राजा हृदय शाह

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हृदय शाह लोधी [1](जिन्हे राजा हिरदेसाह लोधी या हरदेव शाह भी कहा जाता है), राजा ह्रदयशाह लोधी मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड के राजा थे। राजा ह्रदय शाह लोधी वर्तमान नरसिंहपुर के उत्तरी क्षेत्र पर शासन करते थे।[2] उन्होंने 1842 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह का नेतृत्व किया था।[3]

भारत सरकार का संस्कृति मंत्रालय भी उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता है।[4]

जैसे ही ईस्ट इंडिया कंपनी ने पहली बार नागपुर में अपने पैर जमाए, उसने दमोह, सागर और मंडला के किलों पर नियंत्रण कर लिया। 1820 तक, अधिकांश क्षेत्र पर नियंत्रण हासिल करने के बाद, अंग्रेजों ने गवर्नर जनरल के अधीन सागर नर्मदा क्षेत्र का गठन किया और इस क्षेत्र को अपने एक एजेंट के अधीन कर दिया। इस दौरान सागर के जवाहर सिंह बुंदेला और नरहुत के मधुकरशाह ने सैन्य विद्रोह के जरिए अपनी संपत्ति जब्त किए जाने का विरोध किया था। हीरापुर के राजा हृदय शाह के नेतृत्व में यह विद्रोह नरसिंहपुर, सागर और फिर जबलपुर तक फैल गया। हृदय शाह ने क्षेत्र के सभी ठाकुरों को संगठित किया और अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर दिया। 22 नवंबर 1842 को राजा हृदयशाह को बंदी बना लिया गया ।

1857 विद्रोह[संपादित करें]

1857 के विद्रोह को नर्मदा के उत्तर में ग्रामीण इलाकों में व्यापक समर्थन मिला। आंदोलन का नेतृत्व करने वाले सरदारों के अलावा, बड़ी संख्या में मालगुजारों, कृषकों और यहां तक कि मजदूरों ने भी इसमें हिस्सा लिया। इसका मुख्य कारण यह था कि बुंदेला, लोधी और गोंड नेताओं को अपने-अपने कबीलों और समुदायों में समर्थन प्राप्त था।[5]

1857 की क्रान्ति में मध्य प्रान्त के सभी लोधी लोग अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध में शामिल हो गए थे (आर.वी. रसेल-1916)। डॉ. सुरेश मिश्र अपनी पुस्तक 'रामगढ़ की रानी अवंतीबाई' के पृष्ठ 11[6] पर लिखते हैं कि "1842 के बुंदेला विद्रोह के दौरान सागर-नर्मदा क्षेत्र में जो विद्रोह हुआ, उसमें लोधी जागीरदारों ने सक्रिय रूप से भाग लिया था। नरसिंहपुर जिले के हीरापुर के हिरदेशाह और सागर जिले के मधुकर शाह उनमें प्रमुख थे। ब्रिटिश शासन के विरुद्ध लोधी प्रतिरोध की यह विरासत 1857 में और अधिक मुखर हुई और इसका नेतृत्व रामगढ़ की रानी अवंतीबाई ने किया। जबकि वास्तव में हिरदेशाह मध्य प्रान्त के स्वतंत्रता समर-1857 के प्रेरणा के मुख्य ऐतिहासिक स्रोत थे।[7]

सागर के बुंदेलों को हीरापुर के जमींदार हिरदे शाह लोधी और नरसिंहपुर के गोंड सरदार डेलन शाह से समर्थन प्राप्त हुआ।[8] इस स्वतंत्रता संग्राम में राजा हिरदेशाह लड़ते हुए 28 अ ।प्रैल 1858 को शहीद हो गये, जबकि उनके एक भाई सावंत सिंह जूदेव 1857 के समर में शहीद हो गये तथा दूसरे भाई गजराज सिंह जूदेव भी अंग्रेजों से लड़ते हुए गिरफ्तार हो गये और 1858 में उनकी मृत्यु हो गयी। उन्हें भी बीच में ही फांसी दे दी गयी तथा राजा हिरदेशाह जूदेव के पुत्र राजकुमार मेहरबान सिंह अंग्रेजों से लड़ते हुए 20 दिसम्बर 1857 को शहीद हो गये।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Mahotsav, Amrit. "Raja Hirde Shah". Azadi Ka Amrit Mahotsav, Ministry of Culture, Government of India (English में). अभिगमन तिथि 2024-05-15.सीएस1 रखरखाव: नामालूम भाषा (link)
  2. "THE ICONS MADHYA PRADESH IS HONOURING".
  3. University of Edinburgh, Crispin Bates (30 Jun 2008). Adivasi Insurrections in India: the 1857 Rebellion in central India, its wider context and historiography (PDF) (English में). United Kingdom: Bates, C. (2008). पपृ॰ 15–17.सीएस1 रखरखाव: नामालूम भाषा (link)
  4. "A humble tribute to Raja Hirdeshah Lodhi - the great warrior of Bundela revolution of 1842". twitter.com/MinOfCultureGoI.
  5. by (2017-10-17). "Revolt of 1857 in Madhya Pradesh". MPPCS Exam Preparation (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2024-05-16.
  6. Thakur, Rajiv. Ramgarh ki Rani Avantibai | रामगढ़ की रानी अवंतिबाई: Rani Avantibai aur Ramgarh (Hindi में).सीएस1 रखरखाव: नामालूम भाषा (link)
  7. Sharma, Prof. Pankaj. HIRDESHAH OF HIRAPUR, THE HERO OF THE 1842 REBELLION (PDF). आइ॰एस॰एस॰एन॰ 2394-6326.
  8. "Revolt of 1857 in Madhya Pradesh, Major Events, Leaders in MP". Testbook (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2024-05-16.