गुरु गोबिंद सिंह के ५२ हुक्म

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
गुरुद्वारा हजूर साहिब, नांदेड़ में अंकित 52 हुक्म।

'''५२ हुक्म''' सिख धर्म मेंके दशम गुरु गुरु गोबिंद सिंह द्वारा दिये गये ५२ उपदेश हैं जो उन्होंने १७०८ में नांदेड़ ( आजकल महाराष्ट्र में है) में दी थी। [1] [2] ये शिक्षाएँ खालसा का सार हैं और खालसा पंथ के लिए आचार संहिता जैसी हैं। खालसा के अनुयायी इन सभी 52 शिक्षाओं का पालन करते हैं।

उपदेशों की सूची[संपादित करें]

(1) धर्म दी किरत करनी – धर्म की कीर्ति करना।

(2) दसवंद देना – अपनी कमाई का दसवाँ हिस्सा दान मे देना।

(3) गुरबाणी कंठ करनी – गुरबाणी (गुरु की बाणी) याद करनी।

(4) अमृत वेले उठना – सुबह सूरज निलने से पहले उठना।

(5) सिख सेवक दी सेवा रूचि नाल करनी – पूरी श्रद्धा से गुरूसिक्खों की सेवा करनी।

(6) गुरुबाणी दे अर्थ सिख विद्वाना तो पढ़ाने – गुरसिखों से गुरबाणी के अर्थ समझने।

(7) पंज ककार दी रेहत दिरीह कर रखनी – पाँच ककार (कड़ा, कच्छा, कृपाण, केस, कघां) की मर्यादा मेँ रहना और सख्ती से पालन करना।

(8) शबद दा अभिहास करना – जीवन में शबद (गुरबानी) का अभ्यास करना।

(9) सत स्वरुप सतगुर दा ध्यान धरना – सच्चे गुरु (भगवान) का ध्यान करना।

(10) गुरु ग्रंथ साहिब जी नू गुरु मानना – श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी को गुरु मानना।

(11) कारजां दे आरम्भ विच अरदास करनी – सभी कार्य की शुरुआत में अरदास करनी।

(12) जन्म, मरण, जा विआह मोके जपजी दा पाठ कर, तिहावाल (कड़ा प्रसाद) कर, आनंद साहिब दे पंज पौरिआं, अरदास, प्रथम पंज प्यारे ते हजूरी ग्रंथी नू वरत के संगत नू वार्ताओना – जन्म, मृत्यु, या विवाह समारोहों (आनंद कारज) में, जपजी साहिब का पाठ करें, कड़ा प्रसाद बनाएं, आनंद साहिब के पांच श्लोक करें, अरदास करें, और फिर पंज प्यारे, हजूर ग्रंथी और फिर संगत को कराह प्रसाद वितरित करें।

(13) जब तक कड़ा प्रसाद वरतदा रहे साद संगत अडोल बैठे रहे – जब तक कड़ा प्रसाद बाँटते रहें सारी साद संगत बिना हिले डुले बैठ रहे।

(14) आनंद विआह बिना ग्रहस्त नहीं करना – विवाह (आनंद कारज) के बिना वैवाहिक जीवन की शुरुआत नहीं करनी।

(15) पर स्त्री, माँ, बहन, धि, कर जानी। पर स्त्री द संग नहीं करना। – अपनी पत्नी के अलावा सभी औरतों को माँ, बहन, बेटी के रूप में देखना है। पराई स्त्री के साथ वै वाहिक सम्बन्ध नहीं रखना।

(16) स्त्री दा मुँह नहीं फटकारना – स्त्री का सम्मान करना, उसे दुत्कारे नहीं।

(17) जगत जूठ तम्बाकू बिखिआ दा तिआग करना – संसार के झूठ, तम्बाकू, जहर का सेवन नहीं करना। इन सबका त्याग करना।

(18) रेहतवान आते नाम जुपन वाले गुरसिखा दी संगत करनी – रेहत का पालन करने वाले और वाहेगुरु का नाम ध्यान करने वाले सिक्खो की संगत करनी।

(19) कम करन विच दरीदार नहीं करना – काम करने में आलस नहीं दिखानी।

(20) गुरबाणी दी कथा ते कीर्तन रोज सुनने ते करने – प्रतिदिन कीर्तन और गुरबाणी (गुरु की बाणी) प्रवचन सुनें और करें।

(21) किसे दी निंदा, चुगली, अते इरखा नहीं करनी – किसी भी व्यक्ति की निंदा, चुगली या ईर्ष्या नही करनी।

(22) धन, जवानी ते कुल जात दा अभिमान नहीं करना – धन दौलत जात पात व यौवन का घमंड नहीं करना। सब लोगों में आपसी भाईचारा होने चाहिए।

(23) मत ऊंची ते सुचि रखनी – अपने विचार तथा अपनी सोच हमेशा ऊंची व साफ़ रखना।

(24) शुभ कर्मन तो कदे ना कतराना – हमेशा शुभ कार्य करते रहे, नेक कार्य करने से परहेज न करें।

( 25) बुद्ध बल दा दाता वाहेगुरु नू जानना – भगवान (वाहेगुरु) को बुद्धि और शक्ति के दाता (मालिक) के रूप में जानना।

( 26) सोगन्द (कसम साहू) दे कर इतबार जनाओँ वाले ते यकीन नहीं करना – उस व्यक्ति पर विश्वास न करें जो कसम खाता है। जो मनुष्य किसी को ‘कसम या सौगंध’ के साथ मनाने की कोशिश करता है ऐसे व्यक्ति पर विश्वास नहीं करना।

(27) स्वतंत्र विचारना – राज काज दियां कामां ते दुसरे मुता दिआ पुरषा नू हक नहीं देना – स्वतंत्र रूप से शासन करें। सरकार के कामों में दूसरे धर्म के लोगों को अधिकार या शक्ति न दें।

(28) राजनीति पढ़नी – राजनीति की पढ़ाई करनी।

(29) दुश्मन नाल साम, दाम, दंड, भेद आदि उपाय वरतने – दुश्मन के साथ, विभिन्न रणनीतियों (साम, दाम, दंड, भेद) का उपयोग करना, पर युद्ध धर्म से लड़ना।

(30) शस्त्र विद्या अते घोड़हा दी सवारी दा अभ्यास करना – शास्त्र विद्या और घुड़सवारी का अभ्यास करें।

( 31) दूसरे मता दे पुस्तक, विद्या पढ़नी, पर भरोसा दृढ़ गुरबानी, अकाल पूरक ते करना – अन्य धर्मों की पुस्तकों और ज्ञान का अध्ययन करना व सम्मान करना, लेकिन भरोसा गुरबाणी और अकाल पुरुख पर रखना।

( 32) गुरु उपदेशा नू धारान करना – गुरु के उपदेशों को धारण करना और पालन करना।

( 33) रहिरास दा पाठ कर खड़े हो के अरदास करनी – शाम को रहिरास साहिब का पाठ करना फिर खड़े हो कर अरदास करनी।

(34) सोन वैले सोहिला अते ‘पौन गुरु पानी पीता’ श्लोक पढ़ना – रात को सोने के समय कीर्तन सोहिला का पाठ करना

(35) दस्तार बिना नहीं रहना – पगड़ी हमेशा पहननी, सिर हमेशा ढक कर रखना।

(36) सिंह दा आधा नाम नहीं बुलाना – सिंह को उनके आधे नाम से न बुलाना। सिक्खों का पूरा नाम हमेशा आदर से लेना।

(37) शराब नही सेवानी – शराब का सेवन नहीं करना।

(38) सिर मुंए नू कन्या नहीं देनी – ओस घर देवनी जिथे अकाल पुरुक दी सीखी है, जो करजी ना होवे, भले स्वभाव दा होवे, आते ज्ञानवान होवे – बेटी का रिश्ता केश रहित सिख से नहीं करवाना। रिश्ता उस घर में करना जो गुरु का सिख हो, जहाँ वाहगुरु की सीख हो, जहाँ घर क़र्ज़ में न हो,अच्छे स्वाभाव का हो और ज्ञानी हो।

(39) शुभ कारज गुरबाणी अनुसार करने – सभी शुभ काम गुरुबाणी के अनुसार ही करने।

(40) चुगली कर किसे दा कम नहीं विगारना – चुगली कर कभी किसी का काम नहीं बिगड़ना।

(41) कौढ़ा बचन नहीं कहना – कटु (कड़वा) वचन बोलकर किसी का दिल नहीं दुखाना।

(42) दर्शन यात्रा गुरूद्वारे दी ही करनी – तीर्थ यात्रा गुरु घर (गुरुद्वारा) की ही करनी।

(43) बचन करके पालना – वचन देकर उसका पालन करना।

(44) परदेसी, लोढ़वान, दुखी, अपंग मनुका दी यातःशक्त सेवा करनी – परदेसी, जरूरतमंद, दुखी,अपंग व्यक्ति की जितनी आपकी शक्ति हो उतनी सेवा करनी।

(45) पुत्री दा धन भिख जानना – बेटी की कमाई को भीख सामान मानना।

(46) दिखावे दा सिख नहीं बनाना – दिखावे का सिख नहीं बनाना।

(47) सिखी केशा-सुआसा संग निभाओनी – केशदारी सिख रहकर ही जीना और मरना। केश कभी नहीं कटवाने, उनका सम्मान करना।

(48) चोरी, यारी, ठगी, धोखा, दंगा, नहीं करना – चोरी, यारी, ठगी, धोखा, दंगा करने से बचना।

(49) सिख दा ऐतबार करना – गुरु के सिक्खोँ का विश्वास करना।

(50) झूठी गवाही नहीं देनी – झूठी गवाही नहीं देनी।

(51) धोखा नहीं करना – किसी को भी धोखा नहीं देना।

(52) लंगर – प्रसाद इक रस वार्ताउना – लंगर और कड़ा प्रसाद को एक समान रुप से बाँटना।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Singh, Balawindara (2004). Fifty-Two Commandments Of Guru Gobind Singh. Michigan, US: Singh Bros. पृ॰ 9.
  2. Singh, Satbir (1991). Aad Sikh Te Aad Sakhian. Jalandhar: New Book Company.