"सविता आंबेडकर": अवतरणों में अंतर
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भीमराव आंबेडकर के निधन के बाद सविता जी पर कुछ आंबेडकरवादियों ने अंबेडकर की हत्या करने का आरोप लगाया। तत्कालीन प्रधानमंत्री [[जवाहरलाल नेहरू]] ने इस मामले की जांच के लिए एक कमेटी बनाई, और उस कमेटी ने जांच के बाद सविता जी को आरोपों से मुक्त कर दिया गया।<ref>https://www.loksatta.com/lekha-news/the-buddha-and-his-dhamma-dr-b-r-ambedkar-1594868/</ref> |
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उन्होंने खुद को दिल्ली में अपने मेहरौली स्थित फार्महाउस तक समेट लिया। |
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06:36, 15 अप्रैल 2018 का अवतरण
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सविता आंबेडकर | |
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सविता आंबेडकर, १५ अप्रेल, १९४८ | |
जन्म |
शारदा कबीर 27 जनवरी 1909 |
मौत |
मई 29, 2003 जे.जे. हॉस्पिटल, मुंबई | (उम्र 94)
राष्ट्रीयता | भारतीय |
उपनाम | माई, माईसाहब, शारदा, शारु |
जाति | मराठी |
शिक्षा | एमबीबीएस |
शिक्षा की जगह | ग्रेन्ट मेडिकल कॉलेज, मुंबई |
पेशा | डॉक्टर, समाजसेविका |
प्रसिद्धि का कारण | भीमराव आंबेडकर की पत्नी |
धर्म | बौद्ध |
जीवनसाथी | भीमराव आंबेडकर |
माता-पिता | कृष्णा कबीर (पिता) |
सविता भीमराव आंबेडकर भारतीय समाजसेविका, डॉक्टर तथा भारत के संविधान निर्माता भीमराव आंबेडकर की दूसरी पत्नी थीं। वे पुणे के पुरोगामी ब्राह्मण परिवार से थीं। उन्होंने जाति पाती के बंधनों की परवाह नहीं की थी।[1] भीमराव आंबेडकर ने अपने भगवान बुद्ध और उनका धम्म ग्रंथ की 15 मार्च 1956 में लिखी गई मूल प्रस्तावना में उन्होंने अपनी पत्नी सविता आंबेडकर का उल्लेख किया था और उनकी आयु 8-10 वर्ष अधिक बढाने का श्रेय उन्हे दिया था।
प्रारंभिक जीवन
सविता आंबेडकर का जन्म पुणे के सभ्रांत मराठी सारस्वत ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वह पढ़ने में बहुत कुशाग्र थीं। उनकी आरंभिक शिक्षा पुणे में ही हुई। इसके बाद उन्होंने मुंबई के ग्रेन्ट मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस किया। चिकित्सा की पढ़ाई पूरी कर वे गुजरात के एक अस्पताल में काम करने लगीं। फिर वे मुंबई आ गईं। वहाँ आंबेडकर से उनका परिचय और विवाह हुआ। वे आंबेडकर के लेखन तथा आंदोलन में हाथ बँटाने लगीं।
विवाह
1947 में संविधान लेखन के दौरान भीम राव अंबेडकर को मधुमेह और उच्च रक्तचाप के कारण उन्हें स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं होने लगी। उन्हें नींद नहीं आती थी। पैरों में न्यूरोपैथिक दर्द रहने लगा। इंसुलिन और होम्योपैथिक दवाएं किसी हद तक ही राहत दे पाती थीं। इलाज के लिए वह बंबई गए। वहीं डॉक्टर सविता इलाज के दौरान अंबेडकर के करीब आईं। अंबेडकर की पहली पत्नी रमाबाई का लंबी बीमारी के बाद 1935 में निधन हो चुका था। अंबेडकर ने सविता के साथ दूसरे विवाह का फैसला किया। 15 अप्रैल 1948 को उनका विवाह हो गया।
सविता-अंबेडकर के विवाह से ब्राह्मण और दलित दोनों समुदायों के अनेक लोग कुपित हुए। अनेक ब्राह्मणों ने अंबेडकर की दलित राजनीति और विचारधारा पर सवाल खड़े किए। दलितों के एक वर्ग ने कहा कि इससे गलत तो कुछ हो ही नहीं सकता था। क्या बाबा साहेब को शादी के लिए एक ब्राह्मण स्त्री ही मिली थी। कइयों ने इसे ब्राह्मणों की साजिश कहा। कुछ ने खिल्ली भी उड़ाई। किंतु अंबेडकर के बहुत से अनुयायियों ने माना कि वह जो करते हैं, सोचसमझ कर करते हैं, ज्यादा विचारवान और समझदार हैं, इसलिे उन्होंने उचित ही किया होगा। इस शादी के पक्ष में यह तर्क भी दिया गया कि चूंकि ब्राह्मणों के यहां महिलाओं की स्थिति दलित की तरह होती है, इसलिए उन्होंने एक महिला का उद्धार किया है।
समर्पित पत्नि
विवाह के बाद डॉक्टर सविता को डॉक्टर सविता माई कहा जाने लगा। वे आजीवन सेवा और समर्पण की मूर्ति बनी रहीं। अंबेडकर का स्वास्थ्य लगातार खराब होता चला जा रहा था। वे पूरी निष्ठा के साथ अंबेडकर की मरते दम तक सेवा करती रहीं। अंबेडकर ने अपनी पुस्तक द बुद्धा एंड हिज धर्मा की 15 मार्च 1956 को लिखी भूमिका में भावुक अंदाज में पत्नी से मदद मिलने का उल्लेख किया। अंबेडकर के निधनोपरांत उनके करीबियों और अनुयायियों ने यह भूमिका हटवा दी। इसका पता १९८० ई. में चला जब पंजाबी बुद्धवादी लेखक भगवान दास ने उनकी इस भूमिका को दुर्लभ भूमिका के रूप में प्रकाशित करायी।
धर्मांतरण
आरोप एवं उसका खंडन
भीमराव आंबेडकर के निधन के बाद सविता जी पर कुछ आंबेडकरवादियों ने अंबेडकर की हत्या करने का आरोप लगाया। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इस मामले की जांच के लिए एक कमेटी बनाई, और उस कमेटी ने जांच के बाद सविता जी को आरोपों से मुक्त कर दिया गया।[2]
आंबेडकर के निधनोपरांत उनके करीबियों औ्र अनुयायियों के व्यवहार से वह बहुत आहत हुईं। उनपर षडयंत्र और हत्या का आरोप लगा। उन्हें ब्राह्मण बताकर अंबेडकर आंदोलन से अलग कर दिया गया। उन्होंने खुद को दिल्ली में अपने मेहरौली स्थित फार्महाउस तक समेट लिया।
दलित आंदोलन से पुनर्जुड़ाव
भारतीय रिपब्लिकन पार्टी के नेता रामदास आठवले और गंगाधर गाडे उन्हें दोबारा आंबेडकरवादी आंदोलन की मुख्यधारा में लौटा लाए। उम्र बढ़ने पर वह फिर अलग हो गईं।
लेखन
उन्होंने आंबेडकर पर डॉ. आंबेडकरांच्या सहवासात (हिंदी: 'डॉ॰ आंबेडकर के सम्पर्क में') नामक संस्मरणात्मक एवं आत्मकथात्मक पुस्तक लिखी। उन्होंने आंबेडकर पर बनी फिल्म 'डॉ॰ बाबासाहेब आंबेडकर' में भी योगदान दिया।
निधन
आंबेडकर के निधनोपरांत वे एकाकी हो गईं। बाद में वे कुछ समय तक दलित आंदोलन से पुनः जुड़ीं। सविता माई का 29 मई 2003 को 94 साल की उम्र में मुंबई के जेजे अस्पताल में निधन हो गया।[3]
संदर्भ
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