हरियाणा का इतिहास

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
हरियाणा का इतिहास

हालाँकि हरियाणा अब पंजाब का एक हिस्सा नहीं है पर यह एक लंबे समय तक ब्रिटिश भारत में पंजाब प्रान्त का एक भाग रहा है और इसके इतिहास में इसकी एक महत्वपूर्ण भूमिका है। हरियाणा के बानावाली और राखीगढ़ी, जो अब हिसार में हैं[1], सिंधु घाटी सभ्यता का हिस्सा रहे हैं, जो कि ५,००० साल से भी पुराने हैं।[2]

नामोत्पत्ति[संपादित करें]

मानवविज्ञानियों का मानना ​​है कि हरियाणा को इस नाम से जाना जाता था क्योंकि महाभारत के बाद के काल में, आभीर यहाँ रहते थे,[3] जिन्होंने कृषि कला में विशेष कौशल विकसित किया।[4] प्राण नाथ चोपड़ा के अनुसार हरियाणा का नाम अभिरायण-अहिरायण-हिरायणा-हरियाणा से लिया गया है।[5]

हरियाणा/हरियाणा राज्य के नामकरण का इतिहास

दिल्ली और हरियाणा में मिले ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार हरियाणा राज्य का नाम हरियानक शब्द से लिया गया है, जिसका विवरण नीचे दिया गया है।

1. पालम बावड़ी अभिलेख,

बुधवार, श्रावण कृष्ण त्रयोदशी संवत 1337 विक्रमी (1280 ईस्वी) को दिल्ली में कुसुंबपुर से महरौली के पुराने मार्ग पर पालम गांव के पास, उड्ढर ठाक्कर नामक व्यक्ति द्वारा निर्मित एक प्राचीन बावड़ी पर एक संस्कृत शिलालेख मिला, जो इस प्रकार है: इस प्रकार है -

अभोजितोमारैरादौ चौहानास्तदन्तरम्, हरियानक भूरेषा शकेन्द्रैः शास्यते अधुना।।

अर्थात् इस हरियानक भूमि का उपभोग पहले तोमरों ने किया और फिर चौहानों ने। आजकल शकदेशी अर्थात् ईरानी-अफगानी राजा इसका आनन्द उठा रहे हैं। इस अभिलेख के अंत में तत्कालीन अपभ्रंश हिन्दी भाषा में लिखा है-

किआसंदिं सुरिताण रजि हरियाण इ देश है, पंचकोश ढिल्ली हु पंथी पालम पवेश ह।।

अर्थात सुल्तान (गियासुद्दीन बलबन) दिल्ली की गद्दी पर बैठकर इस हरियाणा देश पर शासन कर रहा है। यहां से पालम बावड़ी से दिल्ली का कुतुब मीनार यानी आधुनिक महरौली पांच कोस दूर है और रास्ते में पालम गांव का प्रवेश द्वार है। इस प्रकार हम देखते हैं कि 1280 ई. में गुलाम वंश के सुल्तान गयासुद्दीन बलबन के समय में हरियाणा एक देश के रूप में प्रसिद्ध था।

2. सोनीपत प्रस्तर फलक अभिलेख

इसी प्रकार सोनीपत में प्राप्त एक पत्थर की शिला पर लिखे खंडित लेख में कहा गया है कि दिल्ली (दिल्ली) हरियानक देश में है जिस पर पहले तोमरों का शासन था, फिर चौहानों का और आजकल इस पर शकों अर्थात् मुसलमानों का अधिकार था। इस पर सोमवार, फाल्गुन शुक्ल पंचमी, संवत् 1347 विक्रमी (1290 ई.) तिथि अंकित है।

3. शरबन कूप अभिलेख

  दिल्ली में वर्तमान कनॉट प्लेस के स्थान पर स्थित गांव शरबन में खैतल-पैतल द्वारा फाल्गुन शुक्ल पंचमी संवत् 1384 विक्रमी मंगलवार को बनवाए गए कुएं पर लगे अभिलेख में भी लिखा है-

देशोऽस्ति हरियाणख्यः पृथ्वयां स्वर्गसन्निभः। ढिल्लीकाख्यापुरी तत्र तोमैर्यस्ति निर्मिता (2) वेदवस्वाग्निचन्द्रांक संख्ये द्वे विक्रमार्कतः। पंचम्यां फाल्गुनसिते लिखितं भौमवासरे (15) इंद्रप्रस्थ प्रतिगणे ग्रामे सारवले (शर-वने) अत्र तु चिरं तिष्ठतु कूपोऽयं कारकश्च सबांधवः । संवत् 1384 फाल्गुन शु.दि.5 भौम दिने (16)

अर्थात् इस पृथ्वी पर स्वर्ग के समान प्रसिद्ध हरियानक देश है, जिसमें तोमरों द्वारा बसाई गई ढिल्ली नामक नगर स्थित है। अभिलेख के अंत में लिखा है - वेद = 4, वसु = 8, अग्नि = 3, चंद्र = 1, 4831, अंकानाम वामतो गति (संख्याओं की गति बायीं दिशा से होती है) के शास्त्रीय नियम के अनुसार इसका उलटा यह संख्या 1384 विक्रमी संवत्, फाल्गुन शुक्ल पक्ष, पंचमी तिथि भौमवार अंकित है। अथवा मंगलवार को इन्द्रप्रस्थ परिगण अर्थात् परगना या मण्डल या जिला या तहसील में स्थित सरवल या शरवन या शरबन नामक गाँव में यह कुआँ लम्बे समय तक बना रहे और इसी प्रकार इसके निर्माता के सम्बन्धी भी लम्बे समय तक जीवित रहें। लंबे समय तक। अंत में कुएं के निर्माण की अवधि पुनः संवत 1384 फाल्गुन शुद्धि 5 यानि फाल्गुन शुक्ल तिथि या तिथि पंचमी दिन गुरुवार लिखी गई है।

4. नारायण कूप अभिलेख

भाद्रपद कृष्ण तृतीया संवत् 1384 विक्रमी (1327 ई.) में दिल्ली के नाडायण गांव (आधुनिक नारायणा) में किसी श्रीधर द्वारा बनवाए गए कुएं पर अभिलेख में लिखा है- हरियानक संज्ञोऽस्ति देशः पुण्यतमो महान्, कृष्णः सपार्थो व्यचरद्यत्र पापौघशान्तये। अर्थात् हरियानक नामक एक पुण्यमय एवं महान देश है जहां भगवान श्रीकृष्ण ने अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए अर्जुन के साथ रथ पर यात्रा की थी। कहने का तात्पर्य यह है कि जिस भूमि पर हरि अर्थात् भगवान कृष्ण ने अर्जुन के साथ अपने वाहन पर सवार होकर पापों का नाश करने के लिए किया था, ऐसी हरियानक भूमि पुण्यमयी और महान है। महाभारत के समय श्रीकृष्ण और अर्जुन ने पापों का नाश करने के लिए कुरुक्षेत्र-उत्तरी हरियाणा, कुरुदेश-हस्तिनापुर, कुरुदजंागल (दिल्ली और दक्षिण हरियाणा) अथवा इंद्रप्रस्थ, मथुरा (ब्रज क्षेत्र) और विराटनगर (बैराट, राजस्थान) में रथ से यात्रा की थी। उसी क्षेत्र का नाम हरियानक रखा गया।

संदर्भ: हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, कश्मीर और निकटवर्ती पहाड़ी इलाकों के शिलालेख, प्रो. जगन्नाथ अग्रवाल, भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद, 35, फ़िरोज़शाह रोड, नई दिल्ली द्वारा। प्रतिभा प्रकाशन, 29/5, शक्ति नगर, दिल्ली-110007.प्रथम संस्करण 2001 द्वारा प्रकाशित । Inscriptions of Hariyana, Punjab, Himachal Pradesh, Kashmir and adjourning Hilly Tracts by Prof. Jagannath Agrawal, Indian Council of Historical Research, 35, Ferozshah Road, New Delhi. Published by Pratibha Prakashan, 29/5, Shakti Nagar, Delhi-110007.1st Edition 2001.

भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद, (ICHR) भारत सरकार, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित उपरोक्त अभिलेखों के अनुसार हरियाणा या हरियाणा शब्द की व्युत्पत्ति हरियानक शब्द से हुई है न कि आभिरायण से । आभिरायण शब्द भारत के किसी भी ऐतिहासिक दस्तावेज़, अभिलेख, शिलालेख या साहित्यिक ग्रन्थ में नहीं मिलता है। अत: अनुरोध है कि ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर हरियाणा के नामकरण के संबंध में संशोधन करने की कृपा करें।

वैदिक काल[संपादित करें]

सिंधु घाटी जितनी पुरानी कई सभ्यताओं के अवशेष सरस्वती नदी के किनारे पाए गए हैं। जिनमे नौरंगाबाद और मिट्टाथल भिवानी में, कुणाल फतेहाबाद मे, अग्रोहा और राखीगढी़ हिसार में, रूखी रोहतक में और बनवाली सिरसा जिले में प्रमुख है। प्राचीन वैदिक सभ्यता भी सरस्वती नदी के तट के आस पास फली फूली। ऋग्वेद के मंत्रों की रचना भी यहीं हुई है।

कुछ प्राचीन हिंदू ग्रंथों के अनुसार, कुरुक्षेत्र की सीमायें, मोटे तौर पर हरियाणा राज्य की सीमायें हैं। तैत्रीय अरण्यक ५.१.१ के अनुसार, कुरुक्षेत्र क्षेत्र, तुर्घना (श्रुघना / सुघ सरहिन्द, पंजाब में) के दक्षिण में, खांडव (दिल्ली और मेवात क्षेत्र) के उत्तर में, मारू (रेगिस्तान) के पूर्व में और पारिन के पश्चिम में है।[6] भारत के महाकाव्य महाभारतमे हरियाणा का उल्लेख बहुधान्यकऔर बहुधनके रूप में किया गया है। महाभारत में वर्णित हरियाणा के कुछ स्थान आज के आधुनिक शहरों जैसे, प्रिथुदक (पेहोवा), तिलप्रस्थ (तिल्पुट), पानप्रस्थ (पानीपत) और सोनप्रस्थ (सोनीपत) में विकसित हो गये हैं। गुड़गाँव का अर्थ गुरु के ग्राम यानि गुरु द्रोणाचार्य के गाँव से है। कौरवों और पांडवों के बीच हुआ महाभारत का प्रसिद्ध युद्ध कुरुक्षेत्र नगर के निकट हुआ था। कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश यहीं पर दिया था। इसके बाद अठारह दिन तक हस्तिनापुर के सिंहासन का अधिकारी तय करने के लिये कुरुक्षेत्र के मैदानी इलाकों में पूरे भारत से आयी सेनाओं के मध्य भीषण संघर्ष हुआ। जनश्रुति के अनुसार महाराजा अग्रसेन् ने अग्रोहा जो आज के हिसार के निकट स्थित है, में एक व्यापारियों के समृद्ध नगर की स्थापना की थी। किवंदती है कि जो भी व्यक्ति यहाँ बसना चाहता था उसे एक ईंट और रुपया शहर के सभी एक लाख नागरिकों द्वारा दिया जाता था, इससे उस व्यक्ति के पास घर बनाने के लिये पर्याप्त ईंटें और व्यापार शुरू करने के लिए पर्याप्त धन होता था।

मध्यकाल[संपादित करें]

हूण के शासन के पश्चात हर्षवर्धन द्वारा ७वीं शताब्दी में स्थापित राज्य की राजधानी कुरुक्षेत्र के पास थानेसर में बसायी। उसकी मौत के बाद प्रतिहार ने वहां शासन करना आरंभ कर दिया और अपनी राजधानी कन्नौज बना ली। यह स्थान दिल्ली के शासक के लिये महत्वपूर्ण था। पृथ्वीराज चौहान ने १२वीं शताब्दी में अपना किला हाँसी और तरावड़ी (पुराना नाम तराईन) में स्थापित कर लिया।मुहम्मद गौरी ने दुसरी तराईन युध में इस पर कब्जा कर लिया। उसके पश्चात दिल्ली सल्तनत ने कई सदी तक यहाँ शासन किया।

विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा दिल्ली पर अधिकार के लिए अधिकतर युद्ध हरियाणा की धरती पर ही लड़े गए। तरावड़ी के युद्ध के अतिरिक्त पानीपत के मैदान में भी तीन युद्ध एसे लड़े गए जिन्होंने भारत के इतिहास की दिशा ही बदल दी।

ब्रिटिश राज[संपादित करें]

ब्रिटिश राज से मुक्ति पाने के आन्दोलनों में हरियाणा वासियों ने भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। रेवाड़ी के राजा राव तुला राम का नाम १८५७ के संग्राम में योगदान दिया।

हरियाणा का गठन[संपादित करें]

हरियाणा प्रान्त का गठन १ नम्वबर १९६६ को पंजाब से अलग हो कर हुआ।

18 सितम्बर 1966 को सीमा आयोग की सिफारिशों के अनुसार भारत सरकार ने 'पंजाब पुनर्गठन विधेयक, 1966 (न. -31 ) पारित किया।

18 सितम्बर 1966 को भारत के राष्ट्रपति से हस्ताक्षरित होकर यह गजट ऑफ़ इंडिया भाग -2  सै  1  न.  31  दिनांक 18 सितम्बर  1966 को प्रकाशित हुआ।

'पंजाब पुनर्गठन विधेयक, 1966' के भाग 2, अनुच्छेद -3 में हरियाणा की सीमाओं आदि की व्याख्या की गयी थी। यह व्याख्या कुछ इस प्रकार थी -

1.  निश्चित दिन से एक नए राज्य का निर्माण होगा जो कि 'हरियाणा' कहलायेगा , जिसमे पंजाब राज्य के निम्न क्षेत्र शामिल होंगे -

-हिसार, रोहतक, गुरुग्राम (गुडगाँव), करनाल, महेंद्रगढ़ के जिले

-संगरूर जिले की नरवाना और जींद तहसीलें

- अम्बाला जिले की अम्बाला, जगाधरी और नारायणगढ़ तहसीलें

- अम्बाला जिले की खरड़ तहसील की पिंजौर कानूगो सरकल

- अम्बाला ज़िले की खरड़ तहसील के मनीमाजरा के कानूगो सरकल का क्षेत्र जो प्रथम परिच्छेद में अनुसूचित है।

इसके बाद ये क्षेत्र पंजाब राज्य के अंग नहीं रहेंगें।

2.  उप -अनुच्छेद (आ) में वर्णित क्षेत्र से हरियाणा राज्य के अंतरगत जींद नाम का अहलदा जिला बनेगा।

3.  उप - अनुच्छेद (1) की धारा (आ), (इ), और (ई ) में वर्णित क्षेत्र हरियाणा राज्य  के अंतरगत अम्बाला नाम का अहलदा  जिला बनेगा।

(अ) उप - अनुच्छेद (1) की धारा (इ) और (ई) में वर्णित क्षेत्र नारायणगढ़ तहसील के भाग होंगे।

(आ) उप - अनुच्छेद (1) की धारा (3) में वर्णित क्षेत्र नारायणगढ़ तहसील के अंतर्गत पिंजौर के कानूगो सरकल का भाग होगा।

विधेयक के भाग - 3 में विधानपालिकाओं के विषय में बताया गया था।

विधेयक के भाग - 3  के प्रमुख अनुच्छेद -

A. अनुच्छेद 7  में राज्यसभा में मौजूदा 11 सदस्यों बाँट और अनुच्छेद 8 में उनके चुनाव आदि का तरीका सुझाया गया था।

B. अनुच्छेद 9  में लोकसभा के सदस्यों की स्थिति के विषय में बतलाया गया था।

C.  अनुच्छेद 10 में राज्य के मौजूदा विधानसभा सदस्यों को बांटा गया था जिसमें से 54 सदस्य जो हरियाणा क्षेत्र से चुनकर गए थे, वे वे हरियाणा के हिस्से में रखे गए।

     नई सभा का नाम "हरियाणा विधानसभा होगा,ऐसा उल्लेख किया गया था।

D. अनुच्छेद 14 (2) में हरियाणा के सदस्यों द्वारा अपनी इस विधानसभा का अपने से, सविंधान में बताये गए तरीके से, एक अध्यक्ष चुनने की व्यवस्था की गयी थी।

E. यह भी कहा गया था की मौजूदा विधानसभा के बाद यहाँ 'अनुच्छेद - 16' के अनुसार सदस्यों की संख्या 81 होगी।

विधेयक के भाग - 4 में उच्च न्यायालय के विषय में व्याख्या थी इसमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण अनुच्छेद - 21 था जिसमें कहा गया था कि 'पंजाब और हरियाणा की साझी उच्च न्यायालय होगी।'

'पंजाब पुनर्गठन विधेयक, 1966' के अनुसार 1 नवंबर, 1966 को 'हरियाणा' राज्य के रूप में एक नये राज्य का उदय हुआ।

तो दोस्तों इस प्रकार से पंजाब राज्य दो हिस्सों में बंट गया और एक नये राज्य जिसका नाम पड़ा 'हरियाणा' ने जन्म लिया।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "49 साल का हुआ हरियाणा जानिए कैसे हुआ था इसका गठन". Dainik Bhaskar. 2014-10-31. अभिगमन तिथि 2021-08-02.
  2. "राज्य/संघ राज्य क्षेत्र - हरियाणा - भारत के बारे में जानें: भारत का राष्ट्रीय पोर्टल". knowindia.gov.in. मूल से 2 अगस्त 2021 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2021-08-02. |archiveurl= और |archive-url= के एक से अधिक मान दिए गए हैं (मदद); |archivedate= और |archive-date= के एक से अधिक मान दिए गए हैं (मदद)
  3. Lal, Muni (1974). Haryana: On High Road to Prosperity. Vikas Publishing House. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-7069-0290-7.
  4. Punia, Bijender K. (1994). Tourism Management: Problems and Prospects (अंग्रेज़ी में). APH Publishing. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-7024-643-5.
  5. Chopra, Pran Nath (1982). Religions and Communities of India (अंग्रेज़ी में). Vision Books. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-391-02748-0.
  6. [1] आर्यों के भारत प्रवासन संबंधी वैदिक प्रमाण पर विशाल अग्रवाल का पत्र

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]