रामसहायदास

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रामसहायदास हिन्दी के रीतिमुक्त कवि थे। ये 'भगत' नाम से प्रसिद्ध थे और इसी नाम से कविताएँ भी लिखते थे।

परिचय[संपादित करें]

रामसहायदास वाराणसी के चौबेपुर के रहनेवाले अस्थाना कायस्थ थे। भवानीदास इनके पिता और चिंतामणि इनके गुरु थे। काशीनरेश महाराज उदितनारायण सिंह (१७९५ - १८३५ ई.) ही इनके आश्रयदाता थे। इनके जन्मकाल के विषय में कोई सूचना नहीं मिलती, किंतु 'शिवसिंह सरोज' में इनका उपस्थितिकाल संवत् १९०१ विक्रमी दिया गया है। इनका काव्यकाल प्राय: सं. १८६१ वि. से १८८१ वि. तक माना जाता है। ये परम भक्त और प्रकृति से बड़े विनम्र थे।

कृतियाँ[संपादित करें]

इनकी रचनाओं के विषय में 'शिवसिंह सरोज' से पिंगलग्रंथ 'वृत्ततरंगिनी', 'मिश्रबंधु-विनोद' से 'रामसतसई' और रामनरेश त्रिपाठी कृत 'कविता कौमुदी' (भाग १) से 'शृंगारसतसई', 'वृत्ततरंगिनी', 'ककहरा' 'रामसप्तसति' एवं 'वाणीभूषण' की रचना मिलती है। 'रामसतसई', 'रामसप्तसति' और 'शृंगारसतसई' तीनों एक ही रचना के तीन नाम ज्ञात होते हैं। नाम के आधार पर अनुमान है कि 'वाणीभूषण', अलंकारनिरूपक ग्रंथ रहा होगा, जो अनुपलब्ध है। रामचंद्र शुक्ल ने 'ककहरा' को कवि की अंतिम कृति माना है। यह जायसी के अखरावट की पद्धति पर रची गई धर्म-नीति प्रधान रचना है। पिंगलनिरूपक कृति 'वृत्ततरंगिनी' की प्रति नागरीप्रचारिणी सभा, वाराणसी में सुरक्षित है।

कवि की प्रख्याति का कारण उसकी महत्वपूर्ण रचना 'रामसतसई' ही है। इसकी अनूठी भावव्यंजना और अपूर्व भाषाकौशल के नाते रामसहायदास का नाम हिंदी के रीतिमुक्त काव्यकारों के साथ आदर से लिया जाता है।