सदस्य:Pareshnand/प्रयोगपृष्ठ/4

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से

पौरनिक औरत की महतव[संपादित करें]

हमें हमेशा से लगा था कि सती प्रणाली बस एक औरत का उसके पति के मरने के बाद उसका इस जनम में त्याग है. उस ज़माने के लोग या आज भी शायद कई गावो में सती प्रणाली जहाँ चलती है वहां के लोगों ने उन देवी जैसी स्त्रियों कि महत्व जाने बगैर उनका त्याग करना चाहा, आज सती भगवन से भी अधिक मानीजाती है, वे आदरवादी स्त्रीयों का हर सपना बस एक सपना ही रहजाता था, पर उन्हें इस प्रकार याद और पूजा जाता है.

आधुनिक सती का महत्व[संपादित करें]

भारत में भारतीय संस्कृति कि मान्यता सर्वोत्तम मानी गयी है, यह सोचकर कि वे अपने पूर्वजों कि परंपरा ना तोड़ें. भारत में कई ऐसी सती थीं जिनका नाम इतिहास में आज भी लिया जाता है. इस संधर्ब का उत्कटता इतिहास कि दो बहनों कि कहानी हैं. यह कहानी उत्तरप्रदेश , दोरार में स्थित थोरे गांव कि है. इन दो बहनों का नाम था रुनिया-झुनिया जो सगी बेहेन थीं परन्तु उन कि शादी एक ही घर में दो भाइयों के साथ हुई और वे देवरानी-जेठानी बनगयी. वे दोनों भी सच्ची पतिव्रता होने के कारण उनके पति कि मृत्यु पर उन्हें अपना देह त्यागन पड़ा और अपने परंपरा को पालन कर वे आज पूजनीय है. कई समाज आज कि तारिक में उन्हें कुछ भी शुभ काम शुरू करने से पहले रुनिया-झुनिया को पूजते है, जिससे उनको याद किया जाता है और माना जाता है कि वे उस अवधि कि सबसे अंतिम सती थीं. थोरे गांव, दोरार, उत्तरप्रदेश में दूर खेतों में उनक एक मंदिर निर्माण किया गया है जहाँ एक पत्थर पर उनके त्याग का निर्माण काटन किया गया है या फिर गांव के लोग कहते है कि यहाँ यह पत्थर भूमि से उत्पन हुआ था. बड़ी ही मुश्किलों से इस मंदिर को खोजा गया था. रुनिया-झुनिया को कुलदेवी भी कहा जाता है अर्थत घर कि देवी. कई लोग आज वे मंदिर कि खोज में आते है और अपने पूर्वजों को याद कर उन्हें पूज ते हैं. बहुत से पंडित और ज्ञानी से सुना है इस गांव दोरार के बारे में कहतें है कि वहां के लोग कुलदेवी को अधिक मानते हैं और उनकी याद में वे अपने पूर्वजों को भी याद याद करते है. दोरार के बड़े बड़े खेतों में सिर्फ यह मंदिर और एक पेड़ जो इस मंदिर को चाय देता है. गांव के लोगों ने यह भी कहा था कि गर्मियों में गांव में पानी कि बहुत कमी होजाती थी तो गांव में एक बोरवेल खोदने को कहा जिससे आज गांव में कभी पानी कि कमी नहीं होती, माना जाता है कि यह भी कुलदेवी का एक आशिर्वाद है और इससे मंदिर के आस पास कि जगह और वहां के खेतों में हमेशा हरियाली रह

दोरर गाव मे स्तिथ सती मन्दिर[संपादित करें]

यह गांव आगरा और उत्तरप्रदेश के रास्ते पर पड़ता है, खुर्जा से थोड़ी ही दूरी पर. सति प्रणाली एक ऐसी अजीब अनुष्ठान रह गयी है जिससे औरत को तो अपना त्याग करना ही पड़ता है परन्तु उससे वे सनातन हो जाती है, ऐसे इस देश में कई ऐसी सति है जिनको इतिहास से पूजाजाता है और उनके त्याग को सम्मान करते हैं. दोरार के कुलदेवी के मंदिर में जो शिला है उसमे हात, हातों में चूड़ियां और पैर साफ़ नज़र आते है. यह प्राचीन मंदिर में स्तित यह शिला बहुत पुराना है. आज के अवधि के लोगों को एक औरत कि शक्ति का ज्ञात होगया है, यह सति के उस त्याग का भी एक कारण है जिससे लोगों को औरत का सम्मान और आदर करते हैं.