अपघर्षी कर्तन
![](http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/a/a2/Rotating_grinder.gif)
![](http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/thumb/c/cc/Unbestimmte_Schneide.svg/250px-Unbestimmte_Schneide.svg.png)
ग्राइण्डिंग (Grinding) या पेषण एक अपघर्षक मशीनिंग प्रक्रिया (abrasive machining process) है जो काटने के लिये शीण चक्र (grinding wheel) का उपयोग करती है।
घर्षक या ग्राइण्डर लकड़ी, धातु तथा पत्थरों के प्रमार्जन तथा उनपर चमक पैदा करने के कामों में लाया जाता है। ये घर्षक प्राकृतिक तथा बनावटी पदार्थों को मिलाकर बनाया जाता है। कुरुबिंद (कोरंडम, corundum), एमरी, (emery), बालू (sand) तथा विविध प्रकार के पत्थर आदि प्राकृतिक घर्षक हैं, जिनका उपयोग पेषण पत्थर (सिलवट्ट / ग्राइन्डिंग स्लैब) और शाणचक्रों (grinding wheels) के बनाने में होता है। दूसरे प्राकृतिक घर्षक भी हैं, जो इतने लाभदायक और अधिक उपयोगी नहीं हैं।
बनावटी घर्षकों में कारबोरंडम (carborundum), पिसा हुआ लोहा तथा इस्पात हैं। कारबोरंडम, कार्बन तथा कुरुबिंद को मिलाकर बनता है। इस्पात से एमरी भी बनाया जाता है। या तो इस्पात को पीसकर, या फिर इस्पात एमरी बनाकर घर्षक बनाते हैं। इस्पात एमरी बनाने का नियम यह है कि अच्छे इस्पात को अधिक तपाकर तुंरत जल में डाल देते हैं। इस ठंढे लोहे को यंत्रों द्वारा पीस लिया जाता है।
इन प्राकृतिक तथा बनावटी घर्षकों को चिपकनेवाले पदार्थ के साथ मिलाकर पेषण पत्थर या शाणचक्र बनाए जाते हैं। इन चिपकनेवाले पदार्थों में काचित (Vitrified) सिलिकेट, चपड़ा (shellac), संश्लिष्ट रेजिन और रबर मुख्य हैं। विशेष भारी कामों के लिये, या ऐसे कामों के लिये जहाँ धातु को अधिक तीव्र गति पर घिसना होता है, काचित पदार्थ का उपयोग सबसे अधिक होता है।
रबर ऐसे पतले चक्र बनाने के काम में लाया जाता है जिनसे किसी धातु को दो भागों में काटा जाता है। ये चक्र भंगुर नहीं होते और इस प्रकार इनके टूटने का डर नहीं रहता।
घर्षक की संरचना पर ध्यान देना जरुरी है। संरचना से मतलब घर्षक के कणों की एक दूसरे से दूरी से है। दूर-दूर रखे गए कण मृदु और तन्य (ductile) धातु को ठीक प्रकार से काट सकते हैं, परंतु पास पास रखे गए कण कठोर तथा भंगुर धातु के लिये उपयुक्त होते हैं। पास पासवाले कण से अच्छी परिसज्जा (finish) होती है और समतल पर चमक आ जाती है।
घर्षक के कणों के परिमाण का भी प्रभाव धातु पर पड़ता है। कठोर और भंगुर धातुएँ छोटे कण के घर्षक से अच्छी कटती हैं और इसी प्रकार ये घर्षक प्रमार्जन के लिय भी ठीक होते हैं। मोटे कण के घर्षकों से अधिक धातु कम समय में कट जाती है, परंतु अच्छी परिसज्जा नहीं हो पाती और धातु पर रेखाएँ पड़ जाती हैं।
![](http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/thumb/0/06/Grinding_operations.svg/450px-Grinding_operations.svg.png)