जल प्रौद्योगिकी केन्द्र

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली में स्थित जल प्रौद्योगिकी केन्द्र (डब्ल्यू.टी.सी.), 1969 में कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय (डेविस) संयुक्त राज्य अमेरिका के तकनीकी सहयोग और फोर्ड फाउन्डेशन के आंशिक वित्तिय सहायता से बनी एक ऐसी अंतर विभागीय सुविधा है जो अनुसंधान, अध्यापन, प्रशिक्षण एवं विस्तार के लिए कार्य करती है।

यह केन्द्र एक मात्र ऐसी संस्था है जो फार्म स्तर पर जल प्रबंधन, वृहद् सिंचाई परियोजना तथा जल ग्रहण क्षेत्र प्रबन्धन से जुड़े विभिन्न तरीकों के कार्यकलापों पर कार्य करती है। यह प्रांतीय और राष्ट्रीय स्तरों पर जल प्रबंधन सेसंबंधित विभिन्न पहलुओं पर किसानों, नीति निर्धारकों और प्रशासकों को दिशा-निर्देश देती है। यह केन्द्र भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् के शोध संस्थानों को कृषि के क्षेत्र में जल-प्रबंधन की सलाह प्रदान करता है। कृषि जल निकास की अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना का मुख्यालय भी यहाँ रहा है। प्रारंभिक वर्षों में केन्द्र की अनुसंधान वरीयता जल प्रबंधन के लिए कृषि आधारित तकनीकियों को विकसित करना था। कमांड एरिया डेवलपमेंट प्रोग्राम के पहले से इस केन्द्र ने 1974 में सिंचाई परियोजना क्षेत्रों में जल वितरण एवं प्रबंधन के लिए वैज्ञानिक निर्देशों के विकास को भीशामिल किया। अनेक सिंचित प्रभावित क्षेत्रों में अनुसंधानों एवं दूरगामी कार्यक्रमों द्वारा वृहद् सिंचाई परियोजनाओं में जल का प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त किया गया। इस लाभदायक अनुभव और ज्ञान से कई किसानों, सहकारी समितियों, वृक्षारोपण प्राधिकरणों, नदी घाटी और अनेक संस्थाओं ने ही नहीं बल्कि सोन, नागार्जुन सागर, शारदा सहायक और माही सिंचाई परियोजनाओं के अन्तर्गत कृषि क्षेत्रों ने भी लाभ उठाया।

उद्देश्य[संपादित करें]

केन्द्र के निम्न उद्देश्य हैः

  • फसल जल प्रबन्धन के सभी क्षेत्रों, जैसे अधिक किफायत से पानी और भूमि संसाधनों केउपयोग द्वारा सिंचित एवं बारानी क्षेत्रों में अधिक से अधिक पैदावार लेने के लिए आधारभूतऔर मौलिक अनुसंधान करना।
  • कृषि विश्वविद्यालयों, केन्द्रीय एवं प्रादेशिक विभागों तथा अन्य संस्थाओं को अध्यापन, अनुसंधान, प्रसार क्षेत्रों में कार्यरत कर्मचारियों के लिए जल प्रबंधन के विभिन्न स्तरीयकार्यक्रमों का प्रशिक्षण देना।
  • जल प्रबन्धन के विकास और प्रसार के लिए अनुसंधान, अध्यापन और विस्तार कार्यक्रमों मेंकृषि विश्वविद्यलयों और अन्य संस्थाओं को सहयोग देना। उचित प्रकाशनों के द्वारा फसल जलप्रबंधन और संबंधित विषयों पर अनुसंधान उपलब्धियों और प्रौद्योगिकियों को प्रसारित करना तथा समय-समय पर गोष्ठियों, सम्मेलनों और कार्यशालाओं का आयोजन कर संबंधितसूचनाओं का आदान-प्रदान करना।
  • कृषि विश्वविद्यालयों, सिंचाई विभागों, कृषि विभागों, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (भा.कृ.अनु.परि.) के विभिन्न संस्थानों, जल वितरक संस्थाओं के कर्मचारियों कीकार्यकुशलता में वृद्धि के लिए सहयोग देना।

अनुसंधान[संपादित करें]

जल प्रौद्योगिकी केन्द्र के अनुसंधान कार्यक्रम में विभिन्न स्तरीय जल प्रबन्धन की क्षमताबढ़ाने, भूमि एवं भूमिगत जल स्रोतों का विकास, नलकूपों द्वारा भूमिगत जल के प्रयोग की क्षमता मेंवृद्धि, खेतों में जल निकास व वितरण, सिंचाई पद्धतियों, भूमि-जल-पौधों के वातावरणीय सम्बन्ध, जल उपयोग क्षमता पर ऋतु कारकों के प्रभाव, प्राकृतिक संसाधनों का लेखा-जोखा, बरानी कृषि में जलप्रबन्धन, जल गुणवत्ता, जल मग्न एवं क्षारीय भूमि में सुधार, जल प्रबन्धन के वित्तिय ज्ञान तथा जलसंस्थाओं के महत्व के संबंध में विषय सामग्री विकसित करना शामिल है।

अनुसंधान परियोजनाएँ[संपादित करें]

  1. उन्नत कृषि उत्पादन हेतु जल संसाधनों का आंकलन, उपयोग एवं संरक्षण।
  1. सतही जल एवं भूजल की उपलब्धता के आंकलन हेतु प्रौद्योगिकी का प्रयोग एवंविकास।
  2. सतही जल एवं भूजल संसाधनों के उपयोग हेतु उपयुक्त दिशा-निर्देशों का विकास।
  3. सतही जल एवं भूजल की उपलब्धता को बढ़ाने हेतु उचित प्रौद्योगिकी का विकास।
  • फसल उत्पादन में जल एवं पोषक तत्वों की उपयोग दक्षता में बढ़ोतरी।
  1. जल एवं पोषक तत्वों के प्रयोग तथा अन्य प्रबंधन निर्विष्टियों के संयुक्तप्रभाव का फसल की बढ़ोतरी एवं मृदा गुणों पर होने वाले प्रभाव का अध्ययन करना।
  2. निम्न गुणवत्ता वाले जल के साथ-साथ अवजल एवं उद्योगों के बहिःस्राव कामृदा गुणों, पोषक तत्वों के उपयोग तथा फसल की बढ़ोतरी पर प्रभाव का अध्ययन करना।
  • फसलों की उपज में उत्तरोत्तर सुधार के लिए जल की बचत संबंधी प्रौद्योगिकी काविकास एवं मूल्यांकन।
  • सिंचाई जल के सक्षम उपयोग के लिए प्रौद्योगिकी का विकास।
  1. सतही सिंचाई पद्धतियों के निष्पादन एवं प्रबंधन का मूल्यांकन करना।
  2. दबाव युक्त सिंचाई पद्धतियों के लिए एवं प्रबंधन प्रौद्योगिकी का विकास।
  3. जल निकास प्रौद्योगिकी का विकास एवं मूल्यांकन।
  • खपत सामर्थ्य एवं उनके पारस्परिक संबंधों की दृष्टि से फसलों में जर्जरावस्थाकी क्रियाविधि एवं अजैविक तनाव।
  1. पौधों की वृद्धि एवं प्रजनन अवस्था में अजैविक तनाव व जर्जरावस्था कापारस्परिक संबंध
  2. जर्जरावस्था पर प्रजनन खपत सामर्थ्य का प्रभाव
  3. जर्जरावस्था से संबंधित 'जीन्स` को अलग करना

प्रशिक्षण/कार्यशाला/सभा[संपादित करें]

जल प्रौद्योगिकी केन्द्र के प्रशिक्षण कार्यक्रम निम्न प्रकार हैं

  1. जल प्रबन्धन की विशेष समस्याओं के लिए विशेष कार्यशालाएं, तकनीकी गोष्ठियांऔर सभाएं आयोजित करना।
  2. सिंचाई विभागों तथा अन्य जल वितरक संस्थाओं के कर्मचारियों के लिए अध्यापन, अनुसंधान एवं प्रसार आदि में अल्प कालीन विशेष कार्यक्रम चलाना।
  3. सर्वश्रेष्ठ प्रशिक्षण केन्द्र के अंतर्गत कृषि मंत्रालय द्वारा प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाना।

प्रशिक्षण कार्यक्रम की गुणवत्ता लेने वाले लोगों की आवश्यकताओं पर निर्भर करती हे और वेइस प्रकार हैः

  • क्षेत्रीय सिंचाई पद्धति की रूपरेखा और उसका कार्यान्वयन
  • भूमि जल निकास
  • भूजलीय परतों का आंकलन और नलकूप निर्माण
  • मृदा-जल-पौधे-वातावरण में पारस्परिक सम्बन्ध
  • जल गुणवत्ता एवं मृदा लवणता प्रबन्धन
  • जलग्रहण क्षेत्र प्रबन्धन
  • सिंचाई अर्थशास्त्र एवं जल संस्थाएं

अध्यापन[संपादित करें]

केन्द्र के वैज्ञानिक विभिन्न कार्यक्षेत्रों में अपना महत्वपूर्ण योगदान देते हैं और संस्थान केस्नातकोत्तर अध्यापन व अनुसंस्थान में विशेष रूचि रखते हैं। पिछले 30 सालों में 150 से अधिक विद्यार्थियों ने विभिन्न विषयों पर प्रौद्योगिकी केन्द्र केवैज्ञानिकों से जल विज्ञान अनुसंधान में मार्ग दर्शन प्राप्त किया। एक विशेष समिति के परामर्श सेभारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान की विद्वत परिषद् ने 1996 में इस केन्द्र में उच्च स्नातक स्तरीय जलविज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विषयों को सम्मिलित किया। स्नातकोत्तर विद्यार्थियों के प्रथम दल को सन्1998-1999 के शैक्षणिक सत्र में प्रवेश मिला। अब तक इस विषय में 12 विद्यार्थी स्नातकोत्तर की उपाधिले चुके हैं तथा पीएच.डी। कार्यक्रम भी सन् 2003-2004 से प्रारम्भ है।

सुविधाएँ[संपादित करें]

जल प्रौद्योगिकी केन्द्र में कृषि जल प्रबन्धन में बहुविषयिक अनुसंधान के लिए प्रयोगशाला, भौतिक संयंत्र और खेत की पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध हैं। प्रयोगशालाएं: केन्द्र की महत्वपूर्ण प्रयोगशालाओं में सिंचाई अभियंत्रण, जल विकास अभियंत्रण, मृदा-जल-पादप संबंध, सस्य विज्ञान, मृदा एवं जल गुण और प्रतिबल क्रिया विज्ञान प्रयोगशालाएं हैं। जो विभिन्न प्रकार के यंत्रों और सुविधाओं से युक्त हैं।

भौतिक संयंत्रः

केन्द्र में जीआईएस युक्त पूर्ण विकसित संगणक इकाई, पूर्ण विकसित कार्यशाला, एकआधुनिक पुस्तकालय और एक संग्रहालय है। प्रक्षेत्र प्रयोगशाला सुविधाओं में पम्प टेस्टिंग रिंग, पानीउठाने वाले विभिन्न प्रकार के यंत्र, सौर ऊर्जा पम्प, फव्वारा व टपकदार सिंचाई प्रणालियां, तौललाइसीमीटर और लघु स्वचलित वेधशाला सम्मिलित हैं।

अनुसंधान भूभागः

केन्द्र का अनुसंधान भूभाग लगभग 18 हेक्टर है जिसमें भूमिगत सिंचाई वितरणप्रणाली व खेत में सिंचाई जल वितरण, जल प्रवाह माप और नियंत्रण, फसल में वाष्पीकरण, जलएकत्रीकरण, सिंचाई प्रबन्धन, पादप पोषक तत्व, जल तनाव एवं बरानी खेती पर अध्ययन करने केलिए अन्य सुविधाएं भी उपलब्ध हैं।

व्यावसायिक कार्यक्रम[संपादित करें]

भारतीय जल प्रबन्धन सोसाइटी का मुख्यालय वर्ष 1999 से इस केन्द्र में स्थित है। इस सोसाइटी का अपना जरनल वर्ष में दो बार नियमित रूप से प्रकाशित होता है।