लूइस संरचना

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इलेक्ट्रॉन बिन्दु संरचना के कुछ उदाहरण

इलेक्ट्रॉन बिन्दु संरचना, वे आरेख हैं जिनमें किसी अणु के परमाणुओं के मध्य आबन्धों एवं एकाकी युग्मों को दर्शाया गया होता है। उन अणुओं की बिन्दु संरचनाएँ बनाई जा सकती है जिनके परमाणु सहसंयोजकता या उपसहसंयोजकता से जुड़े हों। अमेरिकी रसायनज्ञ गिल्बर्ट न्यूटन ल्यूइस ने परमाणु में संयोजक इलेक्ट्रॉनों के निरूपण हेतु इन सरल संकेतनों को प्रस्तावित किया था। प्रतीक के चारों ओर उपस्थित बिन्द्वों की संख्या परमाणु के संयोजकता इलेक्ट्रॉनों की संख्या को दर्शाती है। यह संख्या तत्त्व की सामान्य अथवा समूह संयोजकता के परिकलन में सहायता देती है। तत्त्व की समूह संयोजकता या तो बिन्दु संरचना में उपस्थित बिन्द्वों की संख्या के समान होती है या 8 में से बिन्द्वों अथवा संयोजक इलेक्ट्रॉनों की संख्या को घटाकर इसे परिकलित किया जा सकता है।

सरल अण्वों का निरूपण[संपादित करें]

इलेक्ट्रॉन बिन्दु संरचनाओं द्वारा सहभाजित इलेक्ट्रॉन युग्मों तथा अष्टक नियम के अनुसार अण्वों एवं आयनों में आबन्धन का चित्रण किया जाता है। यद्यपि यह चित्रण अणु में आबन्धन तथा उसकी प्रकृति को पूर्ण रूप से स्पष्ट नहीं करता, किन्तु इसके आधार पर अणु के विरचन तथा उसके गुणों को पर्याप्त सीमा तक समझने में सहायता मिलती है। अतः अण्वों की इलेक्ट्रॉन बिन्दु संरचनाएँ अत्यन्त उपयोगी होती हैं। इन्हें निम्नलिखित पदों के आधार पर लिखा जा सकता है:

  • बिन्दु संरचना लिखने हेतु आवश्यक कुल इलेक्ट्रॉनों की संख्या संयुग्मित होने वाले परमाण्वों के संयोजकता इलेक्ट्रॉनों के योग द्वारा प्राप्त की जाती है। उदाहरणार्थ— CH4, अणु में कुल आठ संयोजक इलेक्ट्रॉन (4 कार्बन परमाणु से तथा 4 हाइड्रोजन के चार परमाण्वों से ) उपलब्ध होते हैं।
  • संयोजक इलेक्ट्रॉनों की कुल संख्या में ऋणायनों हेतु प्रति ऋणावेश एक इलेक्ट्रॉन जोड़ दिया जाता है, जबकि धनायनों हेतु प्रति धनावेश एक इलेक्ट्रॉन घटा दिया जाता है। उदाहरणार्थ— CO3-2 आयन हेतु कार्बन तथा ऑक्सीजन के संयोजक इलेक्ट्रॉनों के योग में दो इलेक्ट्रॉन जोड़ दिए जाते हैं। इस आयन पर उपस्थित दो ऋणावेश यह दर्शाते हैं कि इस आयन में ऋणावेशित परमाण्वों द्वारा दिए गए संयोजक इलेक्ट्रॉनों से दो इलेक्ट्रॉन अधिक हैं। NH4+ आयन पर उपस्थित 1+ आवेश एक इलेक्ट्रॉन की हानि को दर्शाता है। अतः इस आयन हेतु ऋणावेशित परमाण्वों द्वारा दिए गए संयोजक इलेक्ट्रॉनों में से एक इलेक्ट्रॉन घटाया जाता है।
  • संयुक्त होने वाले परमाण्वों के रासायनिक प्रतीकों तथा अणु की आधारभूत संरचना अर्थात् कौन से परमाणु किन परमाण्वों के साथ आते हैं इस बात का ज्ञान होने पर परमाण्वों के मध्य सभी इलेक्ट्रॉनों का वितरण आबन्धित सहभागी इलेक्ट्रॉन युग्मों के रूप में तथा सम्पूर्ण आबन्धों की संख्या के सरल हो जाता है।
  • सामान्यतः अणु में न्यूनतम विद्युदृणात्मकता वाला परमाणु केन्द्रीय परमाणु का स्थान पाता है। हाइड्रोजन तथा फ्लोरीन के परमाणु साधारणतः अन्तःस्थ होती हैं। जैसे NF3, तथा CO3-2 क्रमश: नाइट्रोजन तथा कार्बन केन्द्रीय परमाणु के रूप में लिखे जाएँगे।
  • एकल आबन्धों हेतु सहभाजित इलेक्ट्रॉन युग्म लिखने के पश्चात् शेष इलेक्ट्रॉन युग्मों का उपयोग या तो बह्वाबन्धन हेतु किया जाता है या वे एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्मों के रूप में रहते हैं। आधारभूत आवश्यकता यह है कि प्रत्येक आबन्धित परमाणु में इलेक्ट्रॉनों का अष्टक पूर्ण हो जाए।

औपचारिक आवेश[संपादित करें]

इलेक्ट्रॉन बिन्दु संरचनाएँ सामान्यतः अण्वों की वास्तविक आकृति नहीं दर्शाती हैं। बहुपारमाण्विक आयनों में सम्पूर्ण आवेश किसी विशेष परमाणु पर उपस्थित न होकर पूरे आयन पर स्थित होता है। यद्यपि प्रत्येक परमाणु पर औपचारिक आवेश दर्शाया जा सकता है। बहुपारमाण्विक अणु या आयन के किसी परमाणु पर उपस्थित औपचारिक आवेश दर्शाया जा सकता है। बहुपारमाण्विक अणु या आयन के किसी परमाणु पर उपस्थित औपचारिक आवेश को उसके विगलित स्थिति (अर्थात् मुक्त परमाणु अवस्था) में संयोजक इलेक्ट्रॉनों की कुल संख्या तथा बिन्दु संरचना में परमाणु को प्रदत्त इलेक्ट्रॉनों की संख्या के अन्तर के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। इसे इस प्रकार अभिव्यक्त किया जाता है-

औपचारिक आवेश = मुक्त परमाणु में संयोजक इलेक्ट्रॉनों की कुल संख्या - (अनाबन्धित (एकाकी युग्म) इलेक्ट्रॉनों की कुल संख्या + आबन्धों की कुल संख्या)

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]