सामग्री पर जाएँ

आरण्य देवी मंदिर, आरा

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से

आरण्य देवी मंदिर भारत के बिहार राज्य के आरा जिले में स्थित एक हिन्दू मंदिर है। भोजपुर जिला के मुख्यालय आरा का नामकरण इसी मंदिर की देवी के नाम पर हुआ है। यहां स्थापित देवी नगर की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती है एवं यहां के लोगों की आराध्य देवी हैं।[1]

श्री आरण्य देवी मंदिर
मां आरण्य देवी
मां आरण्य देवी
धर्म संबंधी जानकारी
सम्बद्धताहिन्दू धर्म
देवताअरण्यानि
अवस्थिति जानकारी
अवस्थितिआरा
ज़िलाभोजपुर
राज्यबिहार
देशभारत
भारत का बिहार राज्य हलके पीले रंग में
भारत का बिहार राज्य हलके पीले रंग में
बिहार में अवस्थिति
भौगोलिक निर्देशांक25°34′04″N 84°40′23″E / 25.5678967°N 84.6729917°E / 25.5678967; 84.6729917निर्देशांक: 25°34′04″N 84°40′23″E / 25.5678967°N 84.6729917°E / 25.5678967; 84.6729917

सतयुग से लेकर कलियुग तक मान्यता रखने वाला यह मंदिर देवी भागवत पुराण के अनुसार १०८ शक्तिपीठ के साथ साथ सिद्धिपीठ भी है।[2] मंदिर का भवन बहुत पुराना नहीं है पर यहां प्राचीन काल से पूजा का वर्णन मिलता है। संवत् २००५ में स्थापित इस मंदिर के बारे में कई किदवंतियां प्रचलित हैं। इसका जुड़ाव महाभारतकाल से है। इसे भगवान राम के जनकपुर गमन के प्रसंग से भी जोड़ा जाता है।[3]

वर्तमान में मंदिर के भवन के जर्जर स्थिति में होने के कारण पुराने भवन को तोड़ कर एक नया बहुमंजिला भवन निर्माणाधीन है।[4]

इतिहास व स्थापना[संपादित करें]

संवत् २००५ में स्थापित आरण्य देवी का मंदिर नगर के शीश महल चौक से उत्तर-पूर्व छोर पर स्थित है। यह देवी नगर की अधिष्ठात्री मानी जाती हैं। कहा जाता है कि भगवान राम, लक्ष्मण और महर्षि विश्वामित्र जब बक्सर से जनकपुर धनुष यज्ञ के लिए जा रहे थे तब उन्होंने यहां गंगा स्नान कर देवी आदिशक्ति की पूजा-अर्चना की। महर्षि विश्वामित्र ने भगवान राम और लक्ष्मण को आरण्य देवी की महिमा के बारे में बताया था। तदुपरांत उन्होंने सोनभद्र नदी को पार किया।[5]

कथा यह भी है कि उक्त स्थल पर प्राचीन काल में सिर्फ आदिशक्ति की प्रतिमा थी। इस मंदिर के चारों ओर वन था। पांडव वनवास के क्रम में आरा में ठहरे थे। पांडवों ने आदिशक्ति की पूजा-अर्चना की। देवी ने ज्येष्ठ पांडव धर्मराज युधिष्ठिर को स्वपन् में संकेत दिया कि वह आरण्य देवी की प्रतिमा स्थापित करे। तब धर्मराज युधिष्ठिर ने यहां मां आरण्य देवी की प्रतिमा स्थापित की। द्वापर युग में इस स्थान पर राजा मयूरध्वज राज करते थे। इनके शासनकाल में भगवान श्रीकृष्ण पाण्डु-पुत्र अर्जुन के साथ यहां आये थे। श्रीकृष्ण ने राजा के दान की परीक्षा लेते हुए अपने सिंह के भोजन के लिए राजा से उसके पुत्र के दाहिने अंग का मांस मांगा। जब राजा और रानी मांस के लिए अपने पुत्र को आरा (लकड़ी चीरने का औजार) से चीरने लगे तो देवी प्रकट होकर उनको दर्शन दी थीं।[6]

इस मंदिर में स्थापित बड़ी प्रतिमा को जहां सरस्वती का रूप माना जाता है, वहीं छोटी प्रतिमा को महालक्ष्मी का रूप माना जाता है। इस मंदिर में वर्ष १९५३ में श्रीराम, लक्ष्मण, सीता, भरत, शत्रुधन् व हनुमान जी के अलावे अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमा स्थापित की गयी थी।

संदर्भ[संपादित करें]

  1. "बिहार: श्रद्धालुओं के लिए खुला आरण्य देवी का मंदिर, कोरोना गाइडलाइंस का रखना होगा खास ख्याल". ABP Live (हिंदी में).सीएस1 रखरखाव: नामालूम भाषा (link)
  2. "माता का वो शक्तिपीठ जहां पूरी होती है अधूरी मनोकामना, मत्स्य पुराण में भी स्वरूप का वर्णन". Zee News (हिंदी में).सीएस1 रखरखाव: नामालूम भाषा (link)
  3. "VIDEO : यहां 'आरण्य' देवी की पूजा करके भगवान राम ने तोड़ा था धनुष, पढ़ें रोचक मान्यताएं". दैनिक भास्कर (हिंदी में).सीएस1 रखरखाव: नामालूम भाषा (link)
  4. "सार्वजनिक प्रदर्शन:108 फीट ऊंचा बनेगा आरण्य देवी का नया मंदिर". दैनिक भास्कर (हिंदी में).सीएस1 रखरखाव: नामालूम भाषा (link)
  5. "मां आरण्य देवी मंदिर का अद्भुत है इतिहास, देखें Video:रामायण काल से जुड़ी है कहानी, देवी के नाम पर ही रखा गया शहर का नाम; मन्नत पूरी होने तक घी के बड़े दीये जलाते हैं श्रद्धालु". दैनिक भास्कर (हिंदी में).सीएस1 रखरखाव: नामालूम भाषा (link)
  6. "Navratri: यहां के राजा मयूरर्ध्वज के सामने प्रकट हुईं थी देवी". हिन्दुस्तान (हिंदी में).सीएस1 रखरखाव: नामालूम भाषा (link)


बाहरी कड़ियां[संपादित करें]