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हिंदी में कुल ५,७७१ पाठ हैं।
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मई की निर्वाचित पुस्तक
हम पुराने भारतवर्ष के लोग हैं; बहुत ही प्राचीन और बहुत ही थके हुए हैं। मैं बहुधा अपने में ही अपनी इस जातीय भारी प्राचीनता का अनुभव किया करता हूँ। मन लगाकर जब अपने भीतर नजर डालता हूँ तब देखता हूँ कि वहाँ केवल चिन्ता, विश्राम और वैराग्य है। मानों हमारी भीतरी और बाहरी शक्तियों ने एक लम्बी छुट्टी ले रक्खी है। मानों जगत् के प्रातःकाल ही में हम लोग दफ्तर का कामकाज कर आये हैं, इसीसे इस दोपहर की कड़ी धूप में, जब कि और सब लोग कामकाज में लगे हुए हैं हम दर्वाजा बंद करके निश्चिन्त हो विश्राम या आराम कर रहे हैं; हमने अपनी पूरी तलब चुका ली है और पेंशन पा गये हैं। बस, अब उसी पेंशन पर गुजारा कर रहे हैं। मजे में हैं।...(पूरा पढ़ें)
सप्ताह की पुस्तक
"होरीराम ने दोनों बैलों को सानी-पानी देकर अपनी स्त्री धनिया से कहा—गोबर को ऊख गोड़ने भेज देना। मैं न जाने कब लौटूँ। ज़रा मेरी लाठी दे दे।
धनिया के दोनों हाथ गोबर से भरे थे। उपले पाथकर आयी थी। बोली—अरे, कुछ रस-पानी तो कर लो। ऐसी जल्दी क्या है?
होरी ने अपने झुरिर्यों से भरे हुए माथे को सिकोड़कर कहा—तुझे रस-पानी की पड़ी है, मुझे यह चिन्ता है कि अबेर हो गयी तो मालिक से भेंट न होगी। असनान-पूजा करने लगेंगे, तो घंटों बैठे बीत जायगा।..."(पूरा पढ़ें)
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पूर्ण पुस्तक
कर्मभूमि प्रेमचंद का दूसरा अंतिम उपन्यास है जिसका प्रकाशन १९३२ ई॰ में इलाहाबाद के हंस प्रकाशन द्वारा किया गया था। प्रेमाश्रम, कर्मभूमि और गोदान मिलकर किसान महागाथा त्रयी बनाते हैं।
"हमारे स्कूलों और कालेजों में जिस तत्परता से फ़ीस वसूल की जाती है, शायद मालगुजारी भी उतनी सख्ती से नहीं वसूल की जाती। महीने में एक दिन नियत कर दिया जाता है। उस दिन फ़ीस का दाख़िल होना अनिवार्य है। या तो फ़ीस दीजिए, या नाम कटाइए; या जब तक फ़ीस न दाखिल हो, रोज कुछ जुर्माना दीजिए। कहीं कहीं ऐसा भी नियम है, कि उस दिन फ़ीस दुगुनी कर दी जाती है, और किसी दूसरी तारीख को दुगुनी फ़ीस न दो, तो नाम कट जाता है। काशी के क्वींस कालेज में यही नियम था। ७वीं तारीख को फ़ीस न दो, तो २१वीं तारीख को दुगुनी फ़ीस देनी पड़ती थी, या नाम कट जाता था। ऐसे कठोर नियमों का उद्देश्य इसके सिवा और क्या हो सकता था, कि गरीबों के लड़के स्कूल छोड़कर भाग जायँ। वह हृदयहीन दफ्तरी शासन, जो अन्य विभागों में है, हमारे शिक्षालयों में भी है। वह किसी के साथ रिआयत नहीं करता। चाहे जहां से लाओ; कर्ज लो, गहने गिरो रखो, लोटा-थाली बेचो, चोरी करो, मगर फ़ीस जरूर दो, नहीं दूनी फ़ीस देनी पड़ेगी, या नाम कट जाएगा। जमीन और जायदाद के कर वसूल करने में भी कुछ रिआयत की जाती है। हमारे शिक्षालयों में नर्मी को घुसने ही नहीं दिया जाता। वहाँ स्थायी रूप से मार्शल-लॉ का व्यवहार होता है। कचहरियों में पैसे का राज है, उससे कहीं कठोर, कहीं निर्दय यह राज है। देर में आइए तो जुर्माना, न आइए तो जुर्माना, सबक न याद हो तो जुर्माना, किताबें न खरीद सकिये तो जुर्माना, कोई अपराध हो जाए तो जुर्माना, शिक्षालय क्या है जुर्मानालय है। यही हमारी पश्चिमी शिक्षा का आदर्श है, जिसकी तारीफ़ों के पुल बाँधे जाते हैं। यदि ऐसे शिक्षालयों से पैसे पर जान देनेवाले, पैसे के लिए ग़रीबों का गला काटनेवाले, पैसे के लिए अपनी आत्मा को बेच देनेवाले छात्र निकलते हैं, तो आश्चर्य क्या है?"...(पूरा पढ़ें)
सहकार्य
- इस माह शोधित करने के लिए चुनी गई पुस्तक:
- Kabir Granthavali.pdf [९२१ पृष्ठ]
- जायसी ग्रंथावली.djvu [४९८ पृष्ठ]
- रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf [४७१ पृष्ठ]
रचनाकार
जॉन स्टुअर्ट मिल (20 मई 1806 — 8 मई 1873) प्रसिद्ध सामाजिक, राजनैतिक तथा दार्शनिक चिंतक थे। विकिस्रोत पर उपलब्ध उनकी रचनाएँ:
- स्त्रियों की पराधीनता (1917), THE SUBJECTION OF WOMEN का हिंदी अनुवाद।
- उपयोगितावाद — (1924), Utilitarianism का हिंदी अनुवाद
रबीन्द्रनाथ ठाकुर या रबीन्द्रनाथ टैगोर (7 मई 1861 — 7 अगस्त 1941) नोबल पुरस्कार विजेता बाँग्ला कवि, उपन्यासकार, निबंधकार, दार्शनिक और संगीतकार हैं। विकिस्रोत पर उपलब्ध इनकी रचनाएँ:
- स्वदेश (1914), निबंध संग्रह
- राजा और प्रजा (1919), निबंध संग्रह
- विचित्र-प्रबन्ध (1924), निबंध संग्रह
- दो बहनें (1952), हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा अनूदित उपन्यास।
आज का पाठ
"नाटकों की व्युत्पत्ति के विषय में भरतमुनि के नाट्यशास्त्र में लिखा है कि त्रेता युग के आरंभ में देवताओं ने ब्रह्मा के पास जाकर उनकी बहुत स्तुति की और प्रार्थना की कि वे मनोरंजन की कुछ ऐसी वस्तु का सृजन कर दें, जिससे नेत्र तथा कर्ण दोनो को साथ साथ आनंद प्राप्त हो। इस पर ब्रह्मा जी ने प्रसन्न होकर चारों वेदो से कुछ कुछ अंश लेकर नाट्यवेद की रचना की। यह अब प्राप्त नहीं है और यह अतीव प्राचीन काल के गाथाओं का संग्रह मात्र होता, जिसका केवल उल्लेख नाट्यशास्त्र में हुआ है।..."(पूरा पढ़ें)
विषय
- हिंदी साहित्य — कविता, उपन्यास, कहानी, नाटक, आलोचना, निबंध, आत्मकथा, जीवनी, भाषा और व्याकरण, साहित्य का इतिहास
- समाज विज्ञान — दर्शनशास्त्र, इतिहास, राजनीति विज्ञान, भूगोल, अर्थशास्त्र, विधि
- विज्ञान — प्राकृतिक विज्ञान, पर्यावरण
- कला — संगीत
- अनुवाद — संस्कृत, तमिल, बंगाली, अंग्रेजी
- विविध — ग्रंथावली, संघ लोक सेवा आयोग प्रश्न पत्र, दिल्ली विश्वविद्यालय प्रश्न पत्र
- सभी विषय देखें
आंकड़े
- कुल पुस्तकें = ५२५
- कुल पुस्तक पृष्ठ = १,६३,६९४
- प्रमाणित पृष्ठ = १२,४७९, शोधित पृष्ठ = ६८,५८२
- समस्याकारक = ६, अशोधित = ९२,३७२, रिक्त = २,७३४
- सामग्री पृष्ठ = ५,७७१, परापूर्ण पृष्ठ = ४३१७
- स्कैन प्रतिशत = १००%
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