"बवासीर": अवतरणों में अंतर

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हालांकि बवासीर के उपचार के लिए बहुत सारे स्थानीय एजेंट तथा वर्तियां (सपोसिटरीज़) उपलब्ध हैं, लेकिन इनके समर्थन में साक्ष्य बेहद कम उपलब्ध हैं।<ref name=Review09/> [[स्टेरॉएड]] समाहित एजेंटों को 14 दिन से अधिक की अवधि तक उपयोग नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि वे त्वचा को पतला करते हैं। <ref name=Review09/> अधिकांश एजेंटों में सक्रिय तत्वों के संयोजन शामिल होते हैं।<ref name=ASCRS2011/> इनमें निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं: एक बाधा क्रीम जैसे [[पेट्रोलियम जेली]] या [[ज़िंक ऑक्साइड]], एक दर्दहारी एजेंट जैसे कि [[लिडोकेन]] और एक वैसोकॉन्सट्रिक्टर (रक्त शिराओं के मुहाने को संकीर्ण करने वाला) जैसे कि [[एपीनेफ्राइन]]।<ref name=ASCRS2011/> [[फ्लैवोनॉएड]] के लाभों पर प्रश्नचिह्न लगता है जिसके कि संभावित पश्च-प्रभाव होते हैं।
हालांकि बवासीर के उपचार के लिए बहुत सारे स्थानीय एजेंट तथा वर्तियां (सपोसिटरीज़) उपलब्ध हैं, लेकिन इनके समर्थन में साक्ष्य बेहद कम उपलब्ध हैं।<ref name=Review09/> [[स्टेरॉएड]] समाहित एजेंटों को 14 दिन से अधिक की अवधि तक उपयोग नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि वे त्वचा को पतला करते हैं। <ref name=Review09/> अधिकांश एजेंटों में सक्रिय तत्वों के संयोजन शामिल होते हैं।<ref name=ASCRS2011/> इनमें निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं: एक बाधा क्रीम जैसे [[पेट्रोलियम जेली]] या [[ज़िंक ऑक्साइड]], एक दर्दहारी एजेंट जैसे कि [[लिडोकेन]] और एक वैसोकॉन्सट्रिक्टर (रक्त शिराओं के मुहाने को संकीर्ण करने वाला) जैसे कि [[एपीनेफ्राइन]]।<ref name=ASCRS2011/> [[फ्लैवोनॉएड]] के लाभों पर प्रश्नचिह्न लगता है जिसके कि संभावित पश्च-प्रभाव होते हैं।
<ref name=ASCRS2011/><ref>{{cite journal |author=Alonso-Coello P, Zhou Q, Martinez-Zapata MJ, ''et al.'' |title=Meta-analysis of flavonoids for the treatment of haemorrhoids |journal=Br J Surg |volume=93 |issue=8 |pages=909–20 |year=2006|month=August |pmid=16736537 |doi=10.1002/bjs.5378 |url=}}</ref> लक्षण गर्भवस्था के कारण असमान्य रूप से दिखने हैं; इस कारण से उपचार अक्सर प्रसव के बाद तक टल जाते हैं।<ref>{{cite journal|last=Quijano|first=CE|coauthors=Abalos, E|title=Conservative management of symptomatic and/or complicated haemorrhoids in pregnancy and the puerperium|journal=Cochrane database of systematic reviews (Online)|date=2005 Jul 20|issue=3|pages=CD004077|pmid=16034920}}</ref>


== आहार ==
== आहार ==

20:09, 12 जनवरी 2014 का अवतरण

Hemorrhoids
वर्गीकरण एवं बाह्य साधन
Diagram demonstrating the anal anatomy of both internal and external hemorrhoids
आईसीडी-१० I84.
आईसीडी- 455
डिज़ीज़-डीबी 10036
मेडलाइन प्लस 000292
ईमेडिसिन med/2821  emerg/242
एम.ईएसएच D006484

होमोरोइड या अर्श UK /ˈhɛmərɔɪdz/, गुदा-नाल में वाहिकाओं की वे संरचनाएं हैं जो मल नियंत्रण में सहायता करती हैं।[1][2] जब वे सूज जाते हैं या बड़े हो जाते हैं तो वे रोगजनक या बवासीर[3] हो जाते हैं। अपनी शारीरिक अवस्था में वे धमनीय-शिरापरक वाहिका और संयोजी ऊतक द्वारा बने कुशन के रूप में काम करते हैं।

बाबासीर (Hemorrhoids (AmE), haemorrhoids (BrE), emerods, or piles) वह रोग है जिसमें गुदा एवं गुदाद्वार पर स्थित शिरायें फूल जातीं हैं।

बवासीर (अर्श) रोग अत्यधिक भोग विकास युक्त जीवन जीनें, कब्ज रहने, शराब, मांस, अण्डा, तली भूनी व मसालेदार गरम चीजें खाने सारा दिन बैठे रहने और व्यायाम ना करने व मैदा, सूजी, बेसन, पॉलिस किया चावल, बैड, बिस्किुट आदि कब्जकारक चीजों का ज्यादा सेवन करने से होता है।

बवासीर दो प्रकार की होती है - खूनी बवासीर और बादी वाली बवासीर। खूनी बवासीर में मस्से खूनी सुर्ख होते है और उनसे खून गिरता है जबकि बादी वाली बवासीर में मस्से काले रंग के होते है और मस्सों में खाज पीडा और सूजन होती है। अतिसार, संग्रहणी और बवासीर यह एक दूसरे को पैदा करने वाले होते है।

मनुष्य की गुदा में तीन आवृत या बलियां होती हैं जिन्हें प्रवाहिणी, विर्सजनी व संवरणी कहते हैं जिनमें ही अर्श या बवासीर के मस्से होते हैं आम भाषा में बवासीर को दो नाम दिये गए है बादी बवासीर और खूनी बवासीर। बादी बवासीर में गुदा में सुजन, दर्द व मस्सों का फूलना आदि लक्षण होते हैं कभी-कभी मल की रगड़ खाने से एकाध बूंद खून की भी आ जाती है। लेकिन खूनी बवासीर में बाहर कुछ भी दिखाई नहीं देता लेकिन पाखाना जाते समय बहुत वेदना होती है और खून भी बहुत गिरता है जिसके कारण रकाल्पता होकर रोगी कमजोरी महसूस करता है। रोगजनक अर्श के लक्षण उपस्थित प्रकार पर निर्भर करते हैं। आंतरिक अर्श में आम तौर पर दर्द-रहित गुदा रक्तस्राव होता है जबकि वाह्य अर्श कुछ लक्षण पैदा कर सकता है या यदि थ्रोम्बोस्ड (रक्त का थक्का बनना) हो तो गुदा क्षेत्र में काफी दर्द व सूजन होता है। बहुत से लोग गुदा-मलाशय क्षेत्र के आसपास होने वाले किसी लक्षण को गलत रूप से “बवासीर” कह देते हैं जबकि लक्षणों के गंभीर कारणों को खारिज किया जाना चाहिए।[4] हालांकि बवासीर के सटीक कारण अज्ञात हैं, फिर भी कई सारे ऐसे कारक हैं जो अंतर-उदर दबाव को बढ़ावा देते हैं- विशेष रूप से कब्ज़ और जिनको इसके विकास में एक भूमिका निभाते पाया जाता है।

<!—उपचार तथा महामारी विज्ञान--> हल्के से मध्यम रोग के लिए आरंभिक उपचार में फाइबर (रेशेदार) आहार, जलयोजन बनाए रखने के लिए मौखिक रूप से लिए जाने वाले तरल पदार्थ की बढ़ी मात्रा, दर्द से आराम के लिए NSAID (गैर-एस्टरॉएड सूजन रोधी दवा) और आराम, शामिल हैं। यदि लक्षण गंभीर हों और परम्परागत उपायों से ठीक न होते हों तो अनेक हल्की प्रक्रियाएं अपनायी जा सकती हैं। शल्यक्रिया का उपाय उन लोगों के लिए आरक्षित है जिनमें इन उपायों का पालन करने से आराम न मिलता हो। लगभग आधे लोगों को, उनके जीवन काल में किसी न किसी समय बवासीर की समस्या होती है। परिणाम आमतौर पर अच्छे रहते हैं।


चिह्न व लक्षण

वाह्य बवासीर जैसा कि मानव गुदा के आसपास दिखता है

वाह्य तथा आंतरिक बवासीर भिन्न-भिन्न रूप में उपस्थित हो सकता है; हालांकि बहुत से लोगों में इन दोनो का संयोजन भी हो सकता है। [2] रक्ताल्पता पैदा करने के लिए अत्यधिक रक्त-स्राव बेहद कम होती है, [5] और जीवन के संकट पैदा करने वाले रक्तस्राव के मामले तो और भी कम हैं। [6] इस समस्या का सामना करने वाले बहुत से लोगों को लज्जा आती है [5] और मामला उन्नत होने पर ही वे चिकित्सीय लेने जाते हैं। [2]

सावधानियाँ एवं उपचार

  • बवासीर के रोगी को बादी और तले हुये पदार्थ नही खाने चाहिये, जिनसे पेट में कब्ज की संभावना हो
  • हरी सब्जियों का ज्यादा प्रयोग करना चाहिये,
  • बवासीर से बचने का सबसे सरल उपाय यह है कि शौच करने उपरान्त जब मलद्वार साफ़ करें तो गुदा द्वार को उंगली डालकर अच्छी तरह से साफ़ करें, इससे कभी बवासीर नही होता है। इसके लिये आवश्यक है कि मलद्वार में डालने वाली उंगली का नाखून कतई बडा नही हो, अन्यथा भीतरी मुलायम खाल के जख्मी होने का खतरा होता है। प्रारंभ में यह उपाय अटपटा लगता है पर शीघ्र ही इसके अभ्यस्त हो जाने पर तरोताजा महसूस भी होने लगता है।

वाह्य

यदि थ्रोम्बोस्ड (रक्त का थक्का बनना) न बने तो वाह्य बवासीर कुछ समस्याएं पैदा कर सकता है। [7] हालांकि, जब रक्त का थक्का बनता है तो बवासीर काफी दर्द भरा हो सकता है।[2][3] फिर भी यह दर्द आम तौर पर 2 – 3 दिनों में कम हो जाता है।[5] हालांकि सूजन जाने में कुछ सप्ताह लग सकते हैं।[5] ठीक हो जाने के बाद त्वचा टैग (त्वचा का एक टुकड़ा) बचा रह सकता है[2] यदि बवासीर बड़े हों और स्वच्छता से जुड़ी समस्याएं पैदा करें तो वे आसपास की त्वचा में परेशानी पैदा कर सकते हैं और गुदा के आसपास खुजली पैदा कर सकते हैं।[7]

आंतरिक

आंतरिक वबासीर आमतौर पर दर्द रहित, चमकदार लाल होता है तथा मल त्याग के दौरान गुदा से रक्त स्राव हो सकता है। [2] आम तौर पर मल रक्त से लिपटा होता है यह एक स्थिति होती है जिसे हेमाटोचेज़िया कहते है इसमें रक्त टॉएलेट पेपर पर दिखता है या शौच स्थान से बह जाता है।[2] मल का अपना रंग सामान्य होता है।[2] अन्य लक्षणों में श्लेष्म स्राव, यदि मांस का टुकड़ा गुदा से भ्रंश हो तो वह, खिचाव तथा असंयमित मलशामिल हैं।[6][8] आंतरिक बवासीर आम तौर पर केवल तब दर्द रहित होते हैं जब वे थ्रोम्बोस्ड या नैक्रोटिक हो जाते हैं।[2]

कारण

लक्षणात्मक बवासीर का सटीक कारण अज्ञात है।[9] इसके होने में भूमिका निभाने वाले कारकों में अनियमित मल त्याग आदतें (कब्ज़ या डायरिया), व्यायाम की कमी, पोषक कारक (कम-रेशे वाले आहार), अंतर-उदरीय दाब में वृद्धि (लंबे समय तक तनाव, जलोदर, अंतर-उदरीय मांस या गर्भावस्था), आनुवांशिकी, अर्श शिराओं के भीतर वॉल्व की अनुपस्थिति तथा बढ़ती उम्र शामिल हैं।[3][5] अन्य कारक जो जोखिम बढ़ाते हैं उनमें मोटापा, देर तक बैठना,[2] या पुरानी खांसी और श्रोणि तल दुष्क्रिया शामिल हैं।[4] हालांकि इनका संबंध काफी कमजोर है।[4]

गर्भावस्था के दौरान भ्रूण का उदर पर दाब तथा हार्मोन संबंधी बदलाव अर्श वाहिकाओं में फैलाव पैदा करते हैं। प्रसव के कारण भी अंतर-उदरीय दाब बढ़ता है।[10] गर्भवती महिलाओं को शल्यक्रिया उपचार की बेहद कम आवश्यकता पड़ती है क्योंकि प्रसव के पाद लक्षण आमतौर पर समाप्त हो जाते हैं।[3]

पैथोफिज़ियोलॉजी(रोग के कारण पैदा हुए क्रियात्मक परिवर्तन)

अर्श कुशन सामान्य मानवीय संरचना का हिस्सा हैं और वे रोग जनक केवल तब बनते हैं जब उनमें असमान्य परिवर्तन होते हैं।[2] सामान्य तौर पर गुहा मार्ग में तीन मुख्य प्रकार के कुशन उपस्थित होते हैं।[3] ये बाएं पार्श्व, दाएँ अग्रस्थ, और दाएँ कूल्हे की स्थितियों पर स्थित होते हैं।[5] इनमें न तो धमनियां होती है और न ही नसें बल्कि इनमें रक्त वाहिकाएं होती हैं जिनको साइनोसॉएड्स कहा जाता है तथा इनमें संयोजी ऊतक तथा चिकनी मांसपेशियां होती हैं।[4] साइनोसॉएड की दीवारों में रक्त वाहिकाओं के समान मांसपेशीय ऊतक नहीं होते हैं।[2] रक्त वाहिकाओं के इस समूह को अर्श स्नायुजालकहा जाता है।[4]

अर्श कुशन मल संयम के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। ये आराम की स्थिति में गुदा बंदी दाब का 15–20% भाग का योगदान करते हैं और मल को मार्ग देते समय गुदा संवरणी मांसपेशियों की रक्षा करते हैं।[2] जब कोई व्यक्ति नीचे झुकता है तो अंतर-उदर दाब बढ़ता है और अर्श कुशन, अपने आकार को संयोजित करके गुदा को बंद रखने में सहयोग करता है।[5] यह विश्वास किया जाता है कि बवासीर लक्षण तब पैदा होते हैं जब ये संवहनी संरचनाएं नीचे की ओर सरकती हैं या जब शिरापरक दबाव बहुत अधिक बढ़ जाता है।[6] बढ़ा हुआ गुदा संवरणी दाब भी बवासीर लक्षणों में शामिल हो सकता है।[5] बवासीर दो तरह के होते हैं:बढ़े हुए अर्श स्नायुजाल के कारण आंतरिक और घटे हुए अर्श स्नायुजाल के कारण वाह्य।[5] एक दांतेदार पंक्ति दोनो क्षेत्रों को विभक्त करती है।[5]

निदान

Internal hemorrhoid grades
Grade Diagram Picture
1 Endoscopic view
2
3
4

बवासीर का निदान आम तौर पर शारीरिक परीक्षण से किया जाता है।[11] गुदा तथा इसके आसपास के क्षेत्र को देख कर वाह्य या भ्रंश बवासीर का निदान किया जा सकता है।[2] किसी गुदा परीक्षण को करके संभव गुदीय ट्यूमर, पॉलिप, बढ़े हुए प्रोस्टेट या फोड़े की पहचान की जाती है। [2] दर्द के कारण, यह परीक्षण शांतिकर औषधि के बिना संभव नहीं है, हालांकि अधिकांश आंतरिक बवासीर में दर्द नहीं होता है।[3] आंतरिक बवासीर की देख कर पुष्टि करने के लिए एनोस्कोपी की जरूरत पड़ सकती है जो कि एक खोखली ट्यूब वाली युक्ति होती है जिसके एक सिरे पर प्रकाश का स्रोत लगा होता है।[5] बवासीर के दो प्रकार होते हैं: वाह्य तथा आंतरिक। इनको दांतेदार पंक्तिके सापेक्ष इनकी स्थिति से निर्धारित किया जाता है।[3] कुछ लोगों में एक साथ दोनो के लक्षण होते हैं।[5] यदि दर्द उपस्थित हो तो यह स्थिति एक गुदा फिशर या वाह्य बवासीर की हो सकती है न कि आंतरिक बवासीर की। [5]

चिकित्सा

सबसे पहले रोग में मुख्य कारण कब्ज को दूर करना चाहिए जिसके लिए ठण्डा कटि स्नाना व एनिमा लेना चाहिए पेट पर ठण्डी मिट्टी पट्टी रखनी चाहिए लेकिन यदि सूजन ज्यादा हो तो एनिमा लेने की बजाय त्रिफला आदि चूर्ण का सेवन करना चाहिए गुदा पर ठण्डी मिट्टी की पट्टी रखनी चाहिए। और सूजन दूर होने पर ही तेज आदि लगाकर एनिमा लेना चाहिए। उपवास करना चाहिए और यदि उपवास ना कर सके तो फलाहार या रसा हार पर रखना चाहिए और साथ-साथ आसन, प्राणायाम, कपाल भाति आदि करने से इस भयंकर रोग से छुटकारा पाया जा सकता है।

बवासीर के आयुर्वेदिक उपचार • डेढ़-दो कागज़ी नींबू अनिमा के साधन से गुदा में लें। दस-पन्द्रह संकोचन करके थोड़ी देर लेते रहें, बाद में शौच जायें। यह प्रयोग 4- 5 दिन में एक बार करें। 3 बार के प्रयोग से ही बवासीर में लाभ होता है । साथ में हरड या बाल हरड का नित्य सेवन करने और अर्श (बवासीर) पर अरंडी का तेल लगाने से लाभ मिलता है। • नीम का तेल मस्सों पर लगाने से और 4- 5 बूँद रोज़ पीने से लाभ होता है। • करीब दो लीटर छाछ (मट्ठा) लेकर उसमे 50 ग्राम पिसा हुआ जीरा और थोडा नमक मिला दें। जब भी प्यास लगे तब पानी की जगह पर यह छास पी लें। पूरे दिन पानी की जगह यह छाछ (मट्ठा) ही पियें। चार दिन तक यह प्रयोग करें, मस्से ठीक हो जायेंगे। • अगर आप कड़े या अनियमित रूप से मल का त्याग कर रहे हैं, तो आपको इसबगोल भूसी का प्रयोग करने से लाभ मिलेगा। आप लेक्टूलोज़ जैसी सौम्य रेचक औषधि का भी प्रयोग कर सकते हैं। • आराम पहुंचानेवाली क्रीम, मरहम, वगैरह का प्रयोग आपको पीड़ा और खुजली से आराम दिला सकते हैं। • ऐसे भी कुछ उपचार हैं जिनमे शल्य चिकित्सा की और अस्पताल में भी रहने की ज़रुरत नहीं पड़ती। बवासीर के उपचार के लिये अन्य आयुर्वेदिक औषधियां हैं: अर्शकुमार रस, तीक्ष्णमुख रस, अष्टांग रस, नित्योदित रस, रस गुटिका, बोलबद्ध रस, पंचानन वटी, बाहुशाल गुड़, बवासीर मलहम वगैरह। बवासीर की रोकथाम: • अपनी आँत की गतिविधियों को सौम्य रखने के लिये, फल, सब्ज़ियाँ, सीरियल, ब्राउन राईस, ब्राउन ब्रेड जैसे रेशेयुक्त आहार का सेवन करें। • तरल पदार्थों का अधिक से अधिक सेवन करें।

आंतरिक

आंतरिक बवासीर वे हैं जो दांतेदार पंक्ति के ऊपर पैदा होते हैं।[7] वे स्तम्भाकार उपकला से ढ़ंके होते हैं जिनमें दर्द ग्राहीनहीं होते हैं।[4] इनको 1985 में चार स्तरों में वर्गीकृत किया गया था जो कि भ्रंश(आगे के विस्तार) के स्तर पर आधारित है।[3][4]

  • ग्रेड I: कोई भ्रंश नहीं। केवल उभरी रक्त वाहिकाएं।[11]
  • ग्रेड II: नीचे झुकने पर भ्रंश लेकिन तुरंत घट जाता है।
  • ग्रेड III: नीचे झुकने पर भ्रंश लेकिन मैनुअल रूप से घटाना बढ़ता है।
  • ग्रेड IV: भ्रंश होता है और उसे मैनुअल तरीके से नहीं हटाया जा सकता है।

वाह्य

एक थ्रोम्बोस्ड वाह्य बवासीर

वाह्य बवासीर वे हैं जो दांतेदार पंक्ति के नींचे पैदा होते हैं।[7] अचर्म से नज़दीकी से तथा त्वचा से बाहरी से ढ़ंके रहते हैं, ये दोनो ही दर्द तथा तापमान के प्रति संवेदी होते हैं। [4]

विभेदक

गुदा एवं मलाशय संबंधी बहुत सी समस्याएं, जिनमें फिसर, नालव्रण, फोड़े, कोलोरेक्टल कैंसर, गुदा वैरिक्स तथा खुजलाहट शामिल हैं, समान लक्षणों वाली होती हैं और इनको गल्ती से बवासीर के रूप में संदर्भित किया जा सकता है। [3] गुदीय रक्त स्राव का कारण कोलोरेक्टल कैंसर, कोलाइटिस के कारण हो सकती है तथा इसमें सूजन वाला आंत्र रोग, डाइवर्टिक्युलर रोग तथा एंजियोडाइप्लासियाभी शामिल हैं।[11] यदि रक्ताल्पता पस्थित है तो अन्य संभावित कारणों पर भी विचार किया जाना चाहिए।[5]

अन्य परिस्थितियां जो गुदीय मांस में शामिल है वे निम्नलिखित हैं: त्वचा टैग, गुदा गाँठ, गुदीय भ्रंश, पॉलिप तथा बढ़ा हुआ गुदीय उभार।[5] बढ़े हुए पोर्टल रक्तचाप (पोर्टल शिरापरक प्रणाली में रक्त दाब) के कारण हुए गुदा वैरिक्स भी बवासीर जैसी स्थिति पैदा कर सकता है लेकिन वह एक भिन्न स्थिति हैं।[5]

बचाव

बचाव के कई उपायों की अनुशंसा की गयी है जिनमें मलत्याग करते समय ज़ोर लगाने से बचना, कब्ज़ तथा डायरिया से बचाव शामिल है जिसके लिए उच्च रेशेदार भोजन तथा पर्याप्त तरल को पीना या रेशेदार पूरकों को लेना तथा पर्याप्त व्यायाम करना शामिल है।[5][12] मलत्याग के प्रयास में कम समय खर्च करना, शौच के समय कुछ पढ़ने से बचना [3] और साथ ही अधिक वज़न वाले लोगों के लिए वजन कम करना तथा अधिक भार उठाने से बचना अनुशंसित है।[13]

प्रबंधन

परम्परागत उपचार में आमतौर पर पोषण से भरपूर रेशेदार आहार लेना, तथा जलयोजन बनाए रखने के लिए मौखिक रूप से तरल ग्रहण करना, गैर-एस्टरॉएड सूजन रोधी दवाएं (NSAID), सिट्ज़ स्नान तथा आराम शामिल हैं। [3]रेशेदार आहार की बढ़ी मात्रा ने बेहतर परिणाम दर्शाए हैं,[14] तथा इसे आहारीय परिवर्तनों द्वारा या रेशेदार पूरकोंकी खपत से हासिल किया जा सकता है।[3][14] सिट्ज़ स्नान के माध्यम से उपचार के किसी भी बिंदु पर साक्ष्य उपलब्ध नहीं है। [15] यदि इनको उपयोग किया जाता है तो इनको एक बार में 15 मिनट तक सीमित रखना चाहिए।[4]

हालांकि बवासीर के उपचार के लिए बहुत सारे स्थानीय एजेंट तथा वर्तियां (सपोसिटरीज़) उपलब्ध हैं, लेकिन इनके समर्थन में साक्ष्य बेहद कम उपलब्ध हैं।[3] स्टेरॉएड समाहित एजेंटों को 14 दिन से अधिक की अवधि तक उपयोग नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि वे त्वचा को पतला करते हैं। [3] अधिकांश एजेंटों में सक्रिय तत्वों के संयोजन शामिल होते हैं।[4] इनमें निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं: एक बाधा क्रीम जैसे पेट्रोलियम जेली या ज़िंक ऑक्साइड, एक दर्दहारी एजेंट जैसे कि लिडोकेन और एक वैसोकॉन्सट्रिक्टर (रक्त शिराओं के मुहाने को संकीर्ण करने वाला) जैसे कि एपीनेफ्राइन[4] फ्लैवोनॉएड के लाभों पर प्रश्नचिह्न लगता है जिसके कि संभावित पश्च-प्रभाव होते हैं। [4][16] लक्षण गर्भवस्था के कारण असमान्य रूप से दिखने हैं; इस कारण से उपचार अक्सर प्रसव के बाद तक टल जाते हैं।[17]

आहार

रोग की तीव्रास्थाओं में उपवास करना चाहिए और यदि उपवास ना कर सके तो फल व फलों का रस दही, लस्सी, नींबू, शहद, पानी आदि देना चाहिए। रोग की तीव्रास्था खत्म होने पर किशमिश, मुनक्का, अंजीर तथा मौसमी, पपीता, सेब, गाजर, टमाटर, अमरूद, अन्नानास आदि फलों का सेवन करना चाहिए एवं हरी पत्तेदार सब्जियां, चोकर सहित आटे की रोटी, गेंहू का दलिया तथा अंकुरित अन्न आदि का सेवन करना चाहिए। इस प्रकार प्राकृतिक चिकित्सा व खान-पान आदि में सुधार करने से यह रोग बिना इंजेक्शन व दवाईयों के ठीक किया जा सकता है।


संदर्भ

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