सरना

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सरना झारखंड, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, बिहार और ओडिशा के छोटानागपुर क्षेत्र के आदिवासियों की एक पारंपरिक पूजा स्थल है। यह एक पवित्र उपवन है, जहाँ गाँव के लोग गाँव के उत्सव में अनुष्ठान करने के लिए इकट्ठा होते हैं। यहां आदिवासियों द्वारा ग्राम देवता, जाहेर बुढ़ी, सिंग बोंगा, बुरु बोंगा आदि की पूजा की जाती है। मुंडा, संथाल, भूमिज, हो, उरांव, माहली आदि जनजातीय समुदाय अपनी धार्मिक अनुष्ठान सरना स्थल में करते हैं।

सरना में पूजा करता भूमिज पुजारी "लाया" और "देउरी"

सरना साल के पेड़ों से बनी एक पवित्र जंगल है। पारंपरिक मान्यता के अनुसार, सरना गाँव के संस्थापक गाँव खुटकट्टी (ग्राम देवता) का निवास स्थान है। हर साल लोग अच्छी फसल और गाँव की सुरक्षा के लिए सूर्य (सिंग बोंगा), ग्राम देवता और पूर्वजों को बलि चढ़ाने के लिए इकट्ठा होते हैं। छोटानागपुर में गांव के पुजारी को मुंडा आदिवासी में पाहान कहते है, जिसे भूमिज आदिवासी लाया भी कहते हैं और सहायक पुजारी को देउरी कहा जाता है। पाहन और उसका सहायक पुजारी देउरी जानवरों विशेषकर मुर्गा या बकरे की बलि देते हैं। फिर पके हुए मांस को शराब के साथ खाया जाता है। संथाल आदिवासी गांव के पुजारी नाइके कहते हैं। स्थानीय आदिवासी इस पवित्र सरना स्थल को जाहेर या जाहिरा या जाहेरथान या जाहिराथान भी कहते हैं। यहां सरहुल, माघे, बुरु बोंगा जैसे त्योहारों में बलि अनुष्ठान के साथ-साथ नृत्य भी किया जाता है।

जाहेरथान में पूजा करता संथाल पुजारी "नाइके"

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सन्दर्भ[संपादित करें]