वार्ता:अपभाषा

पृष्ठ की सामग्री दूसरी भाषाओं में उपलब्ध नहीं है।
मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
(वार्ता:कठबोली से अनुप्रेषित)

चाहें तो अपशब्द को भी इस पृष्ठ पर अनुप्रेषित कर सकते हैं। वैसे मूत्र को सूसू कहने से ज्यादा 'मूत' कहने पर स्लैंग का भाव निकलता है। -- अजीत कुमार तिवारी वार्ता 15:30, 9 जुलाई 2012 (UTC)[उत्तर दें]

तिवारी जी, अपशब्द गाली नहीं होती? शायद कठबोली इस से अलग है (अंग्रेज़ी में स्लैंग और अब्यूज़ का अंतर)। मैं 'गाली' पर भी एक लेख बनाने की सोच रहा था और अपशब्द उसको अनुप्रेषित कर दूंगा - उस पर भी नज़र डाल लीजियेगा। मूत वाला सुझाव अच्छा है और इसे भी मैं लेख में सम्मिलित कर दूंगा। सूसू को भी रखूंगा क्योंकि वह मूत से कम अप्रिय माना जाता है ('बच्चे ने सूसू कर दिया' ← तुलना → 'बच्चे ने मूत दिया') और कठबोली का प्रेयोक्ति के रूप में इस्तेमाल किया जाने का उदाहरण है। अगर आपको और कोई अच्छे कठबोली के शब्द सूझ रहें हों, तो लेख में ज़रूर डालें - मेहरबानी होगी। न जाने क्यों कल लेख बनाते हुए मुझे अश्लील कठबोली अधिक और लेख-योग्य कठबोली कम सूझ रही थी :-) वैसे जहाँ तक मैं ढूंढ पाया हूँ, 'सूसू' एक बहुत ही ठेठ भारतीय कठबोली है जो उपमहाद्वीप से बाहर नहीं मिलती और दशकों से बिना औपचारिक भाषा का हिस्सा बने चलती आ रही है। मुझे शक़ है कि यह संस्कृत के 'स्रव' (अर्थ: मूत्र) के दोहराव का बिगड़ा रूप है, यानि स्रवस्रव - 'सूसू' बन गया, लेकिन मैं ग़लत भी हो सकता हूँ और इसका कोई प्रमाणित स्रोत नहीं मिला है, इसलिए लेख में नहीं डाल रहा हूँ। --Hunnjazal (वार्ता) 02:57, 10 जुलाई 2012 (UTC)[उत्तर दें]

इसकी (स्रव से सूसू) उत्पत्ति का तो मुझे ज्ञान नहीं है। आपने सही कहा कि सूसू कम अप्रिय है। सूसू संभ्रांत वर्ग (या कम से कम जो दिखना चाहता है) अधिक प्रयोग करता है। ठेठ बोली में 'मुत्ती' ज्यादा प्रयोग होती है, जो मूत से कम अप्रिय और सहज मानी जाती है। रोचक है कि मूत पुलिंग है और मुत्ती स्त्रीलिंग है। स्त्रीलिंग है मतलब कि भाव थोड़ा नरम है। आप भी इस पर सोचिएगा। याद तो मुझे भी अश्लील कठबोली ही आ रही थी तभी तो सुझाव नहीं दिया। बेशक अपशब्द गाली का पर्याय है इसीलिए 'चाहें तो' लगाया था। वेल्ला, निठल्ला आदि बेकार लोगों के लिए कठबोली है। लल्लू का इस्तेमाल अक्सर मूर्खता के लिए किया जाता है। चमचा, लटकन आदि ख़ुशामद करने वालों को कहा जाता है। जैसे जैसे याद आता जायगा शामिल करते जाएंगे। समस्या केवल संदर्भ की होगी। उपन्यासों से ले सकें तो मिल सकता है। जैसे- राही मासूम रज़ा का 'आधा गाँव', श्रीलाल शुक्ल का 'राग दरबारी' और काशीनाथ सिंह का 'काशी का अस्सी' आदि उपन्यासों में कठबोलियों (गाँव में इसे ठिबोली कहते हैं) और गालियों का प्रचुर संदर्भ है। ये साहित्यकार हिंदी कथा साहित्य के महत्वपूर्ण और उल्लेखनीय नाम हैं। -- अजीत कुमार तिवारी वार्ता 04:14, 10 जुलाई 2012 (UTC)[उत्तर दें]

सही कह रहें हैं, राग दरबारी से मिलने चाहियें, हालांकि मैं उसे दो दफ़ा पढ़ चुका हूँ और जहाँ तक मुझे याद है ग्रामीण पृष्ठभूमि में होने के बावजूद उसकी भाषा वास्तव में काफ़ी मानक थी। उसपर आधारित जो टेलिविज़न सीरीयल बना था (ओम पुरी वाला) शायाद उसमें अधिक कठबोलियाँ मिलें। लेकिन उपन्यास एक साथ बहुत रसीला, मज़ेदार और दुखदायक है इसलिए शायाद दोबारा पढ़ने-छानने में मज़ा आए। मुझे लगता है कि प्रेमचंद में भी मिल सकते हैं। आपके यह शब्द सुझाव बढ़िया हैं - लेख में ज़रूर डालियेगा। चमचा बहुत ही बढ़िया है - यह तो लगता है कठबोली के रूप में सैंकड़ों सालों से हिन्दी में होगा। मुझे 'सूसू' उत्तर-पश्चिमी हिन्दी क्षेत्र की उत्पत्ति लगता है क्योंकि इसका इस्तेमाल हरियाणा इत्यादि में सभी वर्ग करते हैं और यह पंजाबी में भी है। अंग्रेज़ी भाषा या कठबोली में ऐसा कोई शब्द नहीं। न ही ऐसा कोई शब्द मुझसे फ़ारसी या अरबी में ढूँढा गया है। सम्भव है कि यह प्राकृत से हरियाणा क्षेत्र में आया हो, लेकिन मैं इस विचार में बिलकुल ग़लत भी हो सकता हूँ। --Hunnjazal (वार्ता) 07:02, 10 जुलाई 2012 (UTC)[उत्तर दें]