केनोपनिषद
केनोपनिषद | |
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लेखक | वेदव्यास |
चित्र रचनाकार | अन्य पौराणिक ऋषि |
देश | भारत |
भाषा | संस्कृत |
श्रृंखला | सामवेदिय उपनिषद |
विषय | ज्ञान योग, द्वैत अद्वैत सिद्धान्त |
प्रकार | हिन्दू धार्मिक ग्रन्थ |
Part of a series on |
हिंदू शास्त्र और ग्रंथ |
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Rig vedic
Sama vedic Yajur vedic Atharva vedic |
अन्य शास्त्र |
संबंधित हिंदू ग्रंथ |
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कालक्रम |
केनोपनिषद सामवेदीय शाखा के अन्तर्गत एक उपनिषद है।
केनोपनिषद् ( = केन + उपनिषद् ) सामवेद के “तलकवार ब्राह्मण” के ९वें अध्याय पर है। पहले मंत्र का पहला शब्द 'केन' (अर्थ : किससे) है, इसलिए इसे केन उपनिषद कहा जाता है। इसे 'जैमिनी” व ' ब्राह्मणोपनिषद् ' भी कहते हैं।
संरचना[संपादित करें]
यह उपनिषद चार खण्डों में विभाजित है। प्रथम व द्वितीय खण्ड में गुरु-शिष्य परम्परा द्वारा प्रेरक सत्ता के बारे में बताया गया है। तीसरे और चौथे खंड में देवताओं में अभिमान व देवी ऊमा हेमवती द्वारा "ब्रह्म तत्व' ज्ञान का उल्लेख है। मनुष्य को ”श्रेय” मार्ग की ओर प्रेरित करना इस उपनिषद का लक्ष्य है। श्रेय (ब्रह्म) को तप, दम व कर्म से अनुभव किया जाता है।
प्रथम खण्ड[संपादित करें]
इस खण्ड में शिष्य अपने गुरु के सम्मुख ‘ब्रह्म चेतना’ के प्रति अपनी जिज्ञासा प्रकट करता है। वह अपने मुख से प्रश्न करता है कि वह कौन है, जो हमें परमात्मा के विविध रहस्यों को जानने के लिए प्रेरित करता है। ज्ञान-विज्ञान तथा हमारी आत्मा का संचालन करने वाला वह कौन है जो हमारी वाणी में, कानों में और नेत्रों में निवास करता है और हमें बोलने, सुनने तथा देखने की शक्ति प्रदान करता है। शिष्य के प्रश्नो का उत्तर देते हुए गुरु बताता है कि जो साधक मन, प्राण, वाणी, आंख, कान आदि में चेतना शक्ति भरने वाले ‘ब्रह्म’ को जान लेता है, वह जीवन मुक्त होकर अमर हो जाता है तथा आवागमन के चक्र से छूट जाता है। वह महान चेतनतत्त्व(ब्रह्म) वाक् का भी वाक् है, प्राण शक्ति का भी प्राण है, वह हमारे जीवन का आधार है, वह चक्षु का भी चक्षु है, वह सर्वशक्तिमान है और श्रवण शक्ति का भी मूल आधार है। हमारा मन उसी की महत्ता से मनन कर पाता है। उसे ही ‘ब्रह्म’ समझना चाहिए। उसे आंखों से और कानों से न तो देखा जा सकता है, न सुना जा सकता है।
द्वितीय खण्ड[संपादित करें]
इस खण्ड में ‘ब्रह्म’ की अज्ञेयता और मानव जीवन के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है। गुरु शिष्य को बताता है कि जो असीम और अनन्त है, उसे वह भली प्रकार से जानता है या वह उसे जान गया है, ऐसा नहीं है। उसे पूर्ण रूप से जान पाना असम्भव है। हम उसे जानते हैं या नहीं जानते हैं, ये दोनों ही कथन अपूर्ण हैं।
अहंकारविहीन व्यक्ति का वह बोध, जिसके द्वारा वह ज्ञान प्राप्त करता है, उसी से वह अमृत स्वरूप परब्रह्म को अनुभव कर पाता है। जिसने अपने जीवन में ऐसा ज्ञान प्राप्त कर लिया, उसे ही परब्रह्म का अनुभव हो पाता है। किसी अन्य योनि में जन्म लेकर वह ऐसा नहीं कर पाता। अन्य समस्त योनियां, कर्म भोग की योनियां हैं। मानव जीवन में ही बुद्धिमान पुरुष प्रत्येक वाणी, प्रत्येक तत्त्व तथा प्रत्येक जीव में उस परमात्म सत्ता को व्याप्त जानकर इस लोक में जाता है और अमरत्व को प्राप्त करता है।
तृतीय खण्ड[संपादित करें]
तीसरे खण्ड में देवताओं के अहंकार का मर्दन किया गया है। एक बार उस ब्रह्म ने देवताओं को माध्यम बनाकर असुरों पर विजय प्राप्त की। इस विजय से देवताओं को अभिमान हो गया कि असुरों पर विजय प्राप्त करने वाले वे स्वयं हैं। इसमें ब्रह्म ने क्या किया? तब ब्रह्म ने उन देवताओं के अहंकार को जानकर उनके सम्मुख यक्ष के रूप में अपने को प्रकट किया। तब देवताओं ने जानना चाहा कि वह यक्ष कौन है? सबसे पहले अग्निदेव ने जाकर यक्ष से उसका परिचय पूछा। यक्ष ने अग्निदेव से उनका परिचय पूछा, आप कौन हैं?
अग्निदेव ने उत्तर दिया कि वह अग्नि है और लोग उसे जातवेदा कहते हैं। वह चाहे, तो इस पृथ्वी पर जो कुछ भी है, उसे भस्म कर सकता है, जला सकता है। तब यक्ष ने एक तिनका अग्निदेव के सम्मुख रखकर कहा, आप इसे जला दीजिए। अग्निदेव ने बहुत प्रयत्न किया, पर वे उस तिनके को जला नहीं सके। हारकर उन्होंने अन्य देवों के पास लौटकर कहा कि वे उस यक्ष को नहीं जान सके।
उसके बाद वायु देव ने जाकर अपना परिचय दिया और अपनी शक्ति का बढ़ा चढ़ाकर बखान किया। इस पर यक्ष ने वायु से कहा कि वे इस तिनके को उड़ा दें, परंतु अपनी सारी शक्ति लगाने पर भी वायुदेव उस तिनके को उड़ा नहीं सके। तब वायुदेव ने इंद्र के समक्ष लौटकर कहा कि वे उस यक्ष को समझने में असमर्थ रहे। उन्होंने इंद्र से पता लगाने के लिए कहा। इंद्र ने यक्ष का पता लगाने के लिए तीव्रगति से यक्ष की ओर प्रयाण किया, परंतु उसके वहां पहुंचने से पहले ही यक्ष अंतर्ध्यान हो गया। तब इंद्र ने भगवती उमा से यक्ष के बारे में प्रश्न किया कि यह यक्ष कौन था।
सन्दर्भ[संपादित करें]
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
मूल ग्रन्थ[संपादित करें]
अनुवाद[संपादित करें]
- Translations of major Upanishads
- 11 principal Upanishads with translations
- Translations of principal Upanishads at sankaracharya.org
- Upanishads and other Vedanta texts
- डॉ मृदुल कीर्ति द्वारा उपनिषदों का हिन्दी काव्य रूपान्तरण
- Complete translation on-line into English of all 108 Upaniṣad-s [not only the 11 (or so) major ones to which the foregoing links are meagerly restricted]-- lacking, however, diacritical marks