हेलिओडोरस

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हेलिओडोरस प्राचीन भारत का यूनानी राजनयिक था। हेलिओडोरस 'दिया' (दियोन) का पुत्र और तक्षशिला का निवासी था। वह पाँचवें शुंग राजा काशीपुत भागभद्र के राज्य काल के चौदहवें वर्ष में तक्षशिला के यवन राजा एण्टिआल्कीडस (लगभग 140-130 ई.पू.) का दूत बनकर विदिशा आया था।

हेलिओडोरस यवन होते हुए भी भागवत धर्म का अनुयायी हो गया था। उसने देवाधिदेव वासुदेव (विष्णु) का एक 'गरुड़ स्तम्भ' बनवाया था, जिसे 'हेलिओडोरस स्तम्भ' भी कहा जाता है। यह सारी सूचना उक्त स्तम्भ पर अंकित है, जिससे प्रकट होता है कि हेलिओडोरस को महाभारत का परिचय था। यह स्तम्भ लेख महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इससे प्रकट होता है कि ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में यवनों ने हिन्दू धर्म स्वीकार कर लिया था। इससे वैष्णव धर्म के क्रमिक विकास पर भी प्रकाश पड़ता है

जीवन वृत्त[संपादित करें]

वह हेलिओडोरस 'दिया' (दियोन) का पुत्र और तक्षशिला का निवासी था। वह कालांतर में हिंदू मत का अनुयायी हो गया था।

'हेलिओडोरस स्तंभ[संपादित करें]

हेलिओडोरस ने विदिशा में विष्णु) का एक 'गरुड़ स्तम्भ' बनवाया था, यह स्तंभ 'हेलिओडोरस स्तम्भ के नाम से जाना जाता है। इसी स्तंभ पर उत्कीर्ण आलेख से हेलिओडोरस के बारे में सूचना प्राप्त होती है।

स्तंभ-लेख[संपादित करें]

इस स्तंभ से प्राप्त आलेख हैं-

  1. व देवस वासुदेवस गरुड़ध्वजे अयं
  2. रिते इष्य हेलियो दरेण भाग
  3. वर्तन दियस पुत्रेण नखसिला केन
  4. योन दूतेन आगतेन महाराज स
  5. अंतलिकितस उपता सकारु रजो
  6. कासी पु (त्र) (भा) ग (भ) द्रस त्रातारस
  7. वसेन (चतु) दसेन राजेन वधमानस।
अर्थ- "! देवाधिदेव वासुदेव का यह गरुड़ध्वज (स्तम्भ) तक्षशिला निवासी दिय के पुत्र भागवत हेलिओवर ने बनवाया, जो महाराज अंतिलिकित के यवन राजदूत होकर विदिशा में काशी (माता) पुत्र (प्रजा) पालक भागभद्र के समीप उनके राज्यकाल के चौदहवें वर्ष में आये थे।"

संदर्भ[संपादित करें]