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गलाघोंटू

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गलघोंटू (Hemorrhagic Septicemia) रोग जीवाणु जनित रोग है। गलघोंटू रोग मुख्य रूप से गाय तथा भैंस को प्रभावित करता है। इस रोग को गलघोंटू के अतिरिक्त 'घूरखा', 'घोंटुआ', 'अषढ़िया', 'डकहा' आदि नामों से भी जाना जाता है। इस रोग से पशु अकाल मृत्यु का शिकार हो जाता है। यह रोग मानसून के समय व्यापक रूप से फैलता है। यह Pasteurella multocida नामक जीवाणु (बैक्टीरिया) के कारण होता है। गलघोंटू रोग से पीड़ित जानवर 1-2 दिन के अंदर मृत्यु हो जाती है। गलघोंटू रोग से बचाव के लिए हर वर्ष मानसून से पहले टीकाकरण किया जाता है।[1][2]

रोग के लक्षण[संपादित करें]

इस रोग में पशु को अचानक तेज बुखार हो जाता है एवं पशु कांपने लगता है। रोगी पशु सुस्त हो जाता है तथा खाना-पीना कम कर देता है। पशु की आंखें लाल हो जाती हैं। पीड़ित पशु के मुंह से ढेर सारा लार निकलता है। गर्दन में सूजन के कारण सांस लेने के दौरान घर्र-घर्र की आवाज आती है और अंतत: 12-24 घंटे में मौत हो जाती है। पशु के पेट में दर्द होता है, वह जमीन पर गिर जाता है और उसके मुंह से लार भी गिरने लगती है। लक्षण के साथ ही इलाज न शुरू होने पर एक-दो दिन में पशु मर जाता है। इसमें मौत की दर 80 फीसदी से अधिक है। शुरुआत तेज बुखार (105-107 डिग्री) से होती है। रोग से मरे पशु को गढ्डे में दफनाएं।[3]

रोकथाम[संपादित करें]

  • प्रति वर्ष वर्षा ऋतु से पूर्व इस रोग का टीका पशुओं को अवश्य लगवा लेना चाहिए। बीमार पशु को अन्य स्वस्थ पशुओं से अलग रखना चाहिए।
  • जिस स्थान पर पशु मरा हो उसे कीटाणुनाशक दवाइयों, फिनाइल या चूने के घोल से धोना चाहिये।
  • पशु आवास को स्वच्छ रखें तथा रोग की संभावना होने पर तुरन्त पशु चिकित्सक से सम्पर्क कर सलाह लेवें।[1]

इन्हे भी देखें[संपादित करें]

एंथ्रेक्स रोग

माल्टा ज्वर

थनेला रोग

संदर्भ सूची[संपादित करें]

  1. "गलघोंटू रोग" (PDF). IVRI. अभिगमन तिथि 2024-06-09.
  2. "गलघोंटू रोग (Heamorrhagic Septicemia): लक्षण, कारण और उपचार". Rajasthan Express (अंग्रेज़ी में). 2024-06-04. अभिगमन तिथि 2024-06-09.
  3. "Henorahagic Septicemia". buffalopedianew. अभिगमन तिथि 2024-06-09.

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]