अजीजनबाई

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अजीजनबाई मूलतः एक पेशेवर नर्तकी थी जो देशभक्ति की भावना से भरपूर थी। गुलामी की बेड़ियां तोड़ने के लिए उसने घुंघरू उतार दिए थे। रसिकों की महफिलें सजाने वाली अजीजन क्रांतिकारियों के साथ बैठके कर रणनीतियां बनाने लगी थी। कानपुर में नाना साहेब के आह्वान पर अजीजन ने फिरंगियों से टक्कर लेने के लिए स्त्रियो का सशस्त्र दल गठित किया एवं उसकी कमान संभाली। [1]

परिचय[संपादित करें]

एक जून 1857 को क्रांतिकारियों ने कानपुर में एक बैठक की, इसमें नाना साहब, तात्या टोपे के साथ सूबेदार टीका सिंह, शमसुद्दीन खां और अजीमुल्ला खां के अलावा अजीजन बाई ने भी हिस्सा लिया। यहां गंगाजल को साक्षी मानकर इन सबने अंग्रेजों की हुकूमत को जड़ से उखाड़ फेंकने का संकल्प लिया।

जून 1857 में ही इन लोगों ने अंग्रेजों को जोरदार टक्कर देते हुए विजय प्राप्त की और नाना साहब को बिठूर का स्वतंत्र शासक घोषित कर दिया। परंतु यह खुशी ज्यादा दिनों तक नहीं टिक पाई। 16 अगस्त को बिठूर में अंग्रेजों के साथ पुन: भीषण युद्ध हुआ जिसमें क्रांतिकारी परास्त हो गए।

इन दोनों ही युद्धों में अजीजन की भूमिका बेहद महत्त्वपूर्ण थी। उसने युवतियों की एक टोली बनाई जो कि मर्दाना वेश में रहती थी। वे सभी घोड़ों पर सवार होकर हाथ में तलवार लेकर नौजवानों को आजादी के इस युद्ध में हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित करती थीं। वे घायल सैनिकों का इलाज करतीं, उनके घावों की मरहम पट्टी करतीं। फल, मिष्ठान्न और भोजना बांटतीं और अपनी मोहक अपनत्व भरी मुस्कान से उनकी पीड़ा हरने की कोशिश करतीं।

देशभक्तों के लिए वे जितनी मृदु होतीं, युद्ध विमुख होकर भागने वालों से उतनी ही कठोरता से पेश आतीं। वीरों को प्रेम का पुरस्कार मिलता जबकि कायरों को धिक्कार-तिरस्कार। ऐसी सुंदरियों के तीखे शब्द वाणों और उपेक्षित निगाहों की कटारों से अपमानित होने की अपेक्षा सैनिकगण रणभूमि में लड़ते-लड़ते प्राण गवां देना ज्यादा बेहतर समझते थे।

विनायक दामोदर सावरकर ने अजीजन की तारीफ करते हुए लिखा है, ‘अजीजन एक नर्तकी थी परंतु सिपाहियों को उससे बेहद स्नेह था। अजीजन का प्यार साधारण बाजार में धन के लिए नहीं बिकता था। उनका प्यार पुरस्कार स्वरूप उस व्यक्ति को दिया जाता था जो देश से प्रेम करता था। अजीजन के सुंदर मुख की मुस्कुराहट भरी चितवन युद्धरत सिपाहियों को प्रेरणा से भर देती थी। उनके मुख पर भृकुटी का तनाव युद्ध से भागकर आए हुए कायर सिपाहियों को पुन: रणक्षेत्र की ओर भेज देता था।’

युद्धों के दौरान अजीजन ने सिद्ध कर दिया कि वह वारांगना नहीं अपितु वीरांगना है। बिठूर में हुए युद्ध में पराजित होने के बाद नाना साहब और तात्या टोपे को भागना पड़ा लेकिन अजीजन पकड़ी गई। इतिहासकारों के अनुसार युद्ध बंदिनी के रूप में उसे जनरल हैवलाक के सामने पेश किया गया।

उसके अप्रतिम सौंदर्य पर अंग्रेज अफसर मुग्ध हो उठे। जनरल ने उसके समक्ष प्रस्ताव रखा कि यदि वह अपनी गलतियों को स्वीकार कर अंग्रेजों से क्षमा मांग ले तो उसे माफ कर दिया जाएगा और वह पुन: रास-रंग की दुनिया सजा सकती है। अन्यथा कड़ी से कड़ी सजा भुगतने के लिए तैयार हो जाए। अजीजन ने क्षमा याचना करने से इनकार कर दिया।

इतना ही नहीं उस शेरनी ने हुंकार कर यह भी कहा कि माफी तो अंग्रेजों को मांगनी चाहिए, जिन्होंने भारतवासियों पर इतने जुल्म किए हैं। उनके इस अमानवीय कृत्य के लिए वह जीते जी उन्हें कभी माफ नहीं करेगी। यह कहने का अंजाम भी उसे मालूम था पर आजादी की उस दीवानी ने इसकी परवाह नहीं की।

एक नर्तकी से ऐसा जवाब सुनकर अंग्रेज अफसर तिलमिला गए और उसे मौत के घाट उतारने का आदेश दे दिया गया। देखते ही देखते अंग्रेज सैनिकों ने उसके शरीर को गोलियों से छलनी कर दिया।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. अजीमन ने अंग्रेजों के खून से खेली थी होली, तात्या के मुखबिर से थर-थर कांपते थे गोरे | Patrika News https://www.patrika.com/kanpur-news/unknown-facts-about-freedom-fighter-ajijan-bai-kanpur-news-2415413/