बेलवन

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SHRI MAHALAXMI TEMPLE

बेलवन : वृंदावन के यमुना पार स्थित ग्राम जहांगीरपुर पोस्ट - डांगौली/ तहसील -मांट जिला - मथुरा राज्य - उत्तर प्रदेश स्थित लक्ष्मी देवी की तपस्थली है। यह स्थान अत्यंत सिद्ध है। यहां लक्ष्मी माता का भव्य मंदिर है। इस स्थान पर पौष माह में चारो ओर लक्ष्मी माता की जय जयकार की गूँज सुनाई देने लग जाती है। दूर-दराज के असंख्य श्रद्धालु यहां अपनी सुख-समृद्धि के लिए पूजा-अर्चना करने आते हैं। यहां पौष माह के प्रत्येक गुरुवार को विशाल मेला जुडता है।

पौराणिकता[संपादित करें]

प्राचीन काल में इस स्थान पर बेल के वृक्षों की भरमार थी। इसी कारण यह स्थान बेलवन के नाम से प्रख्यात हुआ। कृष्ण-बलराम यहां अपने सखाओं के साथ गायें चराने आया करते थे। श्रीमद्भागवत में इस स्थान की महत्ता का विशद् वर्णन है। भविष्योत्तरपुराण में इसकी महिमा का बखान करते हुए लिखा है:

तप: सिद्धि प्रदायैवनमोबिल्ववनायच। जनार्दन नमस्तुभ्यंविल्वेशायनमोस्तुते॥

लक्ष्मी माता मंदिर[संपादित करें]

वृंदावन की ओ्र उन्मुख कृष्ण की पूजा करती हुई लक्ष्मी की मूर्ती वाली लक्ष्मी माता मंदिर यहां का सर्व प्रमुख आकर्षण है। इस मंदिर के संबंध में मान्यता है कि भगवान् श्री कृष्ण ने जब सोलह हजार एक सौ आठ गोपिकाओं के साथ दिव्य महारासलीला की तब माता लक्ष्मी देवी के हृदय में भी इस लीला के दर्शन करने की इच्छा हुई और वह बेलवन जा पहुंची, परंतु उसमें गोपिकाओं के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति का प्रवेश वर्जित था। अत: उन्हें ललिता सखी ने यह कह कर दर्शन करने से रोक दिया कि आपका ऐश्वर्य लीला से सम्बन्ध है, जबकि वृंदावन माधुर्यमयीलीला का स्थान है। अत:लक्ष्मी माता वृंदावन की ओर अपना मुख करके भगवान् श्रीकृष्ण की आराधना करने लग गईं। भगवान् श्रीकृष्ण जब महारासलीला करके अत्यंत थक गए तब लक्ष्मी माता ने अपनी साडी से अग्नि प्रज्वलित कर उनके लिए खिचडी बनाई। इस खिचडी को खाकर भगवान् श्रीकृष्ण उनसे अत्यधिक प्रसन्न हुए। लक्ष्मी माता ने भगवान् श्रीकृष्ण से ब्रज में रहने की अनुमति मांगी तो उन्होंने उन्हें सहर्ष अनुमति प्रदान कर दी। यह घटना पौष माह के गुरुवार की है। बाद में इसी स्थान पर लक्ष्मी माता का भव्य मंदिर स्थापित हुआ।

खिचड़ी महोत्सव[संपादित करें]

खिचड़ी यहाँ का सर्वप्रमुख खाद्य एवं प्रसाद है। यहाँ खिचडी महोत्सव आयोजित करने की परम्परा है। यहां के लक्ष्मी माता मंदिर में भी खिचडी से ही भोग लगाया जाता है। यहां पौष माह में प्रत्येक गुरुवार को जगह-जगह असंख्य भट्टियां चलती हैं। साथ ही हजारों भक्त-श्रद्धालु सारे दिन खिचडी के बडे-बडे भण्डारे करते हैं।

सन्दर्भ[संपादित करें]