वार्ता:भील

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Latest comment: 1 वर्ष पहले by Prashant Ram Kumar ji in topic भील

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इतिहास[संपादित करें]

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इतिहास के अनुसार मान्धाता ओंकारेश्वर का शासन भील शासकों के अधीन था | उसके पश्चात धार के परमार राजवंश, मालवा के सुलतान एवं ग्वालियर के सिंधिया घराने से होता हुआ १८२४ में अंग्रेजों के नियंत्रण में चला गया | अंतिम भील शासक नाथू भील का यहाँ के एक प्रमुख पुजारी दरियाव गोसाईं से विवाद हुआ, जिन्होंने जयपुर के राजा को पत्र द्वारा नाथू भील के खिलाफ सहायता मांगी तब राजा ने उनके भाई एवं मालवा में झालर पाटन के सूबेदार भरत सिंह चौहान को भेजा | अंततः इस विवाद का समापन भारत सिंह द्वारा नाथू भील कि एकमात्र पुत्री से विवाह के रूप में हुआ अन्य राजपूत योद्धाओं ने भी भील कन्याओं से विवाह किये एवं ११६५ ईसवी में मान्धाता में बस गए | इनके वंशज भिलाला कहलाए | भरत सिंह के वंशजों ने लंबे समय तक ओंकारेश्वर पर राज किया | ब्रिटिश राज के दौरान ओंकारेश्वर जागीर के रूप में राव परिवार के पास रहा |[2]

राजपूताना के इतिहास में, भिल्लों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी | मुगलों के खिलाफ हल्दीघाटी की लड़ाई में उदयपुर के महाराणा प्रताप को उनकी सैन्य सहायता प्रसिद्ध है। उनका गुरिल्ला युद्ध मेवाड़ की विजय में अकबर के लिए एक बड़ी चुनौती था। राणा ने राज्य के प्रतीक में उन्हें एक प्रमुख स्थान देकर भिल्लों को सम्मानित किया जिसमें राणा प्रताप और भील योद्धा को मेवाड़ के राना के शाही प्रतीक के दोनों तरफ खड़े दिखाया हैं। जय हो Sanjay Waskel (वार्ता) 10:59, 4 अगस्त 2018 (UTC)उत्तर दें

भील[संपादित करें]

इस लेख में क्या समस्या है कृपया बताए अधिकतर संदर्भ दिए गए है Prashant Ram Kumar ji (वार्ता) 02:58, 25 अक्टूबर 2022 (UTC)उत्तर दें