भारतीय राष्ट्रीय मिलिट्री कालेज

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आर.आई.एम.सी
”बाल विवेक
स्थिति
देहरादून
IND
सूचना
संस्थापक प्रिंस ऑफ वेल्स एडवर्ड अष्टम
नामांकन

250

लिंग पुरुष
आयु 12 to 18
Type निजि विद्यालय
भारत सरकार द्वारा चालित
Grades कक्षा 8 - 12
परिसर आकार 138-एकड़ (0.56 कि॰मी2)
Colour(s) हल्का नीला और गहरा नीला

  

स्थापना 1922
Former pupils रिम्कालियन
विभाग चंद्रगुप्त, प्रताप, रण्जीत एवं शिजाजी
जालस्थल

राष्ट्रीय इंडियन मिलिट्री कालिज या आर.आई.एम.सी. दून घाटी में लड़्कों के लिये एक उत्तम निजि विद्यालय है।[1] यही सन 1947 तक प्रिंस ऑफ वेल्स रॉयल इण्डियम मिलिट्री कालिज था। यह संस्थान एक महान परंपरा की धरोहर लेये है, जो अब राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एन.डी.ए.) और अन्ततः भारतीय सेना का फीडर संस्थान है। यहां के उत्तीर्ण छात्र, रिम्कॉलियन्स कहलाते हैं (अल्युम्नाई का नाम) और वे इतिहास में अधिकतर सभी, भारतीय और पाकिस्तानी सेनाओं के सर्वोच्च श्रेणीधारक रहे हैं।

भवन[संपादित करें]

आरआईएमसी के परिसर में पहुंचने से पहले एक लंबी सुंदर सड़क है। इस संस्थान में अलग-अलग विषयों के लिए अलग-अलग भवन हैं। ये सभी ट्यूडर स्थापत्य शैली के हैं। इन सभी भवनों के डिजाइन एक जैसे हैं, इनमें सिर्फ थोड़े परिवर्तन हैं। इस भवन की कुछ विशेषताओं में उभरी हुई भुजाएं और राफ्टर, वेंटीलेटर के साथ दोनों तरफ की लुढ़की हुई और उनकी सामने निकली छतें, लकड़ी के दरवाजे और खिड़की तथा भवन के नीचे वाले तल पर पूरा आर्क कोलोनेड है। फर्श पर पूरी तरह लकडी के तख्‍ते का उपयोग किया गया है और भवन की आंतरिक साज-सज्जा के लिए छद्म छत (फॉल्‍स सीलिंग) का उपयोग किया गया है।

इतिहास[संपादित करें]

इस संस्थान की स्थापना सन 1922 में ब्रिटिश साम्राज्य ने भारतीय छात्रों (कैडेटों) को रॉयल मिलिट्री अकादमी, सैंडहर्स्ट में प्रविष्टि हेतु प्रिशिक्षण देने हेतु की गयी थी। प्रिंस ऑफ वेल्स, एडवर्ड अष्टम ने इसका उद्घाटन मार्च 1922 में किया था। तभी इसका नाम उनके नाम पर रखा गया था।[2]

तब यह इम्पीरियल कैडेट कॉर्प्स (सजवाड़ा कैम्प) के प्रांगण में स्थित था। यह 138 एकड़ का हरा भरा कैम्पस देहरादून कैण्ट के गढ़ी गांव के निकट था। तब ब्रिटिशों का विश्वास था, कि निजि विद्यालयों की शिक्षा भारतीय युवाओं के लिये सेनाओं के अनुशासन हेतु अनिवार्य होगी।

आर.आई.एम.सी के लिये, मूल सरकारी आदेशानुसार लेफ्टि.कर्नल श्रेणी का मिलिट्री कमाण्डेण्ट और वरिष्ठ और कनिष्ठ ब्रिटिश शिक्षक और कुछ भारतीय शिक्षक नियुक्त किये गये। प्रथम कमा० थे लेफ्टि.कर्नल एच.एल.रॉउटन, सिख रेजिमेंट, जिन्होंने 22 फरवरी 1922 को अधिभार ग्रहण किया था। हीरा लाल अटल, प्रथम कैडेट कप्तान थे, जिन्हें स्वतंत्रता उपरांत भारतीय संघ का एजंडेण्ट जनरल भी नियुक्त किया गया था। मेज.जेन.हीरा लाल ने भारत का सर्वोच्च कॉम्बैट हेतु साहस पुरस्कार, परम वीर चक्र; अभिकल्पित किया था। प्राथमिक कैडेट्स में से कुछ थे के.एस.थिमैया, असगर खान, इत्यादि[3]

भारतीय स्वतंत्रता उपरांत, विद्यालय ने अपनी शिक्षा परंपरा जारी रखी, पर अब भारतीय सेना के लिये युवाओं की शिक्षा और प्रशिक्षण हेतु। अन्तर केवल इतना था, कि अब वह एन.डी.ए. के लिये फीडर का कार्य करता है। जो कि स्वयं भारतीय सेनाओं का फीडर संस्थान है।

विद्यालय[संपादित करें]

यह विद्यालय लगभग 134 एकड़ में विस्तृत है और एक समय में 250 कैडेट्स दीक्षित करता है। इसके लिये प्रत्याशी पूर्ण भारत भर से एक राष्ट्रीय स्तर की प्रवेश प्रतियोगिता द्वारा चुने जाते हैं। इसमें चुने गये प्रत्याशी को एक मेडिकल परिक्षण को भी उत्तीर्ण करना होता है। प्रत्येक वर्ष 50 छात्र वर्ष में दो बार लिये जाते हैं।


अल्युम्नाई[संपादित करें]

चित्र:RimcOldCrest.jpg
The Prince of Wales's feathers:-The Traditional Old Crest

== बाहरी कड़ियां == *आधिकारिक वेबसाइट

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. gk, mpsc. "भारतीय राष्ट्रीय मिलिटरी कालेज देहरादून". https://mympsc.com (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2023-10-02. |website= में बाहरी कड़ी (मदद)[मृत कड़ियाँ]
  2. "The Prince of Wales Royal Indian Military College, Dehradun, was established in 1922....", Page 223, Defence Organisation in India, By A. L. Venkateswaran, Published 1967, Publications Division, Ministry of Information and Broadcasting
  3. Pages 22 and 23, Where Gallantry is Tradition: Saga of Rashtriya Indian Military College, By Bikram Singh, Sidharth Mishra, Contributor Rashtriya Indian Military College, Published 1997 by Allied Publishers, ISBN 81-7023-649-5

अल्युम्नाई शिक्षण संस्थान