कपाट लाने की उद्घोषणा

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आगरा किले के शस्त्रागार में संग्रहीत महमूद गजनी की कब्र के द्वार के कपाट - इलस्ट्रेटेड लंदन न्यूज, 1872

कपाट लाने की की उद्घोषणा 1842 में काबुल की लड़ाई के दौरान भारत में ब्रिटेन के क्षेत्रों के तत्कालीन गवर्नर-जनरल लॉर्ड एलेनबोरो द्वारा जारी एक आदेश था। इस आदेश में जाट सैनिकों से गजनी से उन कपाटों को वापस लाने का आदेश दिया गया था जिनके बारे में कहा जाता था कि महमूद गजनवीने लगभग 800 साल पहले गुजरात के प्रभास पाटन में सोमनाथ मंदिर के विनाश के बाद मन्दिर के कपाटों को गजनी ले गया था और उसकी मृत्यु के बाद इन्हें उसके मकबरे के दरवाजे के रूप में लगाया गया था। ये दरवाजे भारत लाये गये किन्तु बाद में पता चला कि ये सोमनाथ मन्दिर के दरवाजे नहीं थे। इस आदेश का आधार क्या था, यह स्पष्ट नहीं है, क्योंकि न तो तुर्क-फ़ारसी स्रोत और न ही भारतीय स्रोत ऐसे किसी कपाट का उल्लेख करते हैं।

विवरण[संपादित करें]

1842 में, एलेनबरो के प्रथम अर्ल एडवर्ड लॉ ने कपाटों को लाने की अपनी उद्घोषणा जारी की। इस आदेश में उन्होंने अफगानिस्तान में स्थित सेना को गजनी होकर भारत आने तथा गजनी में महमूद की कब्र से चंदन के कपाटों को भारत वापस लाने का आदेश दिया। ऐसा माना जाता था/है कि महमूद इन्हें सोमनाथ के मन्दिर को तोड़ने के बाद गजनी ले गया था। एलेनबरो के निर्देश के तहत, जनरल विलियम नॉट ने सितंबर 1842 में गेट वहँ से निकला दिये। इन कपाटों को भारत वापस लाने के लिए 6वीं जाट लाइट इन्फैंट्री की एक पूरी सिपाही रेजिमेंट को तैनात किया गया था। [1]

जब यह कपाट भारत आ गया तो जाँच में पता चला कि ये कपाट न तो गुजराती या भारतीय डिज़ाइन के थे, और न ही चंदन की लकड़ी के थे। बल्कि ये देवदार की लकड़ी के थे जो गज़नी की देशज लकड़ी थी। अतः ये कपाट सोमनाथ के मन्दिर के कपाट थे, यह प्रामाणित नहीं हुआ।[2] [3] उन्हें आगरा किले के शस्त्रागार भंडार कक्ष में रख दिया गया जहां वे आज भी पड़े हुए हैं। [4] [5] सन 1843 में लंदन के हाउस ऑफ कॉमन्स में मंदिर के कपाट लाने के आदेश के मामले में एलेनबरो की भूमिका के सवाल पर बहस भी हुई थी। [6] [7]

संदर्भ[संपादित करें]

  1. "Battle of Kabul 1842". britishbattles.com. अभिगमन तिथि 16 October 2017.
  2. "Mosque and Tomb of the Emperor Sultan Mahmood of Ghuznee". British Library. मूल से 11 जनवरी 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 November 2014.
  3. Havell, Ernest Binfield (2003). A Handbook to Agra and the Taj. Asian Educational Services. पपृ॰ 62–63. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 8120617118. अभिगमन तिथि 16 October 2017.
  4. John Clark Marshman (1867). The History of India, from the Earliest Period to the Close of Lord Dalhousie's Administration. Longmans, Green. पपृ॰ 230–231.
  5. George Smith (1878). The Life of John Wilson, D.D. F.R.S.: For Fifty Years Philanthropist and Scholar in the East. John Murray. पपृ॰ 304–310.
  6. The United Kingdom House of Commons Debate, 9 March 1943, on The Somnath (Prabhas Patan) Proclamation, Junagadh 1948. 584–602, 620, 630–32, 656, 674.
  7. "The Gates of Somnath, by Thomas Babington Macaulay, a speech in the House of Commons, March 9, 1843". Columbia University in the City of New York. अभिगमन तिथि 5 August 2016.