अग्रविश्व ट्रस्ट

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अग्रविश्व ट्रस्ट – युग की आवश्यकता[संपादित करें]

सामाजिक आचरण की निरंतर दूषितता के कारण, जगत का बाहरी व आंतरिक सकल वातावरण प्रदूषित हो गया है. जिससे आज सारा संसार प्रकंपित हो रहा है.

संसार के विनाश की ओर बढते हुऐ इस कदम को हमें तुरंत रोकना होगा. इसके लिये वैश्विक संतुलन के प्रयासों की आवश्यकता है. जो कि प्राकृतिक व पौरुषिक उर्जा के संवर्धन सॆ ही संभव है.

सकल ब्रम्हाण्डों की सृष्टीकर्ता आदि महालक्ष्मी की कृपा से जगत की प्राकृतिक व पौरुषिक उर्जा के संवर्धन हेतु ही अग्रविश्व ट्रस्ट ने श्री अग्रसॆन के आदर्शों कॆ अनुरूप प्राकृतिक उर्जा हेतु श्रीपीठ एवं पौरुषिक उर्जा हेतु अग्रविश्व ज्ञानपीठ की स्थापना का संकल्प लिया है.

अग्रविश्व लक्ष्य व उद्देश्य[संपादित करें]

अग्रविश्व ट्रस्ट का लक्ष्य और उद्देश्य सम्प्रदाय, मत, जाति, भाषा, प्रांत सम्बंधी भिन्नताओं से रहित समाज के विभिन्न घटकों को संगठित कर समरस बनाना है, तथा उन्हे अपने अतीत की महानता का गौरव ज्ञान करा कर उनमें सेवा, त्याग, सद्भाव, प्रेम, आत्मीयता, क्षमता, ममता, समता विकसित कर विश्व के नवनिर्माण हेतु चेतना जाग्रत करने हेतु यह गैर राजनैतिक, लोककल्याणक सामाजिक संगठन रहेगा। तद् हेतु –

  1. सर्वथा अन्यत्र अनुपलब्ध अलौकिक तथा पौराणिक ग्रन्थ ॥ श्री अग्र उपाख्यानम्॥ के सर्वसाधारण जनों के लिये दर्शन की उचित व्यवस्था करना, देश विदेश से उस पर व्यापक शोध करने के लिये आगत विद्वानों व समाज सेवियों की समुचित व्यवस्था करना तथा उसके पौराणिक महत्व को दृष्टिगत रखते हुए उसके पर्याप्त संरक्षण व सुरक्षा की व्यवस्था करने हेतु – अग्रविश्व ज्ञानपीठ का निर्माण, उसके प्रबंध तथा उसे तीर्थ रूप में विकसित करने की व्यवस्था व संचालन करना।
  2. अग्रविश्व ज्ञानपीठ द्वारा मानवमात्र के हितार्थ श्री अग्रसेन के जीवनवृत्त तथा आदर्श जीवनकर्म, संस्कृति, सभ्यता और दर्शन का विश्व की विभिन्न भाषाओं में प्रकाशन करना/करवाना तथा सर्वसाधारण में वितरित करना तथा देश विदेश में स्थापित शाखाओं के माध्यम से अध्ययन केन्द्र स्थापित कर, पठन-पाठन की योग्य व्यवस्था करना एवं विद्यार्थियों व कार्यकर्ताओं को पुरूस्कृत व सम्मानित करना।
  3. सम्प्रदाय, मत, जाति, भाषा, प्रांत सम्बंधी भिन्नताओं से उत्पन्न विघटनकारी प्रवत्तियों के शमन हेतु श्री अग्रसेन के जीवनपथ के अनुरूप चेतना जाग्रत करना।
  4. अपने अतीत की महानता का गौरव ज्ञान कराना व उसके अनुरूप आचरण हेतु जनचेतना जाग्रत करना।
  5. उनमें सुसंस्कार, सेवा, त्याग, सद्भाव, प्रेम, आत्मीयता, क्षमता, ममता, समता विकसित कर विश्व के नवनिर्माण हेतु चेतना जाग्रत करना।
  6. अग्र समता दर्शन के अनुरूप समाज के असहाय व निर्बल घटकों के स्वाभिमान को संरक्षित रखते हुए उनके सर्वागींण पुनुरूज्जीवन हेतु प्रयास करना।
  7. ट्रस्ट के माध्यम से सभी लोककल्याणकारी कार्य करना।

श्री पीठ[संपादित करें]

(प्राकृतिक उर्जामयी विश्व)[संपादित करें]

श्री अग्रसेन ने अपने राज्य के मध्य में श्रीपीठ की स्थापना की थी, जहां वेदों के पारंगत विशिष्ट विद्वानों द्वारा दिनरात महालक्ष्मी की आराधना की जाती थी।

पुरं मध्ये वर्धमानं श्रीपीठे रत्नसंसकृते|

आराध्यते ह्योरात्रं व्दिजाः वेदविदां वराः॥

वैश्विक संतुलन हेतु अग्रविश्व ट्रस्ट द्वारा श्री अग्रसेन जी द्वारा संस्थापित श्रीपीठ के अनुरुप का श्रीपीठ के निर्माण का संकल्प तथा श्रीपीठ में सर्व सिद्धी युत स्थाप्य उर्जामयी श्रीयंत्र की अद्भुत भौमितिक संरचना (जो कि कालांतर में श्री आद्य शंकराचार्य जी द्वारा पुनः की गई थी), आज इस युग की आवश्कता है, जिसकी प्राकृतिक उर्जा निश्चित ही जगत की तारनहार होगी।

इस श्रीयंत्र में जहां एकओर पौराणिक भारत के अत्यंत विकसित विज्ञान के साक्षात दर्शन होते हैं, वहीं भारतीय शिल्पकला की महत्ता भी मुखरित होती है। साथ ही इसके मांत्रिक प्रयोग से भारतीय आध्यात्म विद्या की कल्याणकारी उर्जामयी कृपा प्राप्त होती है। धार्मिक प्रक्रियाओं के वैज्ञानिक प्रारुप वाला यह प्रयोग, निश्चित ही अपने आप में अनूठा, अद्भुत व आनन्द की अनुभूति प्रदान करने वाला है।

हमारे पुराणों में अंकित गूढ रहस्यमयी विद्याओं को वैज्ञानिक प्रयोगों के साथ जन जन तक पहुंचाने व उसके आध्यात्मिक लाभ से वंचित जगत के जीवन को आनन्दमय बनाने के अग्रविश्व ट्रस्ट के महत् उपक्रम का यह एक प्रधान अंग है।

अग्रविश्व ज्ञानपीठ[संपादित करें]

(पौरुषिक उर्जामयी विश्व)[संपादित करें]

प्रारब्ध को अलंकृत करने के लिये आवश्यक है – पुरुषार्थ।

यह संसार असार नहीं है।

हम इसे अपने प्रयत्नों से श्री अग्रसेन के अनुरूप आनन्दमय वैकुण्ठ बना सकते हैं।

सुचित्रं सुखसम्पूर्णं नित्योत्सव विभूषितम् ।

द्वितीयमिव वैकुण्ठं स्थापितं विष्णुना हि तत् ॥

श्रेष्ठ आचरण ही चारों पुरुषार्थों- अर्थ, धर्म, काम व मोक्ष का प्रदाता है।

आचरण की हीनता के कारण ही विश्व की पौरुषिक उर्जा क्षीण हुई है। सुसंस्कारित नहीं होने के कारण मानव समाज भ्रष्ट आचरण से ग्रसित होकर क्लांत, अशांत व दुखी है।

आनन्द के पथ के प्रवेशद्वार हैं – स्वस्थ शरीर, प्रसन्न मन, उर्वर मष्तिष्क।

३ से ७ वर्ष की अवस्था में प्राप्त ज्ञान, चेतना, संस्कार व आचरण, ७ से १६ वर्ष की अवस्था में परिपक्व होते हैं और वही जीवन का आधार बन जाते हैं ।

अतः अग्रविश्व ज्ञानपीठ के विज्ञानी विशेषज्ञों द्वारा स्वस्थ व सबल संस्कारित विश्व के नव निर्माण हेतु भारतीय ऋषियों-महर्षियों द्वारा प्रदत्त तथा श्रेष्ठ जनों द्वारा आचरित सुसंस्कारित ज्ञान व उन्नत विज्ञान से सम्पन्न शिक्षा पद्यति का शोध किया गया है।

जिसे अग्रविश्व ट्रस्ट की शाखाओं के माध्यम से गांव गांव तक पहुंचाने का संकल्प, निश्चित ही स्वर्णिमयुग की संस्थापना का आधार बनेगा।

अग्रविश्व ट्रस्ट के महत् उपक्रम का यह एक प्रधान अंग है।