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वसुधैव कुटुम्बकम्

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वसुधैव कुटुम्बकम् सनातन धर्म का मूल संस्कार तथा विचारधारा है[1] जो महा उपनिषद सहित कई ग्रन्थों में लिपिबद्ध है। इसका अर्थ है- धरती ही परिवार है (वसुधा एव कुटुम्बकम्)। यह वाक्य भारतीय संसद के प्रवेश कक्ष में भी अंकित है।

अयं बन्धुरयं नेति गणना लघुचेतसाम् ।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ॥ -- (महोपनिषद्, अध्याय ६, मंत्र ७१)
अर्थ - यह (मेरा) बन्धु है और यह नहीं है, इस तरह की गणना छोटे चित्त (सञ्कुचित मन) वाले लोग करते हैं। उदार हृदय वाले लोगों के लिए तो (सम्पूर्ण) धरती ही परिवार है।

महान लेखकों द्वारा इस का चर्चा बड़े बड़े ग्रंथ में है

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सन्दर्भ[संपादित करें]