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रायसेन ज़िला

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रायसेन भारत राज्य मध्य प्रदेश का एक जिला है जिसका मुख्यालय रायसेन है। रायसेन राज्य की राजधानी भोपाल से 45.5 किमी दूर है।

रायसेन ज़िला

मध्य प्रदेश में रायसेन ज़िले की अवस्थिति
राज्य मध्य प्रदेश
 भारत
प्रभाग रायसेन
मुख्यालय रायसेन
क्षेत्रफल 8,395 कि॰मी2 (3,241 वर्ग मील)
जनसंख्या 1,331,699 (2011)
जनघनत्व 157/किमी2 (410/मील2)
साक्षरता 74.26 per cent
लिंगानुपात 899
तहसीलें 09
लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र Vidisha
विधानसभा सीटें 4
राजमार्ग NH12
औसत वार्षिक वर्षण 1191.1मिलीमीटर मिमी
आधिकारिक जालस्थल

इतिहास[संपादित करें]

स्थान और सीमाएं : रायसेन जिले मध्य प्रदेश के मध्य भाग में स्थित है। जिला अक्षांश 23°19’ उत्तर और देशांतर 77°47' पूर्व के बीच स्थित है। यह नरसिंहपुर जिले के दक्षिण-पूर्व में, सागर ज़िला जिले से उत्तर-पूर्व में, विदिशा ज़िला जिले के उत्तर में, सिहोर जिले से पश्चिम में घिरा है, और होशंगाबाद ज़िला और सीहोर जिले के दक्षिण में है। जिले का कुल क्षेत्रफल 8395 वर्ग किमी है जो की राज्य के क्षेत्रफल का 1.93% शामिल हैं।

नाम की उत्पत्ति :एक मजबूत किले के साथ रायसेन हिन्दू काल एवं नींव की अवधि से प्रशासन का एक महत्वपूर्ण केंद्र था। पंद्रहवीं सदी में इस किले पर मांडू के बहादुरशाह का शासन था। 1543 में शेरशाह सूरी ने गौंड राजा पूरणमल शाह से कब्जा कर लिया। अकबर के समय में रायसेन मालवा में सरकार का एक मुख्यालय था।

इतिहास: मुगल काल के दौरान खामखेड़ा क्षेत्र मुख्यालय गैरतगंज तहसील में पड़ता था। शाहपुर, परगना का मुख्यालय था, बाद में उसे सगोनि पर स्थानांनतरित कर दिया गया जो की बेगमगंज तहसील में आता है । भोपाल के भारत के संघ के 'सी' राज्य बनने के बाद रायसेन जिलामुख्यालय के साथ, 5 मई 1950 को अस्तित्व में आया।

तहसीलें[संपादित करें]

  1. रायसेन
  2. बेगमगंज
  3. गैरतगंज
  4. गौहरगंज
  5. सिलवानी
  6. उदयपुरा
  7. बरेली
  8. बाडी़
  9. सुल्तानपुर
  10. देवरी

दर्शनीय स्थल[संपादित करें]

भोजपुर[संपादित करें]

प्राचीन काल का यह नगर "उत्तर भारत का सोमनाथ' कहा जाता है। यह स्थान भोपाल से २५ किमी की दूरी पर रायसेन जिले में वेत्रवती नदी के किनारे बसा है। गाँव से लगी हुई पहाड़ी पर एक विशाल शिव मंदिर है। इस नगर तथा उसके शिवलिंग की स्थापना धार के प्रसिद्ध परमार राजा भोज (१०१० ई.- १०५३ ई.) ने किया था। अतः इसे भोजपुर, मध्य प्रदेश मंदिर या भोजेश्वर मंदिर भी कहा जाता है। मंदिर पूर्ण रुपेण तैयार नहीं बन पाया। इसका चबूतरा बहुत ऊँचा है, जिसके गर्भगृह में एक बड़ा- सा पत्थर के टूकड़े का पॉलिश किया गया लिंग है, जिसकी ऊँचाई ३.८५ मी. है। इसे भारत के मंदिरों में पाये जाने वाले सबसे बड़े लिंगों में से एक माना जाता है।

साँची का स्तूप[संपादित करें]

प्राचीन काल का यह नगर भोपाल से ४५ किमी की दूरी पर रायसेन जिले में वेत्रवती नदी के किनारे बसा है। नगर से लगी हुई पहाड़ी पर एक विशाल बोद्ध स्तूप है। इस स्तूप में भगबान बोद्ध की अस्थिया रखी हुइ है।

भीमबेटका शैलाश्रय[संपादित करें]

भीमबेटका (भीमबैठका) भारत के मध्य प्रदेश प्रान्त के रायसेन जिले में स्थित एक पुरापाषाणिक आवासीय पुरास्थल है। यह आदि-मानव द्वारा बनाये गए शैल चित्रों और शैलाश्रयों के लिए प्रसिद्ध है। ये शैलचित्र लगभग नौ हजार वर्ष पुराने हैं। अन्य पुरावशेषों में प्राचीन किले की दीवार, लघुस्तूप, पाषाण निर्मित भवन, शुंग-गुप्त कालीन अभिलेख, शंख अभिलेख और परमार कालीन मंदिर के अवशेष भी यहां मिले हैं। भीम बेटका क्षेत्र को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, भोपाल मंडल ने अगस्त १९९० में राष्ट्रीय महत्त्व का स्थल घोषित किया। इसके बाद जुलाई २००३ में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल घोषित किया है। ये भारत में मानव जीवन के प्राचीनतम चिह्न हैं। ऐसा माना जाता है कि यह स्थान महाभारत के चरित्र भीम से संबन्धित है एवं इसी से इसका नाम भीमबैठका पड़ा। ये गुफाएँ मध्य भारत के पठार के दक्षिणी किनारे पर स्थित विन्ध्याचल की पहाड़ियों के निचले छोर पर हैं।[1]; इसके दक्षिण में सतपुड़ा की पहाड़ियाँ आरम्भ हो जाती हैं।[2] इनकी खोज वर्ष १९५७-१९५८ में डाक्टर विष्णु श्रीधर वाकणकर द्वारा की गई थी।

रायसेन किला[संपादित करें]

रायसेन का दुर्ग, मध्य प्रदेश के प्राचीन दुर्गों में से एक है। इसका निर्माण ११वीं शताब्दी में हुआ था। यह गोण्डवाना के उत्तरी-पश्चिमी कोने पर विन्ध्याचल पर्वतश्रेणी की एक पहाड़ी पर स्थित है। इस किले में स्थित शिव मन्दिर और वहाँ की शिवरात्रि उत्सव प्रसिद्ध है। रायसेन किले में एक उन्नत वर्षा जल संचयन प्रणाली है। इस प्रणाली में चार बड़े और 84 छोटे कुंड शामिल हैं जो किले की ऊंचाई (700 फीट) के बावजूद वर्षभर पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करते हैं।[3]

हिंगलाज मंदिर बाड़ी[संपादित करें]

रायसेन में 'मां हिंगलाज बाड़ी' के नाम से एक मंदिर है जो लगभग 500 वर्ष पुराना है। यहां के लोगों का मानना है कि इस मंदिर की ज्योति मुख्य मंदिर से लगाई थी और फिर यहां मां को स्थापित किया गया।

छींद मंदिर[संपादित करें]

रायसेन जिले की बरेली तहसील से 7 किलोमीटर दक्षिण पूर्व दिशा में स्थित है प्रसिद्ध छींद धाम मंदिर ।

बगलवाडा[संपादित करें]

रायसेन जिले की बरेली तहसील के १० कि.मी. दक्षिण में बगलवाडा स्थित है। यहां नर्मदा नदी के तट पर कई प्राचीन मंदिर है। जिनमें हनुमान मंदिर , रामजानकी मंदिर , मां नर्मदा मंदिर प्रमुख है। यहां पर पांडवों ने यज्ञ किया था उस स्थान को कुंडा महाराज नाम से जाना जाता है।

जामगढ[संपादित करें]

रायसेन जिले की बरेली तहसील में जामगढ आदि मानव की आश्रय स्थली के रूप में जाना जाता है। यहां जामवंत की प्रस्तर गुफा के साथ ही गुफाओं की श्रंखला है। पास में ही भगदेई में खजुराहो शैली का शिव मंदिर है। इस मंदिर को गुर्जर -प्रतिहार वंश कालीन माना जाता है। कई विद्वानों का मानना है कि है यह ऐतिहासिक शिव मंदिर 5 वीं, 6वीं सदी का भी हाे सकता है।

शैलकला एवं शैलचित्र[संपादित करें]

भीमबैठका शैलचित्र

यहाँ ७५० शैलाश्रय हैं जिनमें ५०० शैलाश्रय चित्रों द्वारा सज्जित हैं। पूर्व पाषाण काल से मध्य ऐतिहासिक काल तक यह स्थान मानव गतिविधियों का केंद्र रहा।[1] यह बहुमूल्य धरोहर अब पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है। भीम बैठका क्षेत्र में प्रवेश करते हुए शिलाओं पर लिखी कई जानकारियां मिलती हैं। यहां के शैल चित्रों के विषय मुख्यतया सामूहिक नृत्य, रेखांकित मानवाकृति, शिकार, पशु-पक्षी, युद्ध और प्राचीन मानव जीवन के दैनिक क्रियाकलापों से जुड़े हैं। चित्रों में प्रयोग किए गए खनिज रंगों में मुख्य रूप से गेरुआ, लाल और सफेद हैं और कहीं-कहीं पीला और हरा रंग भी प्रयोग हुआ है।[2]

शैलाश्रयों की अंदरूनी सतहों में उत्कीर्ण प्यालेनुमा निशान एक लाख वर्ष पुराने हैं। इन कृतियों में दैनिक जीवन की घटनाओं से लिए गए विषय चित्रित हैं। ये हज़ारों वर्ष पहले का जीवन दर्शाते हैं। यहाँ बनाए गए चित्र मुख्यतः नृत्य, संगीत, आखेट, घोड़ों और हाथियों की सवारी, आभूषणों को सजाने तथा शहद जमा करने के बारे में हैं। इनके अलावा बाघ, सिंह, जंगली सुअर, हाथियों, कुत्तों और घडियालों जैसे जानवरों को भी इन तस्वीरों में चित्रित किया गया है। यहाँ की दीवारें धार्मिक संकेतों से सजी हुई है, जो पूर्व ऐतिहासिक कलाकारों के बीच लोकप्रिय थे।[2] इस प्रकार भीम बैठका के प्राचीन मानव के संज्ञानात्मक विकास का कालक्रम विश्व के अन्य प्राचीन समानांतर स्थलों से हजारों वर्ष पूर्व हुआ था। इस प्रकार से यह स्थल मानव विकास का आरंभिक स्थान भी माना जा सकता है।

निकटवर्ती पुरातात्विक स्थल[संपादित करें]

भीमबेटका के शैलचित्र

इस प्रकार के प्रागैतिहासिक शैलचित्र रायगढ़ जिले के सिंघनपुर के निकट कबरा पहाड़ की गुफाओं में[4], होशंगाबाद के निकट आदमगढ़ में, छतरपुर जिले के बिजावर के निकटस्थ पहाडियों पर तथा रायसेन जिले में बरेली तहसील के पाटनी गाँव में मृगेंद्रनाथ की गुफा के शैलचित्र एवं भोपाल-रायसेन मार्ग पर भोपाल के निकट पहाडियों पर (चिडिया टोल) में भी मिले हैं। हाल में ही होशंगाबाद के पास बुधनी की एक पत्थर खदान में भी शैल चित्र पाए गए हैं। भीमबेटका से ५ किलोमीटर की दूरी पर पेंगावन में ३५ शैलाश्रय पाए गए है ये शैल चित्र अति दुर्लभ माने गए हैं। इन सभी शैलचित्रों की प्राचीनता १०,००० से ३५,००० वर्ष की आंकी गयी है।

विश्व की दूसरी सबसे बड़ी दीवार[संपादित करें]

गोरखपुर-देवरी से चैनपुर-बाड़ी तक करीब 80 किमी लंबी और 14 से 15 फीट चौड़ी प्राचीन दीवार निकली है। विंध्याचल पर्वत के ऊपर से निकली यह दीवार आज भी लोगों के लिए रहस्य बनी हुई है। [5][6]

दीवार के बारे में बताया जाता है कि इसका निर्माण परमार कालीन राजाओं ने करवाया होगा। दीवार के बनाने का उददेश्य परमार राजाओं द्वारा अपने राज्य की सीमा को सुरक्षित रखना माना जा रहा है।

रायसेन जिला मुख्यालय से 140 किमी दूर स्थित ग्राम गोरखपुर-देवरी से इस प्राचीन दीवार की शुरुआत हुई है, जो सैकड़ों गावों के बीच से होकर बाड़ी के चौकीगढ़ किले तक पहुंची है। जयपुर-जबलपुर नेशनल हाईवे क्रमांक-12 से लगे ग्राम गोरखपुर से बाड़ी की दूरी 80 किमी है, लेकिन प्राचीन दीवार विंध्याचल पर्वत के ऊपर से तो कहीं पर गांवों के आसपास से निकली है। इस लिहाज से इस दीवार की लंबाई कुछ ज्यादा भी हो सकती है, लेकिन कई स्थानों पर दीवार को तोड़ भी दिया गया है। टूटी दीवार के अवशेष गांवों के आसपास दिखाई देते हैं।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "भीमबेटका की गुफाएँ". इन्क्रेडिबल इण्डिया. पपृ॰ ०१. मूल (एचटीएम) से 13 जून 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि १८ जुलाई २००९.
  2. "भीमबेटका की पहाड़ी गुफाएं" (पीएचपी). राष्ट्रीय पोर्टल विषयवस्तु प्रबंधन दल. भारत सरकार. पपृ॰ ०१. मूल से 13 मई 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि १८ जुलाई २००९.
  3. रायसेन में किले का प्राचीन वर्षा-जल-संचयन प्रणाली आज भी बुझा रही पर्यटकों की प्यास
  4. "हुसैनाबाद में ढाई हजार साल पुरानी सभ्यता के अवशेष" (एचटीएमएल). याहू जागरण. पृ॰ ०१. अभिगमन तिथि १८ जुलाई २००९.[मृत कड़ियाँ]
  5. रायसेन में मिली दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी दीवार
  6. "भारत में भी है चीन जैसी 'महान दीवार', 1000 साल पुरानी पर अब तक गुमनाम". मूल से 31 दिसंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 जनवरी 2017.

इन्हें भी देखें[संपादित करें]