कोशिकानुवंशिकी

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कोशिका के अन्दर की रचना तथा विभाजन के अध्ययन को कोशिकानुवंशिकी (Cytogenetics) कहते हैं। लैंगिक जनन द्वारा नर और मादा युग्मक पैदा करनेवाले पौधों के गुण नए, छोटे पौधों में उत्पन्न होने के विज्ञान को आनुवंशिकी (genetics) कहते हैं। चूँकि यह गुण कोशिकाओं में उपस्थित वर्णकोत्पादक (chromogen) पर जीन (gene) द्वारा प्रदत्त होता है, इसलिये आजकल इन दोनों विभागों को एक में मिलाकर कोशिकानुवंशिकी कहते हैं।

प्रत्येक जीवधारी की रचना कोशिकाओं से होती है। प्रत्येक जीवित कोशिका के अन्दर एक विलयन जैसा द्रव, जिसे जीवद्रव्य (protoplasm) कहते हैं, रहता है। जीवद्रव्य तथा सभी चीज़े, जो कोशिका के अन्दर हैं, उन्हें सामूहिक रूप से जीवद्रव्यक (Protoplast) कहते हैं। कोशिका एक दीवार से घिरी होती है। कोशिका के अन्दर एक अत्यन्त आवश्यक भाग केंद्रक (nucleus) होता है, जिसके अन्दर एक केंद्रिक (nuclelus) होता है। कोशिका के भीतर एक रिक्तिका (vacuole) होती है, जिसके चारों ओर की झिल्ली को टोनोप्लास्ट (Tonoplast) कहते हैं। कोशिकाद्रव्य (cytoplasm) के अंदर छोटे छोटे कण, जिन्हें कोशिकांग (Organelle) कहते हैं, रहते हैं। इनके मुख्य प्रकार माइटोकॉन्ड्रिया (mitochondria, जिनमें बहुत से एंजाइम होते हैं), क्लोरोप्लास्ट इत्यादि हैं। केन्द्रक साधारणतया गोल होता है, जो केंद्रकीय झिल्ली से घिरा होता है। इसमें धागे जैसे वर्णकोत्पादक होते हैं जिनके ऊपर बहुत ही छोटे मोती जैसे आकार होते हैं, जिन्हें जीन कहते हैं। ये रासायनिक दृष्टि से न्यूक्लियोप्रोटीन (nucleoprotein) होते हैं, जो डी. एन. ए. (DNA) या डीआक्सिराइबो न्यूक्लिइक ऐसिड कहे जाते हैं। इनके अणु की बनावट दोहरी घुमावदार सीढ़ी की तरह होती हैं, जिसमें शर्करा, नाइट्रोजन, क्षारक तथा फॉस्फोरस होते हैं। आर. एन. ए. (RNA) की भी कुछ मात्रा वर्णकोत्पादक में होती है, अन्यथा यह न्यूक्लियोप्रोटीन तथा कोशिकाद्रव्य (माइटोकॉन्ड्रिया में भी) होता है। प्रत्येक कोशिका में वर्णकोत्पादक की संख्या स्थिर और निश्चित होती है। कोशिका का विभाजन दो मुख्य प्रकार का होता है : (१) सूत्री विभाजन (mitosis), जिसमें विभाजन के पश्चात् भी वर्णकोत्पादकों की संख्या वही रहती हैं, और (२) अर्धसूत्री विभाजन (meiosis), जिसमें वर्णकोत्पादकों की संख्या आधी हो जाती है।

किसी भी पौधे या अन्य जीवधारी का हर एक गुण जीन के कारण ही होता है। ये अपनी रूपरेखा पीढ़ी दर पीढ़ी बनाए रखते हैं। हर जीन का जोड़ा भी अर्धगुणसूत्र (sister chromatid) पर होता है, जिसे एक-दूसरे का एलिल कहते हैं। जीन अर्धसूत्रण के समय अलग अलग हो जाते हैं और ये स्वतंत्र रूप से होते हैं। अगर एलिल जीन दो गुण दिखाएँ, जैसे लंबे या बौने पौधे, रंगीन और सफेद फूल इत्यादि, तो जोड़े जीन में एक प्रभावी (dominant) होता है और दूसरा अप्रभावी (recessive)। दोनों के मिलने से नई पीढ़ी में प्रभावी लक्षण दिखाई पड़ता है, पर स्वयंपरागण द्वारा इनसे पैदा हुए पौधे फिर से ३ : १ में प्रभावी लक्षण और अप्रभावी लक्षण दिखलाते हैं (देखें मेंडेलवाद)।

सन्दर्भ[संपादित करें]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]