कामना (नाटक)

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कामना मानसिक भावनाओं को पात्र के रूप में प्रयोग करने वाला जयशंकर प्रसाद का नाटक है, जिसका प्रकाशन सन् १९२७ ई॰ में भारती भंडार, इलाहाबाद से हुआ था।[1]

परिचय[संपादित करें]

कामना 3 अंकों और 22 दृश्यों का एक प्रतीकात्मक नाटक है। कामना, संतोष, विनोद, विलास, विवेक, शांतिदेव, दम्भ, दुर्वृत्त, क्रूर, लीला, लालसा, करुणा, प्रमदा, वनलक्ष्मी और महत्त्वाकांक्षा की मानवीकरण प्रक्रिया के द्वारा प्रसाद जी ने कामना, लालसा और महत्त्वाकांक्षा के कारण कैसे संतोष, शांति और विवेक के स्थान पर दंभ, दुर्वृत्त, क्रूरता, विलास, प्रमदा, विनोद आदि प्रबल होकर व्यक्ति और राष्ट्र की संस्कृति और शांति को नष्ट करते हैं, यह इस नाटक में संकेतित है। इस सन्दर्भ में डॉ॰ सत्यप्रकाश मिश्र ने लिखा है :

"परन्तु, यह संकेत भी अंततः एक संकेतक है दूसरे संकेत का और वह है अंग्रेजों द्वारा भारत द्वीप के विनाश और गुलाम बनाने की कथा का तथा प्रकारान्तर से किसी देश की गुलामी की कथा का। फलतः व्यापक अर्थ में यह पराधीनता-समीक्षा का नाटक है।"[2]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. जयशंकर प्रसाद (विनिबंध), रमेशचन्द्र शाह, साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली, पुनर्मुद्रित संस्करण-२०१५, पृष्ठ-९३.
  2. प्रसाद के सम्पूर्ण नाटक एवं एकांकी, संपादन एवं भूमिका- डॉ॰ सत्यप्रकाश मिश्र, लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, तृतीय संस्करण-२००८, पृष्ठ-xxii.

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]