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'{{स्रोतहीन|date=दिसम्बर 2012}} [[चित्र:Anasuya feeding the Hindu Trinity, The Krishna-Sudama Temple of Porbandar, India.JPG|right|thumb|300px|पोरबन्दर के मन्दिर में त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु, शंकर) को भोजन कराती सती अनसूया की मूर्ति]] '''अनसूया''' प्रजापति कर्दम और देवहूति की 9 कन्याओं में से एक तथा अत्रि मुनि की पत्नी थीं। उनकी पति-भक्ति अर्थात् सतीत्व का तेज इतना अधिक था के उसके कारण आकाशमार्ग से जाते देवों को उसके प्रताप का अनुभव होता था। इसी कारण उन्हें 'सती अनसूया' भी कहा जाता है। अनसूया ने [[श्रीराम]], [[सीता]] और [[लक्ष्मण]] का अपने आश्रम में स्वागत किया था। उन्होंने सीता को [[उपदेश]] दिया था और उन्हें अखंड [[सुन्दरता|सौंदर्य]] की एक ओषधि भी दी थी। सतियों में उनकी गणना सबसे पहले होती है। [[कालिदास]] के 'शाकुंतलम्' में अनसूया नाम की शकुंतला की एक सखी भी कही गई है। == कथा == एक बार ब्रह्मा, विष्णु व महेश उनकी सतीत्व की परीक्षा करने की सोची, जो की अपने आप में एक रोचक कथा है। पतिव्रता देवियों में अनसूया का स्थान सबसे ऊँचा है। वे अत्रि-[[ऋषि]] की पत्‍‌नी थीं। उनके संबंध में बहुत सी लोकोत्तर कथाएँ शास्त्रों में सुनी जाती हैं। आश्रम में गये तो श्रीअनसूयाजी ने सीताजी को पातिव्रतधर्म की विस्तारपूर्वक शिक्षा दी थी। उनके संबंध में एक बड़ी रोचक कथा है। एक बार ब्रह्माणी, लक्ष्मी और गौरी में यह [[विवाद]] छिड़ा कि सर्वश्रेष्ठ पतिव्रता कौन है? अंत में तय यही हुआ कि अत्रि पत्‍‌नी श्रीअनसूया ही इस समय सर्वश्रेष्ठ पतिव्रता हैं। इस बात की परीक्षा लेने के लिये त्रिमूर्ती [[ब्रह्मा]], विष्णु व शंकर ब्राह्मण के वेश में अत्रि-आश्रम पहुँचे। अत्रि ऋषि किसी कार्यवश बाहर गये हुए थे। अनसूया ने अतिथियों का बड़े आदर से स्वागत किया। तीनों ने अनसूयाजी से कहा कि हम तभी आपके हाथ से भीख लेंगे जब आप अपने सभी <ref>http://www.lordsiva.in/?q=node/11</ref><ref>{{Cite web |url=https://www.shortstories.co.in/atri-and-anusuya/ |title=संग्रहीत प्रति |access-date=25 अप्रैल 2017 |archive-date=26 अप्रैल 2017 |archive-url=https://web.archive.org/web/20170426061703/https://www.shortstories.co.in/atri-and-anusuya/ |url-status=dead }}</ref> को अलग रखकर भिक्षा देंगी। सती बड़े धर्म-संकट में पड़ गयी। वह [[भगवान]] को स्मरण करके कहने लगी "यदि मैंने पति के समान कभी किसी दूसरे पुरुष को न देखा हो, यदि मैंने किसी भी देवता को पति के समान न माना हो, यदि मैं सदा मन, वचन और कर्म से पति की आराधना में ही लगी रही हूँ तो मेरे इस सतीत्व के प्रभाव से ये तीनों नवजात शिशु हो जाँय।" तीनों देव नन्हे बच्चे होकर श्रीअनसूयाजी की गोद में खेलने लगे। और अनसूया उन तीनौ शिशु को अपना स्तनपान कराने लगी ।। ==इन्हें भी देखें== *[[सती अनसूइया मन्दिर, उत्तराखण्ड]] == सन्दर्भ == {{टिप्पणीसूची}} {{प्राचीन भारत की आदर्श नारियाँ}} {{आधार}} [[श्रेणी:हिन्दू धर्म] Shiv'
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'@@ -9,5 +9,5 @@ एक बार ब्रह्मा, विष्णु व महेश उनकी सतीत्व की परीक्षा करने की सोची, जो की अपने आप में एक रोचक कथा है। -पतिव्रता देवियों में अनसूया का स्थान सबसे ऊँचा है। वे अत्रि-[[ऋषि]] की पत्‍‌नी थीं। उनके संबंध में बहुत सी लोकोत्तर कथाएँ शास्त्रों में सुनी जाती हैं। आश्रम में गये तो श्रीअनसूयाजी ने सीताजी को पातिव्रतधर्म की विस्तारपूर्वक शिक्षा दी थी। उनके संबंध में एक बड़ी रोचक कथा है। एक बार ब्रह्माणी, लक्ष्मी और गौरी में यह [[विवाद]] छिड़ा कि सर्वश्रेष्ठ पतिव्रता कौन है? अंत में तय यही हुआ कि अत्रि पत्‍‌नी श्रीअनसूया ही इस समय सर्वश्रेष्ठ पतिव्रता हैं। इस बात की परीक्षा लेने के लिये त्रिमूर्ती [[ब्रह्मा]], विष्णु व शंकर ब्राह्मण के वेश में अत्रि-आश्रम पहुँचे। अत्रि ऋषि किसी कार्यवश बाहर गये हुए थे। अनसूया ने अतिथियों का बड़े आदर से स्वागत किया। तीनों ने अनसूयाजी से कहा कि हम तभी आपके हाथ से भीख लेंगे जब आप अपने सभी <ref>http://www.lordsiva.in/?q=node/11</ref><ref>{{Cite web |url=https://www.shortstories.co.in/atri-and-anusuya/ |title=संग्रहीत प्रति |access-date=25 अप्रैल 2017 |archive-date=26 अप्रैल 2017 |archive-url=https://web.archive.org/web/20170426061703/https://www.shortstories.co.in/atri-and-anusuya/ |url-status=dead }}</ref> को अलग रखकर भिक्षा देंगी। सती बड़े धर्म-संकट में पड़ गयी। वह [[भगवान]] को स्मरण करके कहने लगी "यदि मैंने पति के समान कभी किसी दूसरे पुरुष को न देखा हो, यदि मैंने किसी भी देवता को पति के समान न माना हो, यदि मैं सदा मन, वचन और कर्म से पति की आराधना में ही लगी रही हूँ तो मेरे इस सतीत्व के प्रभाव से ये तीनों नवजात शिशु हो जाँय।" तीनों देव नन्हे बच्चे होकर श्रीअनसूयाजी की गोद में खेलने लगे। और अनसूया उन तीनौ शिशु को अपना स्तनपान कराने लगी ।। +पतिव्रता देवियों में अनसूया का स्थान सबसे ऊँचा है। वे अत्रि-[[ऋषि]] की पत्‍‌नी थीं। उनके संबंध में बहुत सी लोकोत्तर कथाएँ शास्त्रों में सुनी जाती हैं। आश्रम में गये तो श्रीअनसूयाजी ने सीताजी को पातिव्रतधर्म की विस्तारपूर्वक शिक्षा दी थी। उनके संबंध में एक बड़ी रोचक कथा है। एक बार ब्रह्माणी, लक्ष्मी और गौरी में यह [[विवाद]] छिड़ा कि सर्वश्रेष्ठ पतिव्रता कौन है? अंत में तय यही हुआ कि अत्रि पत्‍‌नी श्रीअनसूया ही इस समय सर्वश्रेष्ठ पतिव्रता हैं। इस बात की परीक्षा लेने के लिये त्रिमूर्ती [[ब्रह्मा]], विष्णु व शंकर ब्राह्मण के वेश में अत्रि-आश्रम पहुँचे। जब अत्रि ऋषि किसी कार्यवश बाहर गये हुए थे। अनसूया ने अतिथियों का बड़े आदर से स्वागत किया। जब भोजन का समय हुआ तो तीनों ने अनसूयाजी से कहा कि हम तभी आपके हाथ से भोजन करेंगे जब आप अपने सभी वस्त्र उतार कर नग्न होकर भोजन कराएंगी। सती बड़े धर्म-संकट में पड़ गयी। वह [[भगवान]] को स्मरण करके कहने लगी "यदि मैंने पति के समान कभी किसी दूसरे पुरुष को न देखा हो, यदि मैंने किसी भी देवता को पति के समान न माना हो, यदि मैं सदा मन, वचन और कर्म से पति की आराधना में ही लगी रही हूँ तो मेरे इस सतीत्व के प्रभाव से ये तीनों शिशु हो जाँय। फिर तीनों देव नन्हे बच्चे होगए।श्रीअनसूयाजी अपनि सभी वस्त्र उतारकर नग्न होकर तीनों देव को गोद में रखी। फिर उन तीनौ शिशु को अपना स्तनपान कराने लगी ।। ==इन्हें भी देखें== '
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