साहिबी नदी

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साहिबी नदी

साहिबी नदी जिसे अब नजफगढ़ नाला के नाम से जाना जाता है। इसे कई वर्ष पूर्व साहिबी नदी के नाम से जाना जाता था। इसमें दिल्ली के सभी बड़े नालों का पानी गिरता है। यह पहले सीधे यमुना नदी में गिरती थी। लेकिन धीरे धीरे इसका बहाव धीमा हो गया। बाद में नदी के समाप्त होने के बाद यह नाले के रूप में आ गया।[1]

साबी नदी अरावली पहाड़ी से निकलने वाली एक नदी है. इस नदी को सहाबी नदी के नाम से भी जाना जाता है. यह नदी राजस्थान हरियाणा और दिल्ली में बहती है, इसके जल का मुख्य जल स्त्रोत वर्षा का पानी है.[2]

भौगोलिक परिचय[संपादित करें]

साबी नदी का उद्गम राजस्थान के सीकर जिले के कस्बे अजीतगढ़ के पूर्व में २ कि. मी दूर स्थित "धारा जी का मंदिर" के पास से होता है. इस नदी की कुल लम्बाई (दिल्ली तक) लगभग ३०० कि.मी है. इस नदी के किनारे कांस्य के कुछ अवशेष भी प्राप्त हुए हैं इसकी सहायक नदियां हैं. कृष्णावती नदी धोना नदी और सोता नदी इसके बहाव का तंत्र द्रुमातृक है. इसका उदगम स्थल राजस्थान के सीकर कसबे अजीतगढ़ के पूर्व में २ कि.मी दूर स्तिथ धरा जी का मंदिर के पास सी होता है. यहाँ से ४ कि.मी दूर दक्षिण पूर्व में चलकर यह धारा यहाँ के प्रमुख धार्मिक स्थल ‘त्रिवेणी धाम’ तक आती है वहां से यह धरा पूर्वोत्तर की तरफ मुड़कर साईवाड़ गाँव के पास एक अन्य धारा, जो पिथलपुर एवं चींड की तरफ से आती है, को भी अपने में मिला लेती है. फिर वहां से ३ कि.मी पूर्व में चलकर यही धारा “बाड़ी जोड़ी” की तरफ से आने वाली धारा को भी मिलाती हुई आगे बढ़ टी जाती है. यहाँ से २ कि.मी पूर्व में जाने पर इस धारा में सावलपूरा, अजमेरी एवं रायपुर जागीर की तरफ से आने वाली एक और धारा, रायपुर के उतर में आकर मिल जाती है. इससे कुछ ही दूर पूर्व दिशा में जाने पर सबी नदी की इस्सी मुख्या धरा में ततेर की तरफ से आने वाली दो - तीन अन्य धाराएं अलग अलग जगहों पर आकर मिल जाती है. इससे आगे आसपुर एवं टांडा की धानी के बीच पहुँचने पर इस धारा में मनोहरपुर के उतर से शुरू होकर उतर दिशा में ही प्रवाहित होता हुआ ‘आड़ा नाला’ नामक एक नाला लाखणी, काँट एवं देवन गाँवो के पानी को समाहित करते हुए शाहपुरा के रास्ते आकर मिल जाता है. साबी नदी तत्तारपुर इस्मरार से आगे जाकर नज़फगढ़ ड्रेन में मिल जाती है यह ड्रेन दिल्ली के पास जाकर यमुना नदी में मिल जाती है

सबी नदी में सोता एवं सुरख्नाली दो अन्य धारें मिलती हैं. फिर ये तीनो धाराएं सयुंक्त होकर प्रवाहित होती हैं. इन तीनो के सयानुक्त प्रवाह के ऊपर एक क्षेत्रिय कहावत है - "सबी, सोता,सुरख्नाली, तीनूं चाले एक गली".

ऐतिहासिक परिचय [संपादित करें]

साबी नदी का जलागम स्त्तर पुराणों में वर्णित उज्जनक खंड के पश्चिमोत्तर भाग में आता है. उज्जनक खंड प्राचीन काल में एक बहुत बड़ा क्षेत्र था. यहाँ पर महर्षि कश्यप की पत्नी दिती से उत्पन्न हुए दैत्य, वीर पराक्रमी हिरण्यकशिपु एवं हिरण्याक्ष का राज्य था. फिर मध्य काल में महमूद गजनवी के पिता सुबेदीन गजनवी ने सबी नदी के क्षेत्र को रोंद डाला और जनता को धर्म परिवर्तन के लिए मज़बूर किया और इस क्षेत्र को अपना राज्य बनाया. फिर आगे १२६१ ई. में गयासुदीन बलवंत ने आक्रमण कर इस क्षेत्र में लूटपाट की. फिर १४२१ ई. में बहादुर नाहर का बनाया किला भी नष्ट किया गया नीकुम्भ छत्रियों के बाद इस क्षेत्र में खान्जदों का शासन स्थापित हुआ. आलवाल खान खानजादे ने निकुम्भ छत्रियों से यह भू भाग छीनकर सन् १४९२ में अलवर दुर्ग का परपोता बनवाया. कहा जता है कि बादशाह अकबर ने भी अपने शासन काल में साबी नदी में बाँध बनाकर इससे रेवाड़ी की तरफ मोड़कर ले जाने की कोशिश की थी. पर वह भी इसके प्रचंड प्रवाह को रोकने में असफल रहा था. इस सन्दर्भ में एक लोक कहावत प्रसिद्ध है :- "अकबर बाँधी ना बंधू ना रेवाड़ी जायुं, कोट तला कर नीकसूं सबी नावं कहाऊँ"

साबी का मैदान[संपादित करें]

साबी नदी अधिकांशतः समतल क्षेत्र से होकर गुज़रती है. यह अन्य नदियों की अपेक्षा अधिक चौराई में बहकर जाती है. साबी नदी राजस्थान की अन्य नदियों की तरह ही अन्तः प्रवाहित नदी है. जो बरसात के बाद कुछ महीनों तक ही ज़मीन के ऊपर ही सतह पर बहती रही है. लेकिन लगभग पिछली तीन दशक से इस नदी का प्रवाह लुप्त हो चूका है. ज़मीन के नीचे अभी पानी है, पर उसे भी बहुत तेज़ी से निकला जा रहा है. जो इस क्षेत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा है. साबी नदी के क्षेत्र की मिट्टी विभिन्न प्रकार की है, जो बहुत उपजाऊ है. इस क्षेत्र में फसल बहुत अच्छी होती है.

जल संसद निर्माण का प्रयास[संपादित करें]

अरवरी संसद की तर्ज पर अन्य नदी संसद बनाने का परयास किया गया. इसी क्रम में साबी नदी क्षेत्र में भी साबी संसद बनाने के उद्देश्य से, गाँव-गाँव में जाकर इस हेतु चेतना जागृत करने का प्रयास किया गया. चेतना जाग्रति के लिए संस्था के कार्यकर्ताओं के अलावा गाँवों के स्वेछिक कार्य कर्ताओं ने भी साबी नदी क्षेत्र काम किया.

साबी नदी का क्षेत्रीय परिचय[संपादित करें]

इस क्षेत्र में आने वाले कुछ गाँव के नाम निम्नलिखित हैं.

गडी मामोड़[संपादित करें]

यह एक इतिहासिक गाँव है, जिसमे गुर्जर एवं मीणा जाती का बाहुल्य है.

किशनपुरा आतेला[संपादित करें]

यह गाँव बोहोत पहले से ही मशहूर रहा है. यह एक तरफ तो एतिहासिक नगर विराट नगर से सड़क द्वारा जुड़ा है.

रामपुर[संपादित करें]

साबी नदी जलागम क्षेत्र में बानसूर के रामपुर के चौहान गाँव के आस पास गुढ़ा, कल्यानपुर आदि गाँवों में भी पानी के बहुत अच्छे काम हुए हैं.

मोरोड़ी[संपादित करें]

यहाँ पर वर्षा जल को सहेजने का बड़ा अच्छा काम हुआ है. यहाँ के फूलचंद कँवल (धानका) पानी के काम में सबसे ज्यादा रुचि रखते हैं.

तरुण भारत संघ द्वारा किये गए कार्य[संपादित करें]

साबी नदी जलागम क्षेत्र में सन् १९८५ से दिसम्बर २०१६ तक तरुण भारत संघ द्वारा जन सहभागिता से कुल २६९ जल सरंचनाएँ (जोहड़ और बाँध) बनायीं गयी हैं. जिनके द्वारा साबी नदी के क्षेत्रीय लोगों को जल सम्बंधित सुविधाओं का लाभ प्राप्त होता है.



सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "कभी साहिबी नदी थी, अब इस का नाम है नजफगढ़ नाला". दैनिक जागरण. 19 नवम्बर 2012. अभिगमन तिथि 21 जून 2016.
  2. गोपाल, सिंह (2010). साबी नदी. तरुण भारत संघ.

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]