नारा

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नारा का शाब्दिक अर्थ उद्घोष/बुलंद आवाज़ है। एक नारा एक यादगार आदर्श वाक्य या वाक्यांश है जिसका उपयोग एक कबीले, राजनीतिक, व्यावसायिक, धार्मिक और अन्य संदर्भ में एक विचार या उद्देश्य की दोहरावदार अभिव्यक्ति के रूप में किया जाता है, जिसका लक्ष्य जनता या अधिक परिभाषित लक्ष्य समूह के सदस्यों को राजी करना है।

नारे सामाजिक आंदोलनों के लिए बहुत प्रभावी हथियार हैं। इनमें असंख्य लोगों की भावनाओं को जाग्रत उत्तेजित और आदोलित करने की शक्ति होती है। जब लोग सैकड़ों हजारों या लाखों की संख्या में इकट्ठे होते हैं तो ये बहुत जोशीली भाषा में अपने भाव प्रकट करते हैं। वहाँ उपस्थित आम लोग, जिनका उस आंदोलन से कोई लेना-देना नहीं होता वे भी भावनाओं में बहकर उनके साथ नारे लगाने लगते हैं या उनकी भावनाओं का समर्थन करने लगते हैं। जो लोग समर्थक या आंदोलनकारी होते हैं, वे तो उन नारों को सुनकर आँधी और तूफान बन जाते हैं और कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं। यहाँ तक कि अपना जीवन भी अर्पित कर देते हैं।

भारत की आजादी में भी हमारे क्रांतिकारी वीरों के द्वारा दिए गए नारों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जब सुभाष चन्द्र बोस ने नारा दिया- "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा" तो इस नारे को सुनकर हमारे देश के अनगिनत नर-नारियों ने अपनी धन-संपत्ति और जीवन तक कुर्बान कर दिया। महात्मा गाँधी ने नारा दिया- "करो या मरो"। इस नारे ने भारतवासियों को अपना सब कुछ बलिदान करने की प्रेरणा दी।

नारा-लेखन की विशेषताएँ[संपादित करें]

प्रभावी एवं आकर्षक नारा हेतु निम्नलिखित विशेषताओं का होना आवश्यक हैं:

1. संक्षिप्तता एवं सरलता— नारा लेखन की अत्यंत महत्त्वपूर्ण विशेषता है। यह दो या चार पंक्तियों वाला होना चाहिए, जिससे यह लोगो के स्मृति पटल पर अपनी अमिट छाप छोड़ सके।

2 लयात्मकता: नारा-लेखन करते समय लयात्मक शब्दों का प्रयोग किया जाना चाहिए। लयबद्ध तथा तुकात शब्दों का चयन नारा लेखन को प्रभावी एवं आकर्षक बनाने में सक्षम होता है।

3. विषय से संबद्धता: नारा-लेखन करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि वह विषय से पूर्णरूप से संबद्ध हो। अतः जिस विषय पर नारा लिखा जा रहा है, वह विषय पूर्णतः स्पष्ट होना चाहिए, जिससे नारा-लेखन में लेखक अपनी बात को स्पष्ट रूप से प्रकट कर सकें।

4. सार्थकता: नारा लेखन की महत्त्वपूर्ण विशेषता है। नारा-लेखन में उचित एवं सार्थक अभिव्यक्ति क्षमता का होना

कुलचिह्न में नारे[संपादित करें]

कुलचिह्नों में, विशेषतः स्कॉटिश कुलचिह्नों में नारों का इस्तेमाल उसी तरह होता है, जैसे कि आदर्श-वाक्य प्रयुक्त होते हैं। जहां आदर्श-वाक्यों के कई अलग मूल हो सकते हैं, वहीं नारों का उद्गम, रणनाद या युद्ध-घोष के रूप में या उनका प्रतिनिधित्व करने के लिए हुआ माना जाता है। वे आम तौर पर हथियारों के आवरण पर चोटी के ऊपर प्रदर्शित होते हैं।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]