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अवधान

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अवधान का शाब्दिक अर्थ 'चित्त की एकाग्रता' है। किन्तु भारतीय संस्कृति में अवधान, कला के रूप में भी विद्यमान है। 'अवधानम्' नाम से एक बौद्धिक क्रीडा भी है। भारत में आज से बहुत समय पहले से ही अवधानकला है। सङ्गीतावधानम्, साहित्यावधानम्, नृत्यावधानम्, यक्षावधानम्, गणितावधानम् नेत्रावधानम् इत्यादि अवधान के अनेक भेद हैं।

आधुनिक युग में अवधानम् को मुख्यतः तेलुगु कवियों ने पुनर्जीवित किया। इसमें किसी विशेष छन्द में, विशेष विषय पर, विशेष शब्दों का प्रयोग करते हुए कोई कविता आंशिक रूप से दी गयी होती है और उसे पूरा करना होता है। 19वीं शतब्दी के आदिकाल में इस कविता की नींव तरिगोंडधर्मन्न ने डाली। आजकल तेलुगु कविता क्षेत्र में "सहस्रावधान", "शतावधान" और "अष्टावधान" भी प्रचलित हैं। इस कविता में सुप्रख्यात तिरुपति और वेंकट कवि विशेषकर उल्लेखनीय है। वेंकटशास्त्री आंध्रप्रदेश के सर्वप्रथम राजकवि बनाए गए।