप में इस्लाम को ही स्वीकारना होता है.   Sabigotho प्रायः फ्लोरा व मारिया से जेल में मिलने जाती, यहाँ तक की उनके साथ एक रात भी बिताई.वह दोनों सिपाहियों को सांत्वना ही नहीं देना चाहती थी, उनकी मरने की इच्छा भी मजबूत कर रही थी .

शरीयत कानून के अनुसार, फ्लोर और मरीया को दो अलग-अलग अपराधों का दोषी पाया गया. मारिया को  स्वधर्म त्याग के लिए और मरीया के लिए निन्दा के आरोप में मार दिया गया। फांसी से पहले  इन युवा महिलाओं को धमकी दी गई कि उन्हें  "वेश्याओं के रूप में सडक पर फेंक दिया जाएगा". यह किसी कुँवारी के लिए एक असहनीय सजा थी. उन्हें 24 जुलाई 851 को  मौत की सजा दी गयी.

विरासत[संपादित करें]

फ्लोरा व मारिया कोरडोबा की उन नौ ईसाई शहीद महिलाओं में  पहली दो शहीद है, जिन्हें कोरडोबा के  Eulogius में संतों के स्मारक में वर्णित किया गया है। उनके उदाहरण ने अन्य ईसाईयों को शहीद होने के लिए प्रेरणा दी ।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "संग्रहीत प्रति". मूल से 23 जनवरी 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 जनवरी 2018.

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