निश्चित व्यय और कर नियमों के अंतर्गत जब आर्थिक दशाएँ बदतर स्थिति को प्राप्त होती है, तो खर्च में स्वत: बढ़ोतरी हो जाती है अथवा करों में स्वत: कमी आ जाती है। अत: अर्थव्यवस्था स्वत: स्थिर दशा को प्राप्त होती है।
ऐसा बजट जिसमें करों से प्राप्त राजस्व सरकार के व्यय के बराबर हो। संतुलित बजट गुणक: करों और सरकार के व्यय दोनों में इकाई वृद्धि या कमी के फलस्वरूप संतुलन निर्गत में परिवर्तन। बैंक दर आरक्षित निधि के अभाव की स्थिति में यदि व्यावसायिक बैंक रिज़र्व बैंक से ऋण लेता है, तो व्यावसायिक बैंकों द्वारा भुगतान योग्य ब्याज दर।
कागश का ऐसा टुकड़ा, जिस पर एक निर्धारित अवधि के पूरे होने पर भविष्य में मौद्रिक प्रतिफल का वादा लिखित होता है। बंधपत्र फर्म अथवा सरकार के द्वारा लोगों से पैसा उधार लेने के लिए जारी किया जाता है।
वे फर्म जिनमें निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं (ं) उत्पादन के कारकों का निजी स्वामित्व (इ) बाशार के लिए उत्पादन (ब) एक दी गई कीमत जिसे मशदूरी की दर कहते हैं, पर श्रम का क्रय और विक्रय (क) पूँजी का निरंतर संचय।
वह संकल्पना, जिसके अनुसार किसी अर्थव्यवस्था में उत्पादित वस्तुओं तथा सेवाओं का कुल मूल्य एक वर्तुल पथ पर गमन करता है। यह प्रवाह या तो कारक अदायगी है या वस्तुओं और सेवाओं पर व्यय अथवा समस्त उत्पादन के मूल्य के रूप में होता है।
अंतिम उपभोक्ताओं के द्वारा उपभोग की गई वस्तुएँ अथवा उपभोक्ता की तत्काल आवश्यकता को पूरा करने वाली वस्तुएँ, उपभोग वस्तुएँ कहलाती हैं। इसमें सेवाओं को भी शामिल किया जा सकता है।
बजटीय घाटे के लिए सरकार केंद्रीय बैंक से ऋण-ग्रहण के माध्यम से वित्त व्यवस्था करती है। इससे अर्थव्यवस्था में मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि होती है और फलस्वरूप स्फीति उत्पन्न होती हैं।
यदि अंतिम वस्तुओं की पूर्ति को अल्पकाल में स्थिर कीमत पर अनंत लोचदार मान लिया जाए, तो समस्त निर्गत का निर्धारण केवल समस्त माँग के मूल्यों द्वारा होता है। इसे प्रभावी माँग का सिद्धांत कहते हैं।
वैसे लाभ अथवा हानि जो किसी दूसरे व्यक्ति, फर्म या किसी अन्य सत्ता को केवल कुछ व्यक्तियों के कारण प्राप्त हो रहा है। फर्म अथवा कोई अन्य सत्ता किसी भी अन्य आर्थिक क्रियाकलाप में भाग ले सकते हैं। अगर कोई दूसरे को लाभ अथवा अच्छा बाह्य कारण उपलब्ध करा रहा है, तो प्रथम के द्वारा इसके लिए दूसरे को कोई भुगतान नहीं किया जाता। अगर किसी को दूसरे के द्वारा हानि अथवा खराब बाह्य कारण उपलब्ध कराया जाता है, तो प्रथम को इसके लिए कोई क्षतिपूर्ति नहीं दी जाती।
1930 के दशक की कालावधि में (जो न्यूयार्क में 1929 में स्टॉक बाशार तेजी से गिरावट के साथ शुरू हुई) निर्गत में गिरावट और बेरोज़गारी में बड़ी मात्र में वृद्धि देखी गयी।
सकल घरेलू उत्पाद ़ विदेशों से प्राप्त निवल कारक आय। दूसरे शब्दों में, सकल राष्ट्रीय उत्पाद में देश के सभी नागरिकों की समस्त आय शामिल है, जबकि सकल घरेलू उत्पाद में देशीय अर्थव्यवस्था के अंतर्गत विदेशियों के द्वारा प्राप्त आय शामिल किये जाते हैं और अपने देश के नागरिकों द्वारा विदेशी अर्थव्यवस्था से प्राप्त आय को निकाल दिया जाता है।
अर्थव्यवस्था में ब्याज की अति निम्न दर की स्थिति, जहाँ प्रत्येक आर्थिक एजेंट भविष्य में ब्याज दर की वृद्धि की आशा करता है। परिणामस्वरूप बंधपत्रें की कीमत गिरने लगती और पूँजी का नुकसान होता है। हर व्यक्ति अपने धन को मुद्रा के रूप में रखने लगता है और मुद्रा की सट्टेबाजी की माँग असीमित हो जाती है।
एक ऐसी व्यवस्था जिसमें केंद्रीय बैंक बाशार की शक्तियों के द्वारा विनिमय दर के निर्धारण की अनुमति प्रदान करता है, किंतु समय-समय पर दर को प्रभावित करने के लिए हस्तक्षेप करता है।
केंद्रीय बैंक के द्वारा आम जनता से बंधपत्र बाशार में सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद या बिक्री, जिससे अर्थव्यवस्था में मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि अथवा कमी न हो।
मुद्रा की वह मात्र, जिसे आज ब्याज अर्जन परियोजन में रखने से उतनी ही आय का सृजन होता है, जितनी कि किसी बंधपत्र के द्वारा उसकी कालावधि के उपरांत होता है।
निजी क्षेत्रक को होने वाले निवल घरेलू उत्पाद से प्राप्त कारक आय ़ राष्ट्रीय ऋण ब्याज़ विदेशों से प्राप्त निवल कारक आय़ सरकार से चालू अंतरण ़ शेष विश्व से प्राप्त अन्य निवल अंतरण।
सामूहिक रूप से उपभोग की जानेवाली वस्तुएँ अथवा सेवाएँ। किसी को इससे लाभ उठाने से वंचित करना संभव नहीं है और एक व्यक्ति के उपभोग से अन्य के उपभोग में कमी नहीं होती।
वह सिद्धांत जिसमें उपभोक्ता अग्रदर्शी होते हैं और आशा करते हैं कि सरकार आज जो ट्टण-ग्रहण करती है, भविष्य में उसके पुनर्भुगतान के लिए करों में वृद्धि होगी और तद्नुसार वे उपभोग का समंजन करेंगे, जिससे इसका अर्थव्यवस्था पर वैसा ही प्रभाव होगा, जैसाकि कर में वृद्धि से आज होता।
किसी देश के मौद्रिक प्राधिकरण के द्वारा मुद्रा बाशार में बहिर्जात अथवा कभी-कभी बाह्य आघातों, जैसे विदेशी विनिमय अंतःप्रवाह में वृद्धि के विरुद्ध मुद्रा की पूर्ति को स्थायी रखने के लिए किया गया हस्तक्षेप।