दांते एलीगियरी
दांते एलीगियरी | |
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एलीगियरी, चित्र: गियोट्टो द्वारा फ्लोरेंस के बार्जेलो पैलेस में। यह प्राचीनतम चित्र दांते के जीवनकाल में ही, उनके मूल स्थान को छोड़ने से पूर्व बनाया गया था। | |
जन्म | मध्य मई से मध्य जून १२६५ फ्लोरेंस |
मृत्यु | 14 सितम्बर 1321 रवेना, इटली | (उम्र 56 वर्ष)
व्यवसाय | विचारक, कवि, राजनीतिक नेता, प्रशासक |
राष्ट्रीयता | इतालवी |
प्रभावित
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दांते एलीगियरी (मई/जून १२६५ – १४ सितंबर, १३२१) मध्यकाल के इतालवी कवि थे। ये वर्जिल के बाद इटली के सबसे महान कवि कहे जाते हैं। ये इटली के राष्ट्रकवि भी रहे। उनका सुप्रसिद्ध महाकाव्य डिवाइन कॉमेडिया अपने ढंग का अनुपम प्रतीक महाकाव्य है।[1] इसके अतिरिक्त उनका गीतिकाव्य वीटा न्युओवा, जिसका अर्थ है नया जीवन, अत्यंत मार्मिक कविताओं का एक संग्रह है, जिसमें उन्होंने अपनी प्रेमिका सीट्रिस की प्रेमकथा तथा २३ वर्षों में ही उसके देहावसान पर मार्मिक विरह कथा का वर्णन किया है। इनका जन्म यूरोप में, इटली में हुआ था। ये फ्लोरेंस के नागरिक थे। उनका परिवार प्राचीन था, फिर भी उच्चवर्गीय नहीं था। उनका जन्म उस समय हुआ जब मध्ययुगीन विचारधारा और संस्कृति के पुनरुत्थान का प्रारम्भ हो रहा था। राजनीति के विचारों और कला संबंधी मान्यताओं में भी परिवर्तन हो रहा था।
दांते इटली के सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं जिनके संबंध में अंग्रेज़ कवि शेली ने कहा है कि,
दांते का काव्य उस सेतु के समान है जो काल की धारा पर बना है और प्राचीन विश्व को आधुनिक विश्व से मिलाता है।
दांते ने लैटिन भाषा में ना लिखकर साधारण बोलचाल की इतालवी भाषा में अपना महाकाव्य लिखा मातृभाषा और लोकप्रचलित भाषा को अपनी महान कृतियों से गौरवान्वित किया। यह कार्य तुलसीदास के रामचरितमानस के भाषा में लिखने के समान था। वास्तव में यह समय विश्वभर में लोकभाषा की प्रतिष्ठा के आन्दोलन का समय था। भारत में भी रामानंद, ज्ञानेश्वर, नामदेव, विद्यापति, कबीर, सूर, तुलसीदास, इत्यादि ने इसी प्रकार लोकभाषा में साहित्य रचना का आन्दोलन किया।[2]वास्तव में दांते का यह कार्य युगपरिवर्तन का शंखनाद था। इतालवी भाषा में डिवाइन कॉमेडिया द्वारा दांते का स्थान अमर है।
दांते केवल कवि और विचारक ही नहीं थे, वरन वे राजनीतिक नेता और प्रशासक भी थे। उन्होंने फ्लोरेंस राज्य पर शासन भी किया। परन्तु उनके कला और काव्य-शास्त्र संबंधी विचार उनकी कृति दे वल्गरी एलोक्युओ में प्राप्त होते हैं। वे उत्कृष्ट कविता से ही संतुष्ट ना होकर यह भी बताते हैं, कि सर्वोत्कृष्ट कविता किन बातों पर निर्भर करती है। प्रेम जैसे विषयों को और लोकभाषाओं को अपनी रचनाओं में महत्त्व प्रदान करके उन्होंने ग्रीक और लैटिन परम्पराओं के विरुद्ध एक क्रांतिकारी पदान्यास किया।
दांते के विचार से परिष्ठित सौष्ठवपूर्ण भाषा, उत्तम अभिव्यंजना शैली तथा उपयुक्त विषयवस्तु का सामंजस्य होने पर ही श्रेष्ठ रचना संभव हो सकती है। इस प्रकार दांते ने सर्वश्रेष्ठ रचना के लिए भद्दे और ग्राम्य शब्दों को छोड़कर लोकभाषा से और शिष्टभाषा से भी उत्तम शब्दों का चयन कर अपने काव्य की रचना की है। दे वल्गरी एलोक्युओ ग्रन्थ की जॉर्ज सेंट्स्बरी ने भूरि-भूरि प्रशंसा की है।[3] दांते के बाद इटली में उतना बड़ा महत्त्वपूर्ण काव्य चिन्तक क्रोचे के पूर्व नहीं हुआ।
परिचय
[संपादित करें]आलीग्यारी दाँते की ग्रीक तथा लातीनी साहित्य के सिवा धर्मविज्ञान में भी उसकी विशेष रुचि थी। राजनीति में वह नरम दल का अनुयायी और समर्थक था किंतु सन् १३०१ में जब गुएल्फों के क्रांतिकारी दल द्वारा इसके पक्ष की पराजय हुई, तब दाँते तथा उसके साथियों को देशनिकाले का दंड भोगना पड़ा। इस सजा के बाद दुर्भाग्य से यदि वह फ्लोरेंटाइन सरकार के हाथ पकड़ लिया जाता तो उसके जीवित जला दिए जाने तक की संभावना थी। इस समय से मृत्यु पर्यंत वह एक स्थान से दूसरे और दूसरे से तीसरे एक एक तीर्थयात्री की या करीब करीब एक भिखारी की तरह बराबर भटकता रहा। इन दिनों उसकी स्थिति पतवारविहीन नौका की तरह हो गई थी। दर दर की ठोकरें खाते हुए उसने बड़ी कटुता के साथ अनुभव किया कि दूसरे के घर की रोटी कितनी स्वादहीन होती है और पराए घर की सीढ़ियों पर चढ़ते उतरते रहने में कितनी पीड़ा का अनुभव होता है। सन् १३१६ में फ्लारेंस की ओर से सार्वजनीन राजक्षमा की घोषणा की गई और किन्हीं अपमानजनक शर्तों पर उसे फ्लोरेंस लौटने की अनुमति भी दी गई। उसने इसे ठुकरा दिए और अंत तक प्रवास में ही जीवनयापन का निश्चय किया। सन् १३२१ में रावेन्ना में उसकी मृत्यु हुई और वहीं वह दफनाया गया। रावेन्ना के अधिकारी आज भी उसके शव को उसकी जन्मभूमिवालों को लौटाने के लिए तैयार नहीं, जिन्होंने उसके साथ ऐसा निंदनीय व्यवहार किया था।
दाँते के जीवन के साथ दो स्त्रियों के नाम घनिष्ठ रूप से संबंद्ध हैं। एक है बियात्रिस पोर्टिनारी और दूसरी जेम्या दोनाती। पहली उसकी युवावस्था की प्रेयसी थी जिसे उसने उस सम देखा था जब वह केवल नौ वर्ष की थी। साइमन डी बार्डी के साथ बियात्रिस का विवाह हो जाने तथा थोड़े ही समय के भीतर सन् १२९० में उसकी मृत्यु हो जाने के बाद भी दाँते उसके अनुराग में डूबा रहा। दूसरी महिला, जेम्या, उसकी विवाहिता पत्नी थी जिसके साथ उसका विवाह सन् १२७७ में हुआ था। दाँते के निर्वासित होने पर उसने उसका साथ नहीं दिया। स्पष्ट है कि दाँते उसके व्यवहार और रंग ढंग से संतुष्ट न था और बाद में संभवत: उससे घृणा भी करने लगा था।
कृतियाँ
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दाँते की रचनाओं की सुविधा की दृष्टि से हम तीन भागों या कालों में बाँट सकते हैं। प्रथम भाग में वे कृतियाँ रखी जा सकती हैं जिनमें यौवन का उत्साह और बियात्रिस के प्रति उसके उत्कट अनुराग का धार्मिक रूपांतरण दृष्टिगोचर होता है। इसकी अवधि मोटे तौर पर १२८३ से १२९० तक मानी जा सकती है। इस काल की सबसे मुख्य रचना विटा नुओवा है। दूसरा भाग वियात्रिस की मृत्यु के बाद शुरू होता है। इसका विस्तार १२९१ से १३१३ तक रखा जा सकता है। इस काल में उसका जीवन निराशा, दु:ख एवं विश्वास पर अस्थायी रूप से तर्कबुद्धि का प्राधान्य छा गया और उसका झुकाव दर्शन तथा विज्ञान की और अधिक हो गया। वह राजनीतिक झगड़ों की कटुता में एक दाँव पेचों या योजनाओं में लिप्त होता गया। इस काल की मुख्य रचनाएँ हैं - दि कॉनवीवियो, दि मॉनर्किया, दि इपिसिल्स आदि। सम्राट् हेनरी सप्तम से दाँते ने बड़ी बड़ी आशाऍ बाँध रखी थी जिनपर उसकी मृत्यु ने पानी फेर दिया। उसकी समस्त योजनाएँ एकाएक समाप्त हो गई किंतु गनीमत यही रही कि वे उसका संपूर्ण हौसला पस्त न कर सकीं। उसने एक बार फिर आध्यात्मिक संतुलन की ओर कदम बढ़ाया। युवावस्था के विचार और विश्वास उसमें पुन: जाग उठे और वह दिवंगत बियात्रिस की पवित्रीभूत आत्मा की उपासना की ओर और भी दृढ़ता से उन्मुख हो उठा। 'डिवाइन कॉमेडी' की कितनी ही कविताओं में इसके प्रमाण बिखरे पड़े हैं। दाँते की रचनाओं का यह तीसरा काल १३१४ से १३२१ तक, याने उसकी मृत्यु के समय तक, माना जा सकता है।
'दि विटा नुओवा' को हम इटली के प्रथम प्रेमकाव्य की संज्ञा दे सकते हैं। इसमें कविहृदय की उक्त भावनाओं के मनोवैज्ञानिक विश्लेषण की झलक हमें देख पड़ती है। बियात्रिस के प्रथम दर्शन के बाद ही किस तरह उसके नए जीवन का आरंभ हुआ, उसके हृदय में किस तरह क्रम क्रम से इस नारी के सौंदर्य एवं माधुर्य की भावना प्रबलतर हाती गई, धीरे धीरे वह किस तरह उसकी आशाओं तथा प्रेम-भक्ति-उपासना का केंद्र बनती गई, उसी मृत्यु पर उसे कितनी मानसिक वेदना और आकुलता हुई और किस प्रकार उसका पार्थिव प्रेम अंत में दिव्य भक्ति एव पूजाभाव में परिणत होता गया, इसकी मनोरम झाँकी इस काव्य में देखी जा सकती है। बियात्रिस की मृत्यु के बाद उसका ध्यान कुछ वर्षों के लिए इहलौकिक भावनाओं, विचारों तथा स्वार्थों की ओर गया और वह निराशाओं अथवा संशयों के बीच हिलोरे खाने लगा। यह हम उसकी दूसरी रचना 'कॉनबाइवों' में देख सकते हैं। इन दोनों रचनाओं में बियात्रिस कहाँ और कब एक अलौकिक सौंदर्य की प्रतिमा प्रतीत होती है और कहाँ वह मात्र एक दार्शनिक अथवा धार्मिक दृष्टि से कल्पित दिव्य छाया सी देख पड़ती है, इसका विवेचन करना अनावश्यक है। इतना ही कहना अलम् होगा कि 'विटा नुओवा' सामान्य प्रेमगाथा न होकर एक उच्च सात्विकता एव श्रद्धा (फेथ) की ओर कवि का मानसिक उन्नयन है। इसमें संदेह नहीं कि आशा निराशाओं के विविध अंतर्द्वंद्वों के बावजूद दाँते का हृदय बार बार इसी ओर प्रत्यावर्ती होने के लिए सचेष्ट होता जान पड़ता है। वस्तुत: काव्य के अंतिम भाग से ही आभास मिलने लगता है कि कवि के मानस चक्षु पर उस पारलौकिक जगत् की छाया पड़नी आरंभ हो चुकी थी जिसका केंद्रबिंदु बियात्रिस ही थी और जिसका परिपाक उसके 'डिवाइन कॉमेडी' नामक काव्य में हुआ।
दाँते की लातीनी रचनाओं में 'दे मोनार्किया' विशेष उल्लेखनीय है। इसमें दिखलाया गया है कि साम्राज्य की आवश्यकत एक तरह से ईश्वरसमर्थित है। उनमें राज्य तथा चर्च या धार्मिक संस्था के पृथक् पृथक् क्षेत्र का प्रतिपादन किया गया है और इस बात पर बल दिया गया है कि पोप की सत्ता केवल धार्मिक मामलों तक ही सीमित रहनी चाहिए। उसे पत्रसंग्रह 'इपिसिल्स' में से भी कई पत्रों में इसी आशय के विचार प्रकट किए गए हैं।
दाँते के पक्ष विपक्ष में काफी आलोचनाएँ हुई जिनके उसकी कीर्ति कभी कभी मलिन हो जाती सी दिखाई पड़ती थी। फिर भी इसमें संदेह नहीं कि वह महान कवि था जिसने अपने परवर्ती अनेक कवियों तथा साहित्यकारों को व्यापक रूप से प्रभावित किया। समय बीतने पर अनेक विद्वानों और विचारकों ने उसकी भूरि भूरि प्रशंसा की है जिससे आज विश्व के साहित्यकारों तथा कवियों में उसे यथेष्ट ऊँचा स्थान देने में सहायता मिलती है।
चित्र दीर्घा
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आन्द्रेय डेल कैस्टैग्नो द्वारा १४५० ई में बनाई हुई मुराल।
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दांते का एक चित्र, प्लाज़ो देइ ग्युडिसी, फ्लोरेंस से।
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दांते एलिगियेरी
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ ब्लूम, हैरोल्ड (१९९४). द वेस्टर्न कैनन.
- ↑ "इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के जालस्थल पर". मूल से 19 जून 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 22 मई 2009.
- ↑ सेंट्स्बरी, जॉर्ज. ए हिस्ट्री ऑफ क्रिटिसिज़्म. प्रथम (प्रथम संस्करण). पृ॰ ४४४.
दांते एलीगियरी (1265 - 1321) | ||
लैटिन भाषा में कार्य: डी वल्गारी एलोक्वेंटा - डी मोनार्किया - एक्लोग्यूस - लेटार्स | ||
इतालवी भाषा में कार्य: ला वीटा न्युओवा - ले रिमे - कॉन्विवियो | ||
डिवाइन कॉमेडी: इन्फर्नो - पुर्गातोरियो - पैरादिसो |
बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]जीवनी
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