गुलकी बन्नो

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गुलकी बन्नो धर्मवीर भारती द्वारा रचित हिंदी कहानी है। इसका लेखन नई कहानी के दौर में हुआ था।

कथावस्तु[संपादित करें]

यह एक ऐसी कुबड़ी गुलकी की कहानी है जो कि घेघा बुआ के चौतरे पर बैठकर तरकारियाँ बेचकर अपना गुजर-बसर स्वयं करती है। उसके पिता की मृत्यु के पश्चात् से वह अकेली ही रहती है। उसके पति मनसेधू ने उसे छोड़कर दूसरा ब्याह कर लिया। वास्तव में गुलकी का कूबड़ उसके पति की ही देन है। 25-26 की उम्र में ही झुर्रियों से भरे चेहरे और झुककर चलने के कारण वह बूढ़ी नज़र आने लगी। मौहल्ले-भर के बच्चे उसकी दुकान के पास दिनभर खेलते और गुलकी का मज़ाक भी उड़ाते थे। इन्हीं बच्चों में मिरवा और उसकी छोटी बहन मटकी भी खेला करते थे। वे जानकी उस्ताद के बच्चे थे, जो कि किसी रोग के कारण गल-गल कर मरे थे। उनके ये दो बच्चे भी विकलांग और विक्षिप्त तथा रोगग्रस्त पैदा हुए थे। मिरवा को गाना अच्छा लगता था इसीलिए वह गुलकी की दुकान के पास बैठकर 'तुमे बछ याद कलते अम छनम तेली कछम!' जैसे गाने गाया करता था और उसकी बहन गुलकी से कुछ-न-कुछ खाने के लिए ले लिया करती थी। उस महफिल में झबरी कुतिया भी शामिल रहती थी। सत्ती कभी-कभी गुलकी से मिलने आती थी, उससे सभी बच्चे बहुत डरते थे क्योंकि उसके पास एक छुरी भी रहती थी। घेघा बुआ से झगड़ा होने पर गुलकी को उनका चौतरा भी छोड़ना पड़ा। लगातार भारी बारिश से उसका घर भी गिर गया तब वह सत्ती के साथ उसी के घर में रहने लगी। सत्ती ने बुआ का पाँच महीने का बाकी किराया भी चुका दिया। उसने मनसेधू के वापस लौटने पर गुलकी को लाख मना किया कि वह उसके साथ न जाए किंतु गुलकी के लिए पति का साथ और घर ही सबकुछ था अतः वह न मानी। जिस पति के लौटने पर वह इतनी खुश थी वह उसे अपनी नई बीवी तथा उसके बच्चे की देखभाल के लिए लेने आया था। जब गुलकी ससुराल चली गई तब मिरवा विदाई गीत गाने लगा 'बन्नो डाले दुपट्टे का पल्ला, मुहल्ले से चली गई राम!' इसमें साथ दिया मटकी ने "बन्नो तली गई लाम! बन्नो तली गई लाम! बन्नो तली गई लाम!"[1]

पात्र[संपादित करें]

  • घेघा बुआ
  • मिरवा (मिहिरलाल)
  • मटकी- मिरवा की छोटी बहन
  • मेवा- खोंचेवाली का लड़का
  • निरमल- ड्राइवर साहब की लड़की
  • मनीजर साहब के मुन्ना बाबू[2]
  • गुलकी
  • मनसेधू- गुलकी का पति
  • सत्ती

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

धर्मवीर भारती

संदर्भ[संपादित करें]

  1. कमलेश्वर (सं.) (2016). बीसवीं सदी की हिंदी कथा-यात्रा (भाग-2). नई दिल्ली: साहित्य अकादेमी. पृ॰ 253. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-260-5050-5.
  2. कमलेश्वर (सं.) (2016). बीसवीं सदी की हिंदी कथा-यात्रा (खंड-2). नई दिल्ली: साहित्य अकादेमी. पृ॰ 239. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-260-5050-5.