गंगा प्रसाद विमल

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डॉ॰ गंगा प्रसाद विमल हिन्दी साहित्य में अकहानी आंदोलन के जनक के रूप में जाने जाते हैं। इसके अलावा विख्यात कवि, कथाकार, उपन्यासकार, अनुवादक के रूप में दुनियाभर में इन्हें ख्याति प्राप्त है। कई सरकारी सेवाओं से जुड़े रहकर, बहुमुखी प्रतिभा से संपन्न इनका व्यक्तित्व बेहद विशाल है। इन्हें तमाम राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। व्यक्तित्व की विशेषता यह कि इतनी सारी विशिष्टताएँ होने के बावज़ूद भी इनमें किसी भी तरह का दंभ, अहं या सर्वश्रेष्ठ होने का अभिमान तथा भाव कहीं नहीं झलकता. इनका बेहद रूमानी और संज़ीदगी से भरा चरित्र एवं व्यक्तित्व एकदम सहज और मिलनसार प्रवृत्ति का है एवं सदैव लोगों के साथ मृदुभाषी जबाँ होने के कारण ही तमाम देशों में इनको सराहा व सम्मानित किया गया।

जीवन परिचय[संपादित करें]

डॉ॰ विमल की पैदाइश भारतवर्ष के बेहद खूबसूरत क्षेत्र हिमालय के एक छोटे से कस्बे उत्तरकाशी, उत्तरांचल में सन १९३९ को हुई। इनके व्यक्तित्व में, हिमालय की सादगी, विस्तार, निर्मलता, ऊँचाईयों को धारण करने का जज़्बा एवं निर्झर झरने सा निरंतर बहते रहने की दिली तमन्ना, इनकी विशिष्टता का प्रतीक बन चुका है। हिमालय की अनूठी सामाजिक - संस्कृति, परंपरा, सनातनता को बनाये रखने का संस्कार इनकी विशिष्ट जीवनशैली में प्रवाहमान है। हिमनदों की तासीर और निश्छलता इनकी प्रकृति या स्वभाव बन चुकी है। यही वज़ह है कि इनकी तमाम रचनाओं में हिमनदों को बचाने और वनों की कटाई पर रोक लगाने पर जोर दिया गया है। मानो, इन्हें बचाये रखना इनके व्यक्तित्व को बचाये रखना है। इस कोशिश में वे निरंतर वक़्त बेवक़्त प्रयत्नशील हैं। इनकी शिक्षा गढ़वाल, हृषिकेश, इलाहाबाद, यमुनानगर एवं पंजाब विश्वविद्यालय जैसी अनेक जगहों पर हुई। जीवन के आरंभिक दौर से ही प्रतिभाशाली और रचनात्मक होने के कारण इनके व्यक्तित्व का बहुमुखी विकास तमाम साहित्यिक एवं प्रशासनिक क्षेत्रों में हुआ। १९६३ में ही इन्होंने "समर स्कूल ऑफ़ लिंगुइस्टिक्स", उस्मानिया विश्वविद्यालय, हैदराबाद में अध्ययन आरंभ किया। सन १९६५ में इन्हें डॉक्टर ऑफ़ फ़िलॉसॉफ़ी की डिग्री से सम्मानित किया गया। इसी वर्ष इनका विवाह ५ फ़रवरी १९६५ को कमलेश अनामिका के साथ संपन्न हुआ, जिनसे इनकी दो सन्तानें आशीष (१९६९) और कनुप्रिया (१९७५) हुई।

साहित्यकार गंगा प्रसाद विमल तथा उनके दो परिजनों का दक्षिण श्रीलंका में दि. २३ दिसंबर २०१९ को एक सड़क दुर्घटना में निधन हो गया। ८० वर्षीय विमल परिवार के साथ श्रीलंका की निजी यात्रा पर गये थे। सड़क हादसे में विमल के साथ उनकी पुत्री कनुप्रिया और नाती श्रेयस का भी निधन हो गया।

साहित्य सृजन[संपादित करें]

इनके शोध संबंधी कार्यानुभव की चर्चा करना यहां ज़रूरी है। डॉ॰ विमल ने १९६१ से १९६४ तक तीन वर्ष रिसर्च फ़ेलो के रूप में पंजाब विश्वविद्यालय में कार्य किया। १९६२ से १९६४ तक हिंदी भाषा और साहित्य में पंजाब विश्वविद्यालय में रहकर अध्यापन किया। १९६४ से १९८९ तक ज़ाकिर हुसैन कॉलेज़, दिल्ली विश्वविद्यालय में तमाम शोधार्थियों के शोध निर्देशक के तौर पर कार्यरत रहे। १९८९ से १९९७ तक मानव संसाधन विकास मंत्रालय, नई दिल्ली में केंद्रीय हिंदी निदेशालय (शिक्षा विभाग) में निर्देशक के पद पर रहे। इसके अतिरिक्त तमाम शब्दकोशों से संबंधित योजनाओं, भाषा ज्ञान संबंधी सामग्री तथा भारतीय भाषा संबंधी नीतियों को जारी करने वाली सरकारी संस्थाओं एवं समितियों में कार्य किया। १९९९ से लेकर २००४ तक भारतीय भाषा केंद्र, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में प्रवक्ता के पद पर अध्यापन किया तथा यहीं पर १९९९ से २००० तक बतौर विभागाध्यक्ष के रूप में कार्य किया। साथ ही तमाम शोधार्थियों को निर्देशित भी किया। डॉ॰ विमल एक ऐसे सृजनात्मक व्यक्तित्व हैं जिनकी रचनाओं पर बात किये बग़ैर उनके व्यक्तित्व को उजागर करना निरर्थक है। इनकी रुचि शुरू से ही रचनात्मक लेखन में रही जिसके कारण इन्होंने समय समय पर तमाम पुस्तकें सृजन के क्षेत्र में योगदान स्वरूप दीं जिनमें एक दर्जन से अधिक कविता संग्रह और कहानी संग्रह, चार उपन्यास, अंग्रेज़ी में अनुवाद की पाँच पुस्तकें, गद्य में हिंदी अनुवाद की तीन पुस्तकें, आठ के क़रीब संपादित पुस्तकें, अन्य भाषाओं से अनूदित पुस्तकों में तक़रीबन पंद्रह किताबें - जिनमें काव्य, कथा और उपन्यास शामिल हैं। इनके द्वारा तमाम देशों में अनेकानेक शोध पत्र पढ़े गये।

सम्मान एवं पुरस्कार[संपादित करें]

डॉ। विमल को साहित्य और संस्कृति के लिये किये गये कार्यों पर दुनिया भर से अनेक पुरस्कारों एवं सम्मानों से नवाज़ा गया।

  • पोएट्री पीपुल्स प्राइज़ (१९७८), रोम में आर्ट यूनीवर्सिटी द्वारा १९७९ में पुरस्कृत
  • नेशनल म्यूज़ियम ऑफ़ लिटरेचर, सोफ़िया में गोल्ड मेडल (१९७९)
  • बिहार सरकार द्वारा दिनकर पुरस्कार (१९८७)
  • इंटरनेशनल ओपेन स्कॉटिश पोएट्री प्राईज़ (१९८८)
  • भारतीय भाषा पुरस्कार, भारतीय भाषा परिषद (१९९२)
  • महात्मा गांधी सम्मान, उत्तर प्रदेश, (२०१६)

इसके अतिरिक्त इन्हें ऐसे ही अनेकों पुरस्कारों से विश्व भर में सम्मानित किया गया। इनके द्वारा तमाम देशों में विभिन्न विषयों पर शोध ग्रन्थ पढ़े गये। जिनमें मुख्यत: बी. बी. सी लंदन से कहानियों का पाठ और ऑल इण्डिया रेडियो से तमाम बार कविता पाठ आदि शामिल हैं। इनकी सबसे बड़ी विशेषता लोगों के साथ ताल्लुक़ात मधुर होना है, जिसके कारण इन्हें अनेकों सरकारी, गैर-सरकारी, देशी-विदेशी संस्थाओं एवं संस्थानों की सदस्यता भी प्राप्त है।