राधा

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श्री राधा
प्रेम, भक्ति और करुणा की देवी
Member of पंच प्रकृति और देवी लक्ष्मी की अवतार

राधा-कृष्ण
अन्य नाम कृष्णप्रिया, वृषभानुलली, राधिका, किशोरी, माधवी, केशवी, श्रीजी, राधारानी
संबंध देवी महालक्ष्मी की अवतार, श्री कृष्ण की ह्लादिनी शक्ति
निवासस्थान गोलोक, वृन्दावन, बरसाना, वैकुंठ
मंत्र ॐ वृषभानुजायै विद्महे कृष्णप्रियायै धीमहि तन्नो राधा प्रचोदयात्॥
अस्त्र कमल
जीवनसाथी श्री कृष्ण
माता-पिता वृषभानु (पिता), कीर्ति देवी (माँ)
सवारी कमल और सिंहासन
शास्त्र पद्म पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण, स्कन्द पुराण, मत्स्य पुराण, गीत गोविंद, गर्ग संहिता, शिव पुराण, लिंगपुराण, वाराह पुराण, नारदपुराण[1]
त्यौहार राधाष्टमी, जन्माष्टमी, होली, गोपाष्टमी, कार्तिक पूर्णिमा, शरद पूर्णिमा, फुलेरा दूज (राधा कृष्ण विवाह दिवस), लट्ठमार होली

राधा अथवा राधिका हिन्दू धर्म की प्रमुख देवी हैं।[2][3] वह कृष्ण की प्रेमिका और संगिनी के रूप में चित्रित की जाती हैं। इस प्रकार उन्हें राधा कृष्ण के रूप में पूजा जाता हैं। उनके ऊपर कई काव्य रचना की गई है और रास लीला उन्हीं की शक्ति और रूप का वर्णन करती है । वैष्णव सम्प्रदाय में राधा को भगवान कृष्ण की शक्ति स्वरूपा भी माना जाता है , जो स्त्री रूप मे प्रभु के लीलाओं मे प्रकट होती हैं | "गोपाल सहस्रनाम" के 19वें श्लोक मे वर्णित है कि महादेव जी द्वारा जगत देवी पार्वती जी को बताया गया है कि एक ही शक्ति के दो रूप है राधा और माधव (श्रीकृष्ण) तथा ये रहस्य स्वयं श्री कृष्ण द्वारा राधा रानी को बताया गया है। अर्थात राधा ही कृष्ण हैं और कृष्ण ही राधा हैं।[4][5]

अधिकतर लोग जो कृष्ण की राधा के बारे मे बाते करते है, राधा कृष्ण के प्रेम की चर्चा किया करते है राधा कृष्ण को मन धन से प्रेमी रूप मे पूजन करती थी और श्री कृष्ण भी अपनी बासुरी को और राधा को अधिकाधिक प्रेम करते थे जिनके प्रेम जोडी आज के नवयुगलों को उत्साहित करते है और राधा और कृष्ण के प्रेम गाथा से प्रेम मे समर्पित होने की प्रेरणा प्रदान करते है।[6]

धर्मग्रंथों की दृष्टि से[संपादित करें]

ब्रह्मवैवर्त पुराण के ब्रह्म खण्ड में सर्व प्रथम ‘राधा’ शब्द का उल्लेख श्री कृष्ण जी द्वारा सृष्टि रचना के समय आता है। वहाँ स्पष्ट कहा गया है कि श्री कृष्ण जी के वामपार्रश्व से एक कन्या का प्रकाटय हुआ, जिन्होंने प्रकट होते ही दौड़ कर एक फूल ला कर भगवान श्री कृष्ण जी के चरणों में रख कर अर्घ्य प्रदान किया, वे ‘राधा’ हैं। वे कोमल अंग वाली, मनोहारिणी और सुन्दरियों में भी सुन्दरी थी। वे शरदपूणिमा के कोटी चन्द्रमाओं की शोभा भी छीन रही थी। उनकी नासिका से पक्षिराज गरूड़ की नुकीली चोंच भी हार मान रही थी। वे वनमाला धारण किए हुए थी। उन्हीं के रोमकूपों से लक्षकोटि गोपकन्याओं का आविर्भाव हुआ । वे सदा ही श्री कृष्ण जी के गोलोक धाम में उनके संग विराजमान रहतीं हैं।

ब्रह्मवैवर्त पुराण के प्रकृति खण्ड में ये भी बताया गया है कि श्री राधा जी की पूजा स्वयं श्री कृष्ण द्वारा कई बार की गई है। इतना ही नहीं श्री राधा जी की अराधना ब्रह्मादि देवता तथा ऋषि समुदाय भी समय - समय पर बहुत आनन्द से करता आया है। आगे श्री कृष्ण स्वयं कहते हैं कि मेरी स्वरूपाशक्ति ‘राधा’ ही हैं। श्री राधा जी श्री कृष्ण जी के वक्षस्थल पर सदा विराजमान रहतीं हैं।

ब्रह्मवैवर्त पुराण के प्रकृति खण्ड में बताया गया है कि मॉं पार्वती जी के पूछने पर भगवान शिव स्वयं बताते हैं कि श्री राधा श्रीकृष्ण जी की आराधना करतीं हैं और श्रीकृष्ण जी श्रीराधा जी की आराधना करते हैं। वे ये भी बताते हैं कि ‘रा’ का अर्थ है ‘पाना’ और ‘धा’ का अर्थ है ‘मोक्ष’। जो राधा नाम का जप करते हैं वे मोक्ष के अधिकारी हो जाते हैं। राधा श्री कृष्ण जी की प्राणाधिका हैं। श्री कृष्ण के कहे अनुसार राधा उनके पाँच प्राणो की अधिष्ठात्री देवी हैं। श्रीराधा जी श्री कृष्ण की केवल प्रेमिका ही नहीं है। वह श्रीकृष्ण के प्राण हैं, अल्हादिनी शक्ति हैं, सबके लिए मोक्षदायिनी हैं और मनुष्य क्या देवी-देवताओं के लिए भी पूजनीय हैं। श्रीकृष्ण और राधा अलग हैं ही नहीं, ऐसा संकेत सभी धर्मग्रंथों में दिया गया है। केवल लीलाओं को करने के लिए श्रीकृष्ण और राधा को प्रेम की मूर्ति बनना पड़ा। ऐसे प्रेम की लीला करनी पड़ी जिसे आजतक कोई समझ नहीं पाया है।

श्रीमद्देवी भागवत महापुराण के नवम स्कन्ध के दूसरे भाग के परब्रह्म श्रीकृष्ण और श्रीराधा से प्रकट चिन्मय देवी और देवताओं के चरित्र शीर्षक के अन्तर्गत श्री राधा जन्म का एवं उनके रूप का बहुत सुन्दर वर्णन है। राधा जी के ललाट के ऊपरी भाग में कस्तूरी कीं बिंदी है, नीचे चन्दन की छोटी-छोटी बिंदिया हैं, केश घुंघराले हैं, वे अपनी चाल से राजहंस एवं गजराज के गर्व को नष्ट करती हैं। यही पर एक कथा है कि भुक्ति और मुक्ति दोनों को देने वाली गंगा श्रीराधा और श्रीकृष्ण के अंग से प्रकट हुई। ( ९।१२।१६-४३ )[7]

स्कन्ध पुराण के प्रभास खण्ड - द्वारिका - महात्म्य में वैष्णव खण्ड के वासुदेव महात्म्य के 28वें अध्याय में उद्धव जी और गोपियों के वार्तालाप में भी श्री राधा जी का संवाद बताया गया है। भगवान् विष्णु ने ब्रह्मदेव को वृषभानुजा राधाजी के अवतार की भविष्यवाणी भी बतायी थी। गोपस्य वृषभानोस्तु सुता राधा भविष्यति॥ वृन्दावने तया साकं विहरिष्यामि पद्मज (स्कन्दपुराण, वैष्णवखण्ड, वासुदेवमाहात्म्य, अध्याय - १८ )[8]

ब्रह्माण्डपुराण ( मध्यभाग, अध्याय ४३, श्लोक ०८ ) में भगवान् परशुरामजी कहते हैं - “श्रीराधकिाकान्त श्रीकृष्ण ! मैं तन -मन- वचनसे आपका ही हूँ और आप मेरी एकमात्र गत हैं। मैं शरण में हूँ आपके।”

या राधा जगदुद्भवस्थतिलियेष्वाराध्यते वा जनैः शब्दं बोधयतीशवक्त्रवगिलत्प्रेमामृतास्वादनम् । राशी रसकिश्वरी रमणदृन्नष्ठा नजानन्दनी नेत्री सा परपितु मामवनतं राधेत या कीर्त्यते ।।

पद्म पुराण के पाताल खण्ड में बताया गया है कि महादेव जी पार्वती जी के पूछने पर श्री राधा- कृष्ण जी का बहुत विस्तार से उल्लेख करते हैं, उन की महिमा बताते हैं - कि श्री राधा जी के साथ श्री कृष्ण सुवर्णमय सिंहासन पर विराजमान रहते हैं। राधा जी वृंदावन की अधीश्वरी देवी हैं और श्री कृष्ण जी की प्रियतमा हैं, वे किशोर अवस्था ( पंद्रह वर्ष की उम्र ) वाली हैं। पाताल खण्ड में ही जब श्री कृष्ण रूद्र देव को गुप्त युगल मंत्र के बारे में बताते हैं तो बहुत विस्तार से श्री राधा जी का ज़िक्र आता है। स्वयं श्री कृष्ण कहते हैं कि -“जो अकेली मेरी इस प्रियतमा की ही अनन्यभाव से उपासना करता है, वह मुझे अवश्य प्राप्त होता है। इसलिए सर्वथा प्रयत्न करके मेरी प्रिया की शरण ग्रहण करनी चाहिये। ये बहुत रहस्य की बात है जो मैं रूद्र देव आप को बता रहा हूँ ।”

श्रीविष्णुपुराण के पंचम अंश ( अ॰ १३.३५ ) में भी श्री राधा एवं गोपियों संग रासलीला का वर्णन आता है। छुपे शब्दों में एक सुन्दरी गोपांगना सर्वांग पुलकित हो कहती भी है - “और देखो, उनके (श्री कृष्ण) संग कोई पुण्यवती मदमाती युवती भी आ गई है, उनके ये घने छोटे-छोटे और पतले चरण चिन्ह दिखाई दे रहे हैं।

कापि तेन समायाता कृतपुण्या मदालसा । पदानि तस्याश्चैतानि घनान्यल्पतनूनि च ॥ ३३ “यहाँ बैठ कर उन्होंने किसी बड़भागिनी का पुष्पों से शृंगार किया है।” अत्रोपविश्य वै तेन काचित्पुष्पैरलंकृता ॥ ३५ [9]

श्रीगर्ग-संहिता के प्रथम गोलोक खण्ड के अन्तर्गत नारद संवाद में भी श्री राधा जी का वर्णन बहुत विस्तार से किया गया है। जब पृथ्वी गौ का रूप धारण करके ब्रह्मा, विष्णु और अन्य देवताओं के संग ब्रह्मांड शिखर पर विराजमान गोलोकधाम में आई तो वहाँ सबने देखा कि हज़ार दलवाले विशाल कमल पर स्थित सिंहासन पर भगवान श्री कृष्ण के संग श्री राधा जी विराजमान हैं।

ज्योतिषां मण्डलं पद्मं सहस्रदलशोभितम् ॥ तदूर्ध्वं षोडशदलं ततोऽष्टदलपङ्कजम् । तस्योपरि स्फुरद्दीर्घं सोपानत्रयमण्डितम् ॥सिंहासनं परं दिव्यं कौस्तुभैः खचितं शुभम् । ददृशुर्देवतास्तत्र श्रीकृष्णं राधया युतम् ॥ गर्गस॰, ११़.५०,५१॥ आगे श्री कृष्ण बताते हैं - वृषभानु जी के यहाँ श्री राधा जी का प्राकट्य होगा।

इसके अलावा गर्ग संहिता में कई बार श्री राधा जी का ज़िक्र आता है। कई संदर्भों में भगवान शिव श्री कृष्ण को राधिकावल्लभ कह कर पुकारते हैं। राधिकासहस्रनाम और श्रीकृष्णसहस्रनाम में श्रीराधा को शक्ति और मन्मथ कीलक बताया गया है।

ॐअस्य श्रीकृष्णसहस्त्रनामस्तोत्रमन्त्रस्य छन्दः श्रीकृष्णचन्द्रो नारायण ऋषिर्भुजङ्गप्रयातं वासुदेवो बीजम् श्रीराधाशक्तिः मन्मथः देवता कीलकम् श्रीपूर्णब्रह्म कृष्णचन्द्र भक्तिजन्यफल-प्राप्तये जपे विनियोगः।। [10]

गोपाल सहस्रनाम के 19वें श्लोक में महादेवजी देवी पार्वती को बताते हैं कि राधा और माधव (श्रीकृष्ण) एक ही शक्ति के दो रूप है और ये रहस्य स्वयं श्री कृष्ण ने राधा रानी को बताया है। अर्थात राधा ही कृष्ण हैं और कृष्ण ही राधा हैं।[4][5] राधा श्री कृष्ण के मन का प्रतिरूप ही हैं। [11]

गर्ग संहिता में बताया गया है कि ब्रह्मा जी ने सभी देवताओं के संग श्रीराधाकृष्ण दोनों को अग्नि की सात परिक्रमा दिलाई, नमस्कार कराकर ब्रह्मा जी ने जो सात मन्त्र हैं, उन्हें पढ़ाया। फिर हरि के ह्रदय पर राधा का हाथ रखकर श्रीकृष्ण का हाथ राधा जी की पीठ पर धराकर विवाह के पद्धत्युक्त मन्त्र हैं, उन्हें पढ़ाया।

ततोहरेर्वक्षसिराधिकायाः करंचसंस्थाप्यहरेः करंपुनः ॥ श्रीराधिकायाः किलपृष्ठदेशकेसंस्थाप्यमंत्रांश्चविधिः प्रपाठयन् ॥३२॥ प्र॰गोलोक खण्ड पृ॰॥४० भा॰टी॰गो॰सं॰१अ॰१६.३२॥ [12]

ये कहना पूर्ण सत्य नहीं है कि राधा केवल श्रीकृष्ण की प्रेमिका थीं। वे पूर्णतः श्रीकृष्ण तुल्य शक्ति हैं। उन्हीं का समरूप है, कृष्ण और राधा को हिन्दू धर्म ग्रन्थों में अलग नहीं कहा गया।

श्री मद्भागवत महापुराण के दशम स्कन्ध में भी श्री शुकदेव राजा परिक्षित के पूछने पर कहते हैं - “राजन! ब्रह्मा जी के द्वारा स्तुति करने पर भगवान श्री कृष्ण वचन देते हैं कि मैं शीघ्र ही अपनी प्रिय माया श्री राधा जी के संग पृथ्वी का भार हल्का करने के लिए अवतार लूँगा।” श्री मद् भागवत महापुराण के महात्म्य में बहुत विस्तार से कहा गया है कि भगवान श्रीकृष्ण की आत्मा- ‘राधा जी’ हैं। श्रीकृष्ण को पाना है तो ‘राधा’ को भजो। यही कारण है कि महर्षि शाण्डिल्य के बताने पर मथुरा नरेश वज्रनाभ ने भगवान श्रीकृष्ण और श्रीराधा द्वारा की गई सभी लीला स्थलों की खोज की और उन स्थानों का नामकरण किया। वृंदावन के कण-कण में श्री राधा-कृष्ण का वास है। ( संदर्भ श्री मद् भागवत महापुराण, शा॰मु॰ ब्रजभूमि का रहस्य बताना शीर्षक के अन्तर्गत )

वराहपुराण के अनुसार ( अध्याय - १६४ ) श्रीकृष्ण द्वारा अरिष्टासुर को मारने के बाद राधाजी ने राधाकुण्ड का निर्माण कराया।

स्वनाम्ना विदितं कुण्डं कृतं तीर्थमदूरतः । राधाकुण्डमिति ख्यातं सर्वपापहरं शुभम् ॥

माहेश्वरतन्त्र में भगवान शिव कह रहे हैं- “श्रुतियाँ ने भगवान् श्रीकृष्ण को राधाजी के साथ देखा तो हैरान रह गईं। गोपीयॉं दीपमालिका सजाकर राधामाधव के मुखकमल की आरती उतार रही थी।”

राधाकृष्णप्रतिमुखगता कुर्वती दीपकृत्यम्॥ ( अध्याय ५०, श्लोक - ४५ )

वेद और पुराणों में राधा[संपादित करें]

‘राधा’ शब्द के बिना ये सम्पूर्ण सृष्टि शून्य है। ऐसा इसलिए क्योंकि जिस प्रकार से श्री कृष्ण के बिना ये पूर्ण ब्रह्माण्ड ही नहीं हो सकता उसी प्रकार से राधा के बिना श्री कृष्ण भी पूर्ण नहीं है। हमारे बहुत से ग्रंथों में एवं पुराणों में ‘राधा’ जी का बहुत विस्तार से वर्णन आता है। बहुत से लोग कहते हैं कि ‘राधा’ नाम का ज़िक्र हमारे वेदों में नहीं है। इसको जानने से पहले ये समझना होगा कि वेद कौन-कौन से हैं।

पुराण कुछ बाद में लिखे गये, ये सत्य है। परन्तु ये भी सत्य है कि सृष्टि के रचनाकर्ता ब्रह्माजी ने सर्वप्रथम जिस प्राचीनतम धर्मग्रंथ की रचना की, उसे पुराण के नाम से जाना जाता है। इसीलिए पुराण शब्द का ज़िक्र दुनियाँ के सबसे पुरातन धर्म ग्रंथ अथर्ववेद में भी आता है। अथर्ववेद में कहा गया है -

ऋचः सामानिच्छन्दांसि पुराणं यजुषा सह । उच्छिष्टाज्जज्ञिरे सर्वे दिवि देवा दिविश्रितः ॥ ११.७.२४) [13]

अर्थात् पुराणों का आविर्भाव भी यजु, ऋक्, साम, आकाश, स्वर्ग और छन्द के साथ ही हुआ था। यानि वेदों के संग ही पुराण आये।

शतपथ ब्राह्मण (१४.३.३.१३) में तो पुराणवाग्ङमय को वेद ही कहा गया है।

छान्दोग्य उपनिषद् ( इतिहास पुराणं पंचम वेदानांवेदम् ७.१.२ )[14] ने भी पुराण को पाँचवा वेद कहा है।

महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित संस्कृत भाषा में रचे गए, पद्म पुराण के सृष्टि खण्ड में कहा गया है ( 1.2.52 )-

इतिहासपुराणाभ्यां वेदं समुपबृंहयेत्। बिभेत्यल्पश्रुताद्वेदो मामयं प्रहरिष्यति।।

तात्पर्य ये है कि पुराणों का अध्ययन किये बिना वेदार्थ का ठीक - ठीक ज्ञान नहीं होता। इसलिए पुराणों को नकारा या गौण नहीं माना जा सकता। अठारह पुराणों की गणना के क्रम में ‘पद्म पुराण’ को द्वितीय स्थान प्राप्त है। वेदों का विस्तार ही पुराण हैं। इसलिए अगर कुछ पुराणों में ही श्री ‘राधा’ जी का ज़िक्र आता है तो इसे ग्रंथों/वेदो में ज़िक्र ही मानना चाहिए। ‘राधा’ नाम का ज़िक्र किसी ग्रंथ में नहीं है, ये कहना ठीक नहीं है ।

ऋग्वेद, सामवेद और अथर्ववेद भी एक स्वर से राधातत्व की बात करते हैं - स्तोत्रं राधानां पते गवाहो वीर यस्य ते । वभूतिरिस्तु सूनृता ।।

संदर्भः[संपादित करें]

अथर्ववेद, शतपथ ब्राह्मण, छान्दोग्य उपनिषद्, पद्म पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीमद्देवी भागवत महापुराण, स्कन्ध पुराण, ब्रह्माण्डपुराण, श्रीविष्णुपुराण, श्रीगर्ग-संहिता, राधिकासहस्रनाम, श्रीकृष्णसहस्रनाम, गोपाल सहस्रनाम, वराहपुराण, माहेश्वरतन्त्र, ऋग्वेद और सामवेद

मान्यता[संपादित करें]

पेंटिंग में चित्रित कृष्ण एवं राधा

हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार उत्तर प्रदेश राज्य के मथुरा जिले के गोकुल-महावन कस्बे के निकट रावल गांव में मुखिया वृषभानु गोप एवं कीर्ति की पुत्री के रूप में राधा रानी का प्राकट्य जन्म हुआ। राधा रानी के जन्म के बारे में यह कहा जाता है कि राधा जी माता के पेट से पैदा नहीं हुई थी उनकी माता ने अपने गर्भ को धारण कर रखा था उन्होंने योग माया कि प्रेरणा से वायु को ही जन्म दिया। परन्तु वहां स्वेच्छा से श्री राधा प्रकट हो गई। श्री राधा रानी जी निकुंज प्रदेश के एक सुन्दर मंदिर में अवतीर्ण हुई उस समय भाद्र पद का महीना था, शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि, अनुराधा नक्षत्र, मध्यान्ह काल और सोमवार का दिन था। इनके जन्म के साथ ही इस दिन को राधा अष्टमी के रूप में मनाया जाने लगा।

राधा रानी जी श्रीकृष्ण जी से ग्यारह माह बड़ी थीं। लेकिन श्री वृषभानु जी और कीर्ति देवी को ये बात जल्द ही पता चल गई कि श्री किशोरी जी ने अपने प्राकट्य से ही अपनी आंखे नहीं खोली है। इस बात से उनके माता-पिता बहुत दुःखी रहते थे। कुछ समय पश्चात जब नन्द महाराज कि पत्नी यशोदा जी गोकुल से अपने लाडले के साथ वृषभानु जी के घर आती है तब वृषभानु जी और कीर्ति जी उनका स्वागत करती है यशोदा जी कान्हा को गोद में लिए राधा जी के पास आती है। जैसे ही श्री कृष्ण और राधा आमने-सामने आते है। तब राधा जी पहली बार अपनी आंखे खोलती है। अपने प्राण प्रिय श्री कृष्ण को देखने के लिए, वे एक टक कृष्ण जी को देखती है, अपनी प्राण प्रिय को अपने सामने एक सुन्दर-सी बालिका के रूप में देखकर कृष्ण जी स्वयं बहुत आनंदित होते है। जिनके दर्शन बड़े बड़े देवताओं के लिए भी दुर्लभ है तत्वज्ञ मनुष्य सैकड़ो जन्मों तक तप करने पर भी जिनकी झांकी नहीं पाते, वे ही श्री राधिका जी जब वृषभानु के यहां साकार रूप से प्रकट हुई।

राधाकृष्ण का विवाह[संपादित करें]

राधाकृष्ण का विवाह भांडीरवन मे

शास्त्रों के अनुसार ब्रह्माजी ने वृन्दावन में श्री कृष्ण के साथ साक्षात श्री राधा का विधिपूर्वक विवाह भांडीरवन मे संपन्न कराया था। [15] इस विवाह का उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण और गर्ग संहिता में भी मिलता है। बृज में आज भी माना जाता है कि राधा के बिना कृष्ण अधूरे हैं और कृष्ण बिना श्री राधा। धार्मिक पुराणों के अनुसार राधा और कृष्ण की ही पूजा का विधान है।

सम्प्रदायों में पूजनीय[संपादित करें]

स्वामीनारायण मंदिर में राधा कृष्ण की मूर्तियां

भारत के धार्मिक सम्प्रदाय - निम्बार्क संप्रदाय, गौड़ीय वैष्णववाद, पुष्टिमार्ग, राधावल्लभ संप्रदाय, स्वामीनारायण संप्रदाय, प्रणामी संप्रदाय, हरिदासी संप्रदाय और वैष्णव सहिज्य संप्रदाय में राधा को कृष्ण के साथ पूजा जाता है।[16][17]

प्रमुख स्तुतियां[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Miller, Barbara Stoler (1975). "Rādhā: Consort of Kṛṣṇa's Vernal Passion". Journal of the American Oriental Society. 95 (4): 655–671. JSTOR 601022. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 0003-0279. डीओआइ:10.2307/601022.
  2. Singh, Chattar (2004). Social and Economic Change in Haryana. National Book Organisation, 2004. पृ॰ 222. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788187521105.
  3. Monier Monier-Williams, Rādhā, Sanskrit-English Dictionary with Etymology, Oxford University Press, page 876
  4. Trilochan Dash. Krishna Leeela in Brajamandal a Retrospect. Soudamini Dash. पपृ॰ 192–. GGKEY:N5C1YTUK5T3.
  5. R. K. Das (1990). Temples of Vrindaban. Sandeep Prakashan. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-85067-47-6.
  6. Anu Julka (8 October 2014). SHRINATH JI. PartridgeIndia. पपृ॰ 23–. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-4828-2286-1.
  7. https://www.ramcharit.in/srimad-bhagwat-mahapuran-9th-skandh-with-hindi-meaning/
  8. https://maghaa.com/shiva-linga-skanda/
  9. http://peterffreund.com/Vedic_Literature/Vedic%20Literature%20Unicode/Purana/vishnu%20purana.rtf
  10. https://www.astromantra.com/shri-krishna-sahasranaam/
  11. https://www.bhaktibharat.com/amp/mantra/gopal-sahastranam-stotram
  12. https://www.hinduscriptures.com/wp-content/uploads/2018/01/28i_chapter_2_14.pdf
  13. https://vedicscriptures.in/atharvaveda/11/7/0/24
  14. https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A3
  15. "यहां हुआ था राधा-कृष्ण का विवाह, जानें कब-किसने करवाया". भास्कर. मूल से 26 जून 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 24 जून 2020.
  16. The Vedanta Kesari. Sri Ramakrishna Math. 1970.
  17. Lavanya Vemasani (2016). Krishna in History, Thought, and Culture. ABC-CLIO. पपृ॰ 222–223. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9781610692106.

श्रीमद्भागवत महापुराण एवम श्री ब्रह्मवैवर्त पुराण।

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]