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प्रवेशद्वार:कर्नाटक

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कर्नाटक प्रवेशद्वार

दक्षिण भारत मे स्थित कर्नाटक भारत के बड़े राज्यॊ मे एक है। इस प्रान्त में अभियांत्रिकी और चिकित्सा विज्ञान के अनेक महाविद्यालय हैं। इसके उत्तर में महाराष्ट्र, दक्षिण में केरल, दक्षिण-पूर्व में तमिलनाडु तथा पूर्व में आंध्र प्रदेश स्थित हैं । इसके पश्चिम में अरब सागर है । कन्नड यहां की मुख्य भाषा है । तुळु तथा कोंकणी भी बोली जाती है ।कर्नाटक के आदिम निवासी लौह धातु का प्रयोग उतत्र भारत की अपेक्षा पहले से जानते थे और ईसापूर्व १२०० इस्वी के औजार धारवाड़ जिले के हल्लूर में मिले हैं । ज्ञात इतिहास के आरंभ में इस प्रदेश पर उत्तर भारतीयों का शासन था। पहले यहाँ नन्दों तथा मौर्यों का शासन था । सातवाहनों का राज्य (ईसापूर्व ३० - २३० इस्वी) उत्तरी कर्नाटक में फैला था जिसके बाद कांची के पल्लवों का शासन आया । पल्लवों के प्रभुत्व को स्थानीय कदम्बों (बनवासी के) तथा कोलार के गंगा राजवंश ने खत्म किया ।
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चयनित लेख

स्वस्तिक
स्वस्तिक
स्वस्तिक अत्यन्त प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति में मंगल-प्रतीक माना जाता रहा है। इसीलिए किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले स्वस्तिक चिह्व अंकित करके उसका पूजन किया जाता है। स्वस्तिक शब्द सु+अस+क से बना है। 'सु' का अर्थ अच्छा, 'अस' का अर्थ 'सत्ता' या 'अस्तित्व' और 'क' का अर्थ 'कर्त्ता' या करने वाले से है। इस प्रकार 'स्वस्तिक' शब्द का अर्थ हुआ 'अच्छा' या 'मंगल' करने वाला। 'अमरकोश' में भी 'स्वस्तिक' का अर्थ आशीर्वाद, मंगल या पुण्यकार्य करना लिखा है। अमरकोश के शब्द हैं - 'स्वस्तिक, सर्वतोऋद्ध' अर्थात् 'सभी दिशाओं में सबका कल्याण हो।' इस प्रकार 'स्वस्तिक' शब्द में किसी व्यक्ति या जाति विशेष का नहीं, अपितु सम्पूर्ण विश्व के कल्याण या 'वसुधैव कुटुम्बकम्' की भावना निहित है। विस्तार से पढ़ें
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चयनित चित्र

मैसूर में स्थित महाराजा महल भारत के श्रेष्ठतम प्रासादों में से एक है। चित्रित है, राज्योत्सव विजयदशमी के अवसर पर विद्युतदीपमालिका में सज्जित महल का दृश्य।
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चयनित जीवनी

नागवार रामाराव नारायण मूर्ति
नागवार रामाराव नारायण मूर्ति
एन आर नारायणमूर्ति (जन्म २० अगस्त, १९४६) भारत की प्रसिद्ध सॉफ़्टवेयर कंपनी इन्फोसिस टेक्नोलॉजीज के संस्थापक और जानेमाने उद्योगपति हैं। उनका जन्म मैसूर में हुआ। आई आई टी में पढने के लिए वे मैसूर से बैंगलौर आए, जहाँ १९६७ में इन्होंने मैसूर विश्वविद्यालय से बैचलर आफ इन्जीनियरिंग की उपाधि और १९६९ में आई आई टी कानपुर से मास्टर आफ टैक्नोलाजी (M.Tech) की उपाधि प्राप्त की। नारायणमूर्ति आर्थिक स्थिति सुदृढ़ न होने के कारऩ इंजीनियरिंग की पढ़ाई का खर्च उठाने में असमर्थ थे। उनके उन दिनों के सबसे प्रिय शिक्षक मैसूर विशवविद्यालय के डॉ॰ कृष्णमूर्ति ने नारायण मूर्ति की प्रतिभा को पहचान कर उनको हर तरह से मदद की। बाद में आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो जाने पर नारायणमूर्ति ने डॉ॰ कृष्णमूर्ति के नाम पर एक छात्रवृत्ति प्रारंभ कर के इस कर्ज़ को चुकाया। विस्तार से पढ़ें
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चयनित पर्यटन स्थल

मल्लिकार्जुन एवं काशीविश्वनाथ मंदिर
मल्लिकार्जुन एवं काशीविश्वनाथ मंदिर
पत्तदकल (कन्नड़ - ಪತ್ತದಕಲು) भारत के कर्नाटक राज्य में एक कस्बा है, जो भारतीय स्थापत्यकला की वेसर शैली के आरम्भिक प्रयोगों वाले स्मारक समूह के लिये प्रसिद्ध है। ये मंदिर आठवीं शताब्दी में बनवाये गये थे। यहाँ द्रविड़ (दक्षिण भारतीय) तथा नागर (उत्तर भारतीय या आर्य) दोनों ही शैलियों के मंदिर हैं। पत्तदकल दक्षिण भारत के चालुक्य वंश की राजधानी बादामी से २२ कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित हैं। चालुक्य वंश के राजाओं ने सातवीं और आठवीं शताब्दी में यहाँ कई मंदिर बनवाए। एहोल को स्थापत्यकला का विद्यालय माना जाता है, बादामी को महाविद्यालय तो पत्तदकल को विश्वविद्यालय कहा जाता है।पत्तदकल शहर उत्तरी कर्नाटक राज्य में बागलकोट जिले में मलयप्रभा नदी के तट पर बसा हुआ है। यह बादामी शहर से २२ कि.मि. एवं ऐहोल शहर से मात्र १० कि॰मी॰ की दूरी पर है। यहां का निकटतम रेलवे स्टेशन २४ कि॰मी॰ दक्षिण-पश्चिम में बादामी है। विस्तार से पढ़ें
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कर्नाटक का खाना

कर्नाटक की खाने की थाली केले के पत्ते पर।
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श्रेणियां

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कुछ रोचक तथ्य, क्या आप जानते हैं

नाज़िया हसन
नाज़िया हसन
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संबंधित प्रवेशद्वार

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