विदेह वंश
विदेह राजवंश मिथिला के विदेह / जनक राजवंश | |||||||||||
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ल. 1200 ई.पू.–ल. 600 ई.पू. | |||||||||||
विदेह और अन्य राज्य उत्तर वैदिक काल में | |||||||||||
गणतंत्रीय विदेह राज्य (वज्जि संघ द्वारा शासन, ल. 600–400 ई.पू) और अन्य गणसंघ राज्य | |||||||||||
राजधानी | मिथिलापुरी और जनकपुर[1] (अन्य, बलिराजगढ़)[2][3] | ||||||||||
प्रचलित भाषाएँ | संस्कृत | ||||||||||
धर्म | हिन्दू धर्म[4] | ||||||||||
सरकार | राजतंत्र | ||||||||||
जनक | |||||||||||
• ल. 13वीं से 10वीं शताब्दी ई.पू. | निमि | ||||||||||
• ल. 13वीं से 10वीं शताब्दी ई.पू. | विदेह माधव | ||||||||||
• ल. 13वीं से 10वीं शताब्दी ई.पू. | मिथि | ||||||||||
• ल. 13वीं से 10वीं शताब्दी ई.पू. | सिरध्वज | ||||||||||
• ल. 10वीं शताब्दी ई.पू. | क्षेमावी | ||||||||||
• ल. 7वीं शताब्दी ई.पू. | करल (अंतिम जनक) | ||||||||||
स्थापित | विदेह माधव | ||||||||||
ऐतिहासिक युग | लौह युग | ||||||||||
• स्थापित | ल. 1200 ई.पू. | ||||||||||
• गणतंत्रीय वज्जि संघ द्वारा राजतंत्रिय विदेह राजवंश का विलय | ल. 600 ई.पू. | ||||||||||
मुद्रा | पण | ||||||||||
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अब जिस देश का हिस्सा है | भारत नेपाल |
विदेह राजवंश (प्राकृत: 𑀯𑀺𑀤𑁂𑀳 विदेध; संस्कृत: विदेह) मिथिला के विदेह या जनक राजवंश प्राचीन भारत का एक हिन्दू राजवंश था[उद्धरण चाहिए], जिसने उत्तर-पूर्व भारतीय उपमहाद्वीप में लोह युगिन काल में शासन किया था। यह राजवंश मिथिला क्षेत्र पर शासन करने वाला पहला राजवंश था, जो लगभाग ऋग्वेद काल के अंत में अस्तित्व में आया और महाजनपद काल तक अस्तित्व मे बना रहा। विदेह राजवंश मे कुल 54 राजाओं ने शासन किया, इस राजवंश के शासको को जनक कहा जाता था। निमि और विदेह माधव द्वारा इस राजवंश की स्थापना की गयी थी, इस राजवंश का अंतिम शासक करल जनक था। विदेह राज्य वैदिक काल तक राजतंत्रात्मक रूप से शासन करता था, फिर महाजनपद काल में वज्जि गणतंत्र संघ द्वारा 'विदेह राज्य या मिथिला' का विलय कर लिया गया और फिर वहां गणतंत्रात्मक व्यवस्था से शासन होने लगा।
स्थिति और विस्तार[संपादित करें]
वर्तमान बिहार के भागलपुर तथा दरभंगा जिलों के भू-भाग विदेह क्षेत्र था। विदेह राज्य की सीमाएँ पश्चिम में सदानीरा नदी (गण्डकी नदी), पूर्व में कोसी नदी, दक्षिण में गंगा नदी और उत्तर में हिमालय से लगी थी। सदानीरा नदी के पश्चिम में कोशल राज्य स्थित था।
विदेह राज्य की राजधानी मिथिलापुरी और बाद में जनकपुर रही थी।
शब्द की व्युत्पत्ति[संपादित करें]
"विदेह" शब्द संस्कृत के "विदेघ" शब्द का प्राकृत रूप है। मिथिला नगर के संस्थापक "मिथि जनक" थे, जिससे मिथिला शब्द बना है। प्राचीन काल में आर्यजन अपने गणराज्य का नामकरण राजन्य वर्ग के किसी विशिष्ट व्यक्ति के नाम पर किया करते थे जिसे विदेह कहा गया। ये जन का नाम था। कालान्तर में विदेध ही विदेह हो गया।[5]
इतिहास[संपादित करें]
- विदेह राजवंश का आरम्भ इक्ष्वाकु के पुत्र निमि विदेह के मानी जाती है। यह सूर्यवंशी थे। इसी वंश का दूसरा राजा मिथि जनक विदेह ने मिथिलांचल की स्थापना की। इस वंश के २५वें राजा सिरध्वज जनक थे जो कौशल के राजा दशरथ के समकालीन थे।
- जनक द्वारा गोद ली गई पुत्री सीता का विवाह दशरथ पुत्र राम से हुआ।
- विदेह की राजधानी मिथिला थी। इस वंश के करल जनक अन्तिम राजा थे।
- वर्तमान भागलपुर तथा दरभंगा जिलों के भू-भाग विदेह क्षेत्र था।
- मिथिला के प्रजा ने विदेह राजवंश के अन्तिम राजा करलजनक को समाप्त कर गणतंत्र का नींव रखा ।
- उल्लेखनीय है कि विदेह राजतन्त्र से बदलकर (छठीं सदी ई० पू०) गणतन्त्र हो गया था। यही बाद में लिच्छवी/वज्जि महासंघ के नाम से विख्यात हुआ।
- गणराज्य की शासन व्यवस्था- सारी शक्ति केन्द्रीय समिति या संस्थागार में निहित थी।
- संस्थागार के कार्यभार- आधुनिक प्रजातन्त्र संसद के ही समान थी।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि प्राचीन बिहार के मुख्य जनपद मगध, अंग, वैशाली और मिथिला, भारतीय संस्कृति और सभ्यता की विशिष्ट आधारशिला हैं।
वंशावली[संपादित करें]
- शासकों की सूची-
वाल्मीकीय रामायण के अनुसार मिथिला पर रामायण काल तक निम्नलिखित राजाओं ने शासन किया-
- मिथि - मिथिला के संस्थापक राजा, ये निमि के पुत्र थे।
- जनक (प्रथम जनक)[6]
- उदावसु[7]
- नन्दिवर्धन
- सुकेतु
- देवरात
- बृहद्रथ
- महावीर
- सुधृति
- धृष्टकेतु
- हर्यश्व
- मरु
- प्रतीन्धक
- कीर्तिरथ
- देवमीढ
- विबुध
- महीध्रक
- कीर्तिरात
- महारोमा
- स्वर्णरोमा
- ह्रस्वरोमा
- सीरध्वज जनक - सीता के पिता सर्वविदित जनक
सर्वाधिक प्राचीन पुराणों में से एक तथा अपेक्षाकृत सुसंगत श्रीविष्णुपुराण का आधार अधिक उपयुक्त है। सीरध्वज के पुत्र भानुमान् से लेकर कृति (अन्तिम) तक कुल 32 राजाओं के नाम श्रीविष्णुपुराण[8] में दिये गये हैं और उन्हें स्पष्ट रूप से 'मैथिल' (इत्येते मैथिला:) कहा गया है।
- भानुमान्
- शतद्युम्न
- शुचि
- ऊर्जनामा
- शतध्वज
- कृति
- अंजन
- कुरुजित्
- अरिष्टनेमि
- श्रुतायु
- सुपार्श्व
- सृंजय
- क्षेमावी
- अनेना
- भौमरथ
- सत्यरथ
- उपगु
- उपगुप्त
- स्वागत
- स्वानन्द
- सुवर्चा
- सुपार्श्व
- सुभाष
- सुश्रुत
- जय
- विजय
- ऋत
- सुनय
- वीतहव्य
- धृति
- बहुलाश्व
- कृति
इस अन्तिम राजा कृति के साथ ही जनकवंश की समाप्ति मानी गयी है। इसे ही अन्यत्र 'कराल जनक' भी कहा गया है।[9] यहाँ परिगणित तेरहवें राजा क्षेमावी का अपर नाम कुछ लोगों ने 'क्षेमारि' भी माना है तथा महाभारतकालीन राजा क्षेमधूर्ति से उसकी समानता की बात कही है।
इन्हें भी देखें[संपादित करें]
- वज्जि
- मिथिला
- रामायण
- महाजनपद
- भारत का इतिहास
- हिन्दू धर्म का इतिहास
- बिहार का प्राचीन इतिहास
- मिथिला के राजाओं की सूची
सन्दर्भ[संपादित करें]
- ↑ Raychaudhuri (1972)
- ↑ "News18 इंडिया: Hindi News, Latest News in Hindi, Breaking News in Hindi".
- ↑ "नालंदा ने आनंदित किया लेकिन मिथिला के बलिराजगढ़ की कौन सुध लेगा ? | News of Bihar". मूल से 26 अक्टूबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 26 अक्टूबर 2017.
- ↑ Ben-Ami Scharfstein (1998), A comparative history of world philosophy: from the Upanishads to Kant, Albany: State University of New York Press, pp. 9-11
- ↑ मिथिला का इतिहास - डाॅ. रामप्रकाश शर्मा, कामेश्वर सिंह संस्कृत वि.वि.दरभंगा; तृतीय संस्करण-2016.
- ↑ 'जनको मिथिपुत्रकः' - वा.रा.,पूर्ववत्-1.71.4.
- ↑ 'जनकादप्युदावसुः' - वा.रा., पूर्ववत्-1.71.4.
- ↑ श्रीविष्णुपुराण, गीताप्रेस गोरखपुर, संस्करण-2001ई.-4.5.30-32.
- ↑ मिथिला का इतिहास - डाॅ. रामप्रकाश शर्मा, कामेश्वर सिंह संस्कृत वि.वि.दरभंगा; तृतीय संस्करण-2016., पृ.29,30.